अप्रैल की थोक महंगाई में सब्जियों, गेहूं, फल और आलू की कीमतों में तेज वृद्धि देखी गई है। इसके अलावा ईंधन,कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के साथ-साथ विनिर्मित वस्तुओं के दाम में उछाल आया है।
महंगाई के मोर्चे पर चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। अप्रैल में थोक महंगाई बढ़कर 15 फीसदी के पार पहुंच जाने के बाद इस बात की आशंका बढ़ गई है कि रिजर्व बैंक जून में होने वाली मौद्रिक नीति की समीक्षा में नीतिगत दरों में और इजाफा कर सकता है। ऐसा होने पर बैंक भी दरें बढ़ाने पर मजबूर होंगे, जिससे सभी तरह के कर्ज और महंगे हो सकते हैं।
अप्रैल की थोक महंगाई में सब्जियों, गेहूं, फल और आलू की कीमतों में तेज वृद्धि देखी गई है। इसके अलावा ईंधन,कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के साथ-साथ विनिर्मित वस्तुओं के दाम में उछाल आया है। माना जा रहा है कि अप्रैल के थोक महंगाई का असर मई के खुदरा महंगाई के आंकड़ों में देखने को मिल सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई पर अंकुश सरकार के लिए दोहरी चुनौती है। महंगाई पर अंकुश के लिए रिजर्व बैंक दरें बढ़ाने पर मजबूर हुआ है और इस माह की शुरुआत में अचानक 0.40 फीसदी दरें बढ़ाने का ऐलान कर दिया है। वहीं वित्त सचिव ने कहा कि दरें बढ़ाने से आर्थिक रफ्तार सुस्त पड़ने की आशंका है।
कच्चा तेल फिर 114 डॉलर के पार पहुंच गया। इसके मद्देनजर कंपनियां तेल के दाम फिर बढ़ाने पर विचार कर रही हैं। पिछले 40 दिन से पेट्रोल डीजल के दाम में वृद्धि नहीं हुई है। जबकि, विमान ईंधन की कीमतों में इस माह दो बार वृद्धि हो चुकी है। तेल कंपनियों का कहना है कि पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर मौजूदा समय में 10 से 12 रुपये प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है।
पेट्रोल-डीजल से बढ़ती है महंगाई
ईंधन की कीमतों में उछाल का महंगाई पर चौतरफा असर होता है। इससे परिवहन लागत बढ़ने से खाने-पीने से लेकर उपभोक्ता उत्पाद तक महंगाा हो जाता है। उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार ईंधन की कीमतों में 10 फीसदी इजाफा होने पर खुदरा महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है। यही वजह है कि रिजर्व बैंक कई बार सरकार से अपील कर चुका है कि तेल कीमतों पर अंकुश के लिए तुरंत कोई उपाय किया जाए वरना महंगाई पर अंकुश मुश्किल होगा।
थोक महंगाई में थोक विक्रेताओं के बिंदु पर कीमतों में वृद्धि को मापा जाता है और केवल वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि को ध्यान में रखता है, जबकि खुदरा महंगाई में खुदरा विक्रेता के बिंदु पर मूल्य वृद्धि को मापा है और इसमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बदलाव को भी शामिल किया जाता है।
थोक महंगाई में सबसे अधिक 64.23 फीसदी भारांक विनिर्मित वस्तुओं का है। जबकि खुदरा महंगाई में सबसे अधिक 45.86 फीसदी भारांक खाद्य और पेय पदार्थों को दिया गया है। यानी जब खाने-पाने का सामान महंगाई होता है तो खुदरा महंगाई में वह दिखता हैं। वहीं जब निर्मित वस्तुओं के दाम बढ़ते हैं तो थोक महंगाई पर उसका असर दिखता है। इसकी वजह से थोक महंगाई से खुदरा महंगाई का आकलन करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि दोनों के आंकड़ों का पैमाना अलग-अलग है।
थोक महंगाई का उपभोक्ताओं पर असर
उपभोक्ताओं पर थोक महंगाई का तुरंत असर नहीं होता है बल्कि बाद के दिनों में होता है। इसमें मांग और आपूर्ति के अलावा ईंधन कीमतों में वृद्धि से परिवहन का ऊंचा खर्च बढ़ जाता है। उद्योग के आंकड़ों के अनुसार किसी उत्पाद की लागत में परिवहन खर्च सामान्यत: 14 फीसदी होता है। ऐसे में यदि कोई 100 रुपये का उत्पाद थोक बाजार से खुदरा दुकानदार तक पहुंचता है तो वह 114 रुपये का हो जाता है, लेकिन इस बीच पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ जाती है तो परिवहन खर्च भी बढ़ जाता है।
ऐसे में वह उत्पाद 114 की बजाय 117 रुपये या 118 रुपये का हो जाता है। इसके अलावा मांग के मुकाबले आपूर्ति किसी वजह से प्रभावित हो जाती है तो कीमतों में और तेजी आ जाती है। यही वजह है कि थोक महंगाई जब बढ़ती है तो आने वाले दिनों में खुदरा महंगाई के रूप में उपभोक्ताओं पर उसका असर होता है।
थोक महंगाई दर मापने का तरीका बदलेगा
औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) जल्द ही नया थोक महंगाई सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पेश कर सकता है। इससे थोक महंगाई दर मापने का तरीका बदल जाएगा। नए सूचकांक का आधार वर्ष 2017-18 होगा। साथ ही थोक महंगाई दर मापने में शामिल वस्तुओं में भी बदलाव किया जाएगा। इसमें औषधीय पौधों, पेन ड्राइव, व्यायामशाला उपकरण जैसे उत्पादों को शामिल करने के लिए मदों की संख्या को 697 से संशोधित करके 1,176 करने का प्रस्ताव किया जा रहा है। मौजूदा समय में डीवीडी जैसे उपकरण भी सूची में शामिल हैं, जिनका अब उपयोग नहीं होता है।