भारत ने पिछले दिनों टूटे चावल के निर्यात पर बैन लगा दिया था। इसके अलावा कई अन्य किस्मों के निर्यात पर टैक्स को 20 फीसदी तक कर दिया है। इससे बाजार में भारतीय चावल की कीमतें बढ़ गई हैं।
भारत ने पिछले दिनों टूटे चावल के निर्यात पर बैन लगा दिया था। इसके अलावा कई अन्य किस्मों के निर्यात पर टैक्स को 20 फीसदी तक कर दिया है। इससे बाजार में भारतीय चावल की कीमतें बढ़ गई हैं और दुनिया भर में संकट गहराने की आशंका है। एशियाई देशों समेत दुनिया के कई मुल्कों ने भारत की बजाय अब चावल खरीद के लिए दूसरे देशों का रुख करना शुरू कर दिया है। लेकिन संकट यह है कि दूसरे देशों ने हालात का फायदा उठाते हुए ज्यादा कीमत वसूलनी शुरू की है। वहीं इस साल भारत के चावल एक्सपोर्ट में 25 फीसदी तक की कमी आने की संभावना है।
इस साल भारत का एक्सपोर्ट 25 फीसदी तक होगा कम
भारत सरकार ने बैन और टैक्स में इजाफे का फैसला लेते हुए कहा था कि देश में इस बार बुवाई कम हुई है और लेट भी है। इसलिए घरेलू स्तर पर संकट से बचने के लिए यह फैसला लिया गया है। राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष बीवी कृष्ण राव ने कहा, ‘कस्टम ड्यूटी में इजाफे से भारत का चावल महंगा हो गया है। इस साल एक्सपोर्ट में 5 मिलियन टन तक की कमी आ सकती है।’ इस साल भारत से चावल के निर्यात का आंकड़ा 16.2 मिलियन टन तक ही सीमित रह सकता है। बता दें कि बीते वित्त वर्ष में भारत से चावल का निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचते हुए 21.2 मिलियन टन हो गया था।
5 दिनों में ही चावल की कीमतों में तेजी से आया उछाल
भारत का चावल निर्यात भारत के बाद आने वाले 4 अन्य देशों के कुल आयात से भी ज्यादा था। भारत के बाद थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और अमेरिका चावल के सबसे बड़े निर्यातक देशों में हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत के फैसले की वजह से एशिया समेत दुनिया भर के बाजारों में चावल की कीमत बढ़ जाएगी। भारतीय बैन के 5 दिनों में ही कीमतों में चार से 5 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। आने वाले दिनों में यह और ज्यादा हो सकता है। भारत के बैन के बाद वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों ने वाइट राइस की कीमत में बढ़ोतरी कर दी है।
जून में गेहूं के एक्सपोर्ट पर भी भारत ने लगा दिया था बैन
बता दें कि भारत ने जून में गेहूं के एक्सपोर्ट पर भी रोक लगा दी थी, जिस पर यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने ऐतराज जताया था। लेकिन भारत ने जवाब देते हुए कहा था कि अमीर देश खाद्यान्न की खरीद कर लेते हैं और फिर गरीब देशों की जरूरत पर उन्हें नहीं मिल पाता। भारत ने कहा था कि हमने अपने और पड़ोसी देशों की खाद्य सुरक्षा के लिए यह फैसला लिया है।