बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने कहा है कि राष्ट्रपति नहीं बनना चाहती हैं, बल्कि फिर से यूपी की सीएम और देश की पीएम बनना चाहती हैं। आइए यह समझने की कोशिश करते हैं कि यह कितना मुमकिन है।
अब तक चार बार उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो चुकी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भले ही विधानसभा में एक सीट तक सिमट गई हो, लेकिन मायावती के हौसले अब भी बुलंद हैं। लंबे समय चल रही राष्ट्रपति बनने की अटकलों को एक बार फिर खारिज करते हुए बसपा सुप्रीमो ने कहा है कि वह आराम की जिंदगी नहीं चाहती हैं, बल्कि पिछड़ों-वंचितों को उनका हक दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश की सीएम और देश की पीएम बनना चाहती हैं। कोई इसे मायावती की साफगोई बताकर उनकी इच्छाशक्ति की तारीफ कर रहा है तो कुछ लोग ये भी सवाल उठा रहे हैं कि क्या मायावती की यह ख्वाहिश पूरी हो सकती है? क्या दुर्बल-निर्बल हो चुका बसपा का हाथी दोबारा अपनी ताकत हासिल कर सकता है?
खुद मायावती ने बताई थी शर्त
मायावती इस बात को अच्छी तरह जानती हैं कि उनके कोर वोटर्स भी उनका साथ छोड़ चुके हैं और उनको वापस लाए बिना यह संभव नहीं है। मायावती ने कहा, ”यदि यूपी सहित पूरे देश में दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम और अपर कास्ट में से गरीब तबगा बसपा से जुड़ जाता है तो ये लोग बीएसपी की मुखिया को यूपी का मुख्यमंत्री बना सकते हैं और आगे चलकर देश का प्रधानमंत्री भी बना सकते हैं, क्योंकि इन वर्गों के वोटों में बहुत ताकत है। बशर्ते ये लोग एकजुट होकर बसपा से जुड़ जाएं और चुनाव में किसी तरह गुमराह ना हों।”
क्यों कहा कि राष्ट्रपति नहीं बनना?
यूपी विधानसभा चुनाव से काफी पहले से ही मायावती की निष्क्रियता को लेकर सवाल उठने लगे थे। विपक्ष और राजनीतिक जानकार कभी उनपर भाजपा के सामने सरेंडर करने का आरोप लगाते तो अटकलें यह भी थीं कि मायावती को भाजपा राष्ट्रपति बनाकर उनके वोटर्स को अपने पाले में कर सकती है। मायावती ने राष्ट्रपति के पद को ‘ऐश और आराम’ का बताकर यह साफ कर दिया है कि वह अभी राजनीति के मैदान से बाहर नहीं जा रही हैं। हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा इसे सिर्फ कयासबाजी बताते हुए कहते हैं कि आखिर बीजेपी उन्हें राष्ट्रपति क्यों बनाना चाहेगी? बीजेपी तो पहले ही उनके एक बड़े वोट बैंक पर कब्जा कर चुकी है। लंबे समय से बीजेपी की विचारधारा पर सवाल उठाती रहीं मायावती को यह पार्टी पहले सीएम बना चुकी थी, लेकिन बदले में क्या हासिल हुआ? सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के डायरेक्टर एके वर्मा भी इसे कयासबाजी बताते हुए सवाल करते हैं कि क्या बीजेपी ने कभी कोई ऑफर या संकेत दिया है? बीजेपी दलित और ओबीसी वर्ग को पहले ही अपने पाले में कर चुकी है। यदि यह पार्टी 40 फीसदी वोट शेयर तक पहुंच चुकी है तो इसका मतलब है कि समाज का एक बड़ा तबगा इसके लिए वोट कर रहा है।
क्या मुमकिन है मायावती की वापसी?
मायावती के सपने को लेकर राजनीतिक शास्त्र के जानकार एके वर्मा कहते हैं कि हर किसी को सपने देखने का अधिकार है, लेकिन इसे हकीकत में बदलने के लिए मेहनत की जरूरत है। मायावती की सोशल इंजीनियरिंग पर शोध कर चुके वर्मा कहते हैं कि मायावती ने 2007 में समाज के सभी वर्गों को साथ जोड़ा था जो एक नायाब और सफल प्रयोग था, लेकिन उसे उन्होंने जारी नहीं रखा। वह सिर्फ ब्राह्मण-दलित गठजोड़ नहीं था, उसमें समाज के सभी वर्गों का योगदान था। वह कहते हैं कि किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए तीन आधार स्तंभ होते हैं, संगठन, विचारधार और नेतृत्व। कांशीराम ने उन्हें एक सशक्त विचारधारा के आधार पर मजबूत संगठन बनाया था। उनका नेतृत्व भी मजबूत था जिसे उन्होंने मायावती को ट्रांसफर किया, लेकिन अब तीनों ही मोर्चे पर पार्टी कमजोर हो चुकी है।