छत्तीसगढ़ में भाजपा मिशन-2023 की तैयारियों में जुट गई है। भाजपा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। राज्य की 2.5 करोड़ आबादी का लगभग 47 प्रतिशत ओबीसी वर्ग है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा मिशन-2023 की तैयारियों में जुट गई है। भाजपा ओबीसी वर्ग को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। राज्य की 2.5 करोड़ आबादी का लगभग 47 प्रतिशत ओबीसी वर्ग है। सांसद अरुण साव को प्रदेश भाजपा की कमान देने के पीछे सीधे तौर पर एक बड़ा वोट बैंक को साधने की रणनीति है। अरुण साव साहू समाज से ताल्लुक रखते हैं। यह जाति छत्तीसगढ़ में ओबीसी वर्ग में सबसे ज्यादा है। ओबीसी की आबादी 47% है, जो प्रदेश की सत्ता के किंगमेकर माने जाते हैं, इसलिए पार्टी ने ओबीसी चेहरे पर दांव खेला है। भाजपा इस दांव से प्रदेश में गुटबाजी भी रोकना चाहती है।
पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह प्रदेश में डेढ़ दशक तक भाजपा का चेहरा रहे। वे जाति से राजपूत हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ओबीसी समाज से ताल्लुक रखते हैं। ओबीसी वर्ग को साधने भाजपा ने संगठन में बड़ा बदलाव किया है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा नेतृत्व अब राज्य में ओबीसी नेताओं की दूसरी पंक्ति पर फोकस कर रही है, जिसकी बेहद कमी है। वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि पार्टी को छत्तीसगढ़ में मजबूत ओबीसी नेताओं की जरूरत है। अधिकांश ओबीसी नेता प्रभावशाली उच्च जाति के नेताओं द्वारा निर्देशित होते हैं, इसलिए पार्टी को एक मजबूत चेहरे की जरूरत है। दूसरे ओबीसी नेता गुटों में फंसे हुए हैं, इसलिए प्रभावशाली नहीं हैं। बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से पहली बार सांसद बने साव भाजपा के किसी खेमे में नहीं हैं और संगठन के प्रति वफादार भी हैं।
लंबे समय तक आदिवासी रहे भाजपा अध्यक्ष
छत्तीसगढ़ में ओबीसी समाज की आबादी लगभग 47 प्रतिशत है। आदिवासी लगभग 33 प्रतिशत और अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है। राज्य में जनरलों की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम है। सन् 2000 में छत्तीसगढ़ के राज्य बनने के बाद भाजपा ने प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व करने ज्यादातर आदिवासी चेहरों पर अपना विश्वास रखा था। नंदकुमार साय, शिवप्रताप सिंह, रामसेवक पैकरा, विक्रम उसेंडी और विष्णुदेव साय जैसे आदिवासी नेताओं ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व संभाला। वर्तमान विपक्ष के नेता धरमलाल कौशिक भी भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। इससे पहले पूर्व सांसद दिवंगत ताराचंद साहू भी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। छत्तीसगढ़ियों की उपेक्षा से नाराज होकर उन्होंने छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच का गठन किया था।
भाजपा के OBC वोटर कांग्रेस की तरफ चले गए
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में ओबीसी मतदाता भाजपा से कांग्रेस की ओर चले गए हैं, जिसने पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ। दोबारा सत्ता हासिल करने प्रदेश में मजबूत ओबीसी चेहरे की जरूरत है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अरुण साव का नाम भाजपा के नए अध्यक्ष के रूप में सामने आना यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पार्टी अब प्रदेश के ओबीसी मतदाताओं को साधने में लगी है। साहू मूल रूप से (तेली) है जो छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख ओबीसी वर्ग है। प्रदेश का एक अन्य प्रमुख वर्ग कुर्मी है, जिससे सीएम भूपेश बघेल आते हैं। राज्य के साहू मतदाता ज्यादातर भाजपा समर्थक हैं, लेकिन पिछले चुनाव में वे स्थानांतरित हो गए, जिसकी वजह से भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी।
देश के सर्वोच्च पद पर आदिवासी वर्ग से राष्ट्रपति
प्रदेश में करीब 32 फीसदी ट्राइबल की आबादी है। 90 सदस्यीय विधानसभा में 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। इसमें 11 सीटें बस्तर संभाग में हैं। वर्ष 2003 में बस्तर में भाजपा ने 8 सीटें जीती थीं, जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में बस्तर में खाता भी नहीं खुला और सत्ता गंवानी पड़ी थी। वर्ष 2003 में 75 फीसदी एसटी सीटें बीजेपी ने जीती थी। वहीं वर्ष 2008 में 66 फीसदी और वर्ष 2013 में 36 फीसदी सीटें ही बीजेपी जीत पाई थी। राज्य में सत्ता वापसी के लिए आदिवासियों वोटरों को साधना भी जरूरी है। देश के सर्वोच्च पद पर आदिवासी समाज से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने आदिवासियों को साध लिया है। वहीं छत्तीसगढ़ से रेणुका सिंह केंद्रीय मंत्री हैं। नंदकुमार साय राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं।