कोरोना विजेताओं को इलाज के साइड इफेक्ट, जवानी में ही सूख गई कमर की हड्डियां

कोरोना से जंग जीतने वालों को अब इलाज के साइड इफेक्ट कमजोर बना रहे हैं। संक्रमण की पहली और दूसरी लहर में आईसीयू में भर्ती मरीजों की कमर में दर्द बढ़ गया है। उनके कमर की हड्डियां सूख रही हैं।

कोरोना से जंग जीतने वालों को अब इलाज के साइड इफेक्ट कमजोर बना रहे हैं। संक्रमण की पहली और दूसरी लहर में आईसीयू में भर्ती मरीजों की कमर में दर्द बढ़ गया है। उनके कमर की हड्डियां सूख रही हैं। कुछ लोगों के कूल्हे बदलने तक की नौबत आ गई है। इस बीमारी को एवैस्कुलर नेक्रोसिस (एवीएन) कहते हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इसके मरीजों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई हैं। देशभर में एवीएन के मरीजों की संख्या में कई गुने का इजाफा हुआ है।

कोरोना के संक्रमण के दौरान मरीजों के इलाज में स्टेरॉयड का इस्तेमाल बढ़ गया था। संक्रमितों के इलाज में गांव के झोलाछाप स्टेरॉयड का प्रयोग बेतहाशा कर रहे थे। गंभीर मरीजों के इलाज में भी इसका प्रयोग डॉक्टर कर रहे थे। इसके सेवन से शरीर में हार्मोन का स्राव तेजी से होने लगता है। यह शरीर में रिकवरी की स्वाभाविक प्रक्रिया की गति को कई गुना तेज कर देता है। अत्यधिक सेवन से शरीर में रक्त प्रवाह करने वाली नसें सूखने लगती हैं।

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के हड्डी रोग विभाग के प्रो. अमित मिश्रा ने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान मध्यम और गंभीर दर्जे के संक्रमित रहे 80 फीसदी लोगों ने जाने-अनजाने में स्टेरॉयड का सेवन किया। इसका नतीजा अब दिख रहा है। शरीर में हड्डियों को खून पहुंचाने वाली नसें स्टेरॉयड से क्षतिग्रस्त हो गई हैं। इसके कारण हड्डियां कमजोर हो रही हैं। कमर की हड्डियों को खून पहुंचाने वाली नसों पर इसका असर सबसे ज्यादा हुआ है। इसी वजह से कोरोना विजेता कमर दर्द को लेकर परेशान रह रहे हैं। जांच में उनकी कमर की हड्डियां कमजोर मिली है। खून की नसें सूखने के कारण कमर की हड्डियां गल रही हैं। बीआरडी में ऐसे मरीजों की संख्या दो गुने से अधिक हो गई है। कोविड से पहले हफ्ते में ऐसे एक या दो मरीज आते थे अब रोजाना ओपीडी में कम से कम एक मरीज जरूर आ रहा है।

बदलना पड़ रहा कूल्हा: डॉ. अमित ने बताया कि स्टेरॉयड ने इस बीमारी की गति को काफी तेज कर दिया है। यह बुढ़ापे की बीमारी मानी जाती थी। कोविड से पहले 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र से लोग ही इसके शिकार होते थे। अब ऐसा नहीं है। ओपीडी में 35 वर्ष तक के मरीज इसका इलाज कराने पहुंच रहे हैं। ऐसे मरीजों का कूल्हा बचाने के लिए दवाएं दी जा रही हैं। इन दवाओं से बीमारी का प्रसार धीमा होता हैं। हालांकि चंद वर्षों बाद उनका भी कूल्हा बदलना पड़ेगा।

300 से अधिक मरीज ब्लैक फंगस के मिले: डॉ. अमित ने बताया कि स्टेरॉयड के दुष्परिणाम का असर यह रहा कि दूसरी लहर के बाद 300 से अधिक मरीज ब्लैक फंगस का शिकार हो गए। इनमें से 150 से अधिक मरीजों का बीआरडी में ऑपरेशन कर उनके मांस निकालने पड़े। इन मरीजों का अभी भी इलाज चल रहा है।

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