भारत के पंजाब के रहने वाले सरवन सिंह अब अपने भतीजे से मिलेंगे। उनके भतीजे का नाम मोहन सिंह जो अब पाकिस्तान में अब्दुल खालिक नाम से रहते हैं।
1947 में आजादी तो मिल गई थी लेकिन उस समय भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ था तो इस बंटवारे ने कई परिवारों को बहुत दुख दिए। तमाम जिंदगियां तबाह हुईं, सैकड़ों-लाखों लोगों को इसके दर्द का दंश झेलना पड़ा था। लोगों को अपने घरों को छोड़ पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा था। कई लोग छूट गए। ऐसी ही एक और कहानी सामने आई है जो विभाजन के बाद अब एक-दूसरे के संपर्क में आए हैं। इसमें भारत के पंजाब के रहने वाले सरवन सिंह अब अपने भतीजे से मिलेंगे। उनके भतीजे का नाम मोहन सिंह जो अब पाकिस्तान में अब्दुल खालिक नाम से रहते हैं।
दरअसल, विभाजन की यह कहानी भी अन्य परिवारों की तरह ही है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब के रहने वाले 92 साल के सरवन सिंह कोरोना महामारी से पहले कनाडा में रहते थे और इन दिनों वे पंजाब में ही रह रहे हैं। विभाजन का दंश अपनी आंखों के सामने देखने वाले सरवन के परिवार से छह साल का मोहन सिंह उस समय विछड़कर पाकिस्तान पहुंच गया था। उधर मोहन सिंह सिर्फ छह साल की उम्र में अपने परिवार से बिछड़ गए थे। 1947 के सांप्रदायिक दंगों में मोहन के परिवार के 22 सदस्य मारे गए थे।
रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब के जंडियाला के रहने वाले युट्यूबर हरजीत सिंह ने इनकी कहानी के जरिए मोहन सिंह की तलाश शुरू की। इसके लिए उन्होंने मोहन के चाचा सरवन का इंटरव्यू लिया था। फिर एक दिन आखिरकार अब्दुल खालिक उर्फ मोहन सिंह तक यह कहानी पहुंच गई। यह कहानी कुछ इस तरह पहुंची जब पाकिस्तानी युट्यूबर मोहम्मद जाविद इकबाल ने खालिक की कहानी हिंदू परिवार से अलग हुए विभाजन के बच्चे के रूप में बताई। यह भी बताया कि अब्दुल के एक हाथ में दो अंगूठे थे।
इसके बाद जब उनकी टीम खालिक के पास गई तो यह बात सही निकली। फिलहाल दोनों परिवारों ने एक दूसरे से वीडियो कॉल पर बात की और यह निर्णय लिया कि गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में दोनों मिलेंगे। जालंधर के रहने वाले मोहन के चाचा सरवन सिंह, जिनके माता-पिता, दो भाई और दो बहनें दंगों के दौरान मारे गए, वह अपने बड़े भाई के बेटे (मोहन) से मिलने के लिए उत्साहित हैं। सरवन सिंह की बेटी रछपाल कौर उनकी इस यात्रा के दौरान उनके साथ होंगी।
कौर ने कहा कि इन दंगों में हमारे परिवार के जो सदस्य बच गए थे। उन्होंने बाद में मोहन को खोजने की काफी कोशिशें कीं। लेकिन वह नहीं मिले। दंगों के शांत होने के बाद परिजनों ने अपने छह साल के बच्चे मोहन को बहुत ढूंढा लेकिन नहीं मिले। फिलहाल अब दोनों परिवारों की मुलाकात होगी।