इस प्रकार हम देखते हैं कि सारे मुसलमानों को एक मंच पर लाने के लिए किए जा रहे प्रयास में देशज पसमांदा को शामिल करना तो दूर उनको रजील जैसे अरबी भाषा की गाली (अपशब्द) कह कर खारिज कर दिया गया।
स्वघोषित विदेशी शासक वर्गीय अशराफ मुसलमानोंं द्वारा देशज पसमांदा मुसलमानोंं के साथ नस्लीय/जातीय और सांस्कृतिक शोषण एवं उत्पीड़न कोई आज का नया नहीं है, बल्कि अशराफ के भारत में विजेता शासक के रूप में पदार्पण के साथ ही इसका इतिहास शुरू हो जाता है। अशराफ ने भारतीय मूल के मुसलमानों को अपना सहधर्मी भाई समझ कर समानता और सद्भाव का व्यवहार करना तो दूर देशज पसमांदा को मुसलमान तक नहीं समझा।
उदाहरण स्वरूप किसी भी अशराफ के प्रभुत्व वाले क्षेत्र में जहां अशराफ कभी राजा, नवाब, जमींदार रहा है या आज एमएलए एमपी चेयरमैन रूपी जनप्रतिनिधि रहा है या है, वहां मियां केवल उन्हें ही कहा जाता है और देशज पसमांदा को उनकी जातिगत नामों से संबोधित किया जाता है। जैसे वो नट है, धोबी है, मेहतर है जुलाहा है, धूनिया है आदि।