केंद्र की मोदी सरकार जातीय जनगणना के पक्ष में नहीं है। केंद्र सरकार ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए भी जातिगत जनगणना से इनकार कर दिया था। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा ने जातिगत जनगणना को असंभव बता दिया
बिहार में जातीय जनगणना को लेकर खूब राजनीति हुई लेकिन अब इसका रास्ता साफ हो गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर हुई सर्वदलीय बैठक में सबकी सहमति से जातीय जनगणना का फैसला लिया गया है। इस इन फैसलों का ड्राफ्ट कैबिनेट मीटिंग में लाया जाएगा। अब सवाल यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार जब जातीय जनगणना से इनकार करती रही तो बिहार में भाजपा ने इसके लिए कैसे हामी भर दी?
केंद्र ने कर दिया था साफ इनकार
केंद्र की मोदी सरकार जातीय जनगणना के पक्ष में नहीं है। केंद्र सरकार ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए भी जातिगत जनगणना से इनकार कर दिया था। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा ने जातिगत जनगणना को असंभव बता दिया था। हालांकि बिहार में सर्वदलीय बैठक में शामिल भाजपा के नेताओं ने भी इसपर सहमति जता दी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाजपा की कोई मजबूरी है जिसके चलते बिहार में वह नीतीश कुमार का अजेंडा फॉलो कर रही है?
क्या है भाजपा की मजबूरी?
पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच नजदीकी देखी जा रही थी। इससे भाजपा की टेंशन बढ़ गई थी। जातिगत जनगणना के मुद्दे पर तेजस्वी ने नीतीश कुमार का समर्थन करने की भी बात कही थी। बिहार में ओबीसी का एक बड़ा वोट बैंक है। बताया जाता है कि बिहार में 52 फीसदी आबादी ओबीसी है। ऐसे में अगर नीतीश का रास्ता भाजपा से अलग हो जाता तो यह पूरा वोट बैंक हाथ से खिसक सकता था। ऐसे में बिहार में नीतीश का अजेंडा फॉलो करने में ही भाजपा की भलाई है। बता दें कि जब नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने मोदी सरकार से जातिगत जनगणना की मांग की थी तो उधर से कहा गया था कि अब देर हो चुकी है और फॉर्मेंट नहीं बदला जा सकता। हालांकि कोई चाहे तो राज्य स्तर पर जातिगत जनगणना करवा सकता है।
कई राज्यों में बिगड़ सकते थे जातिगत समीकरण
बिहार में सियासत जातीय समीकरण कि इर्द गिर्द ही सिमटी रहती है। ओबीसी समुदाय के लोग जातिगत जनगणना की मांग उठा रहे थे। ऐसे में भाजपा के लिए यह एक मजबूरी भी बन गई थी। दूसरी तरफ अगर नीतीश कुमार का रास्ता भाजपा से अलग हो जाता तो यह चुनौती राष्ट्रीय स्तर पर खड़ी हो जाती। साथ ही उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों में भी जातिगत समीकरण बिगड़ सकते थे। ऐसे में बिहार और जातिगत समीकरण साधने के लिए भाजपा को नीतीश कुमार का अजेंडा फॉलो करना पड़ा।