बीजेपी ने तेजस्वी यादव की शिक्षा पर उठाया सवाल, कहा- ठीक से पढ़ाई न करने वाले, नहीं समझ सकते राष्ट्रपति पद का महत्व

द्रौपदी मुर्मू को मूर्ति बताने के लिए तेजस्वी यादव पर बरसते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने कहा है कि ठीक से पढ़ाई नहीं करने वाले, राष्ट्रपति पद का महत्व नहीं समझ सकते।

राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को मूर्ति बताने के लिए तेजस्वी यादव पर बरसते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने कहा है कि ठीक से पढ़ाई नहीं करने वाले, राष्ट्रपति पद का महत्व नहीं समझ सकते। उन्होंने कहा कि अनुकंपा के आरक्षण बल पर पार्टी के सिरमौर बने सभी खानदानी युवराजों के साथ सबसे बड़ी समस्या होती है कि न तो उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों का ज्ञान होता है और भाषाई शुचिता का ख्याल।

संजय जायसवाल ने कहा कि खानदान के युवराज होने के दंभ में उन्हें हर ‘बड़ा’ खुद से ‘छोटा’नजर आता है। यही वजह है कि यह अपने असभ्य आचरण और अमर्यादित बयानों से राजनीतिक गरिमा को कलंकित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। खुद को ‘बिहार की बेटी’ बताने वाली द्रौपदी मुर्मू को तेजस्वी यादव द्वारा ‘मूर्ति’ बताना भारतीय राजनीति के इसी घिनौना चेहरे को उजागर करता है।

तेजस्वी पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि एक गरीब, ग्रामीण व आदिवासी समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मू जी जो सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार जीत चुकी हो, वह तेजस्वी जी को मूर्ति नजर आती है, लेकिन अपने घर की महिला जिसे शपथ ग्रहण कराने के लिए भी किसी और को शब्द पढ़ना पड़ा था वह उनके निगाह में विद्वान है।

उन्होंने कहा कि बतौर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू जी का कार्यकाल ऐसा निर्विवादित रहा कि हेमंत सोरेन को भी उनका समर्थन करना पड़ गया। दूसरी तरफ उनके घर की महिला के हाथों बिहार की क्या दुर्गति हुई थी यह भी सबको पता है। बावजूद इसके अनुसूचित जनजाति की महिला का अपमान करना और उनका उपहास उड़ाना तेजस्वी के मानसिक दिवालियेपन को ही दर्शाता है।

उन्होंने कहा कि ऐसे भी राष्ट्रीय जनता दल में परंपरा रही है कि बड़े-बड़े और तथाकथित दिग्गज समाजवादी नेता भी एक घरेलू महिला को अपना नेता मान लेते हैं। इन्हें इसी की ट्रेनिंग मिलती है। यही वजह है कि तेजस्वी यादव की नजर में किसी खास नेता की पत्नी अथवा बेटी होना ही विद्वान की पहचान है और एक गांव से पढ़कर आदिवासी महिला का राष्ट्रपति बनना उन्हें अपमान लगता है। सभी राजपरिवारों में यह बीमारी है कि कोई व्यक्ति जिसका किसी परिवार से संबंध नहीं हो वह कैसे राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री बन सकता है। उसपर भी यदि वह महिला हो और गरीब आदिवासी समाज से आती हो तो वह भला उनके बराबरी में कैसे आ सकती है? इसीलिए हर कदम पर वह विरोध करते दिखते हैं।

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