डॉ. संगीता कहती हैं कि गर्भावस्था के दौरान सावधानी बेहद जरूरी होती है। क्योंकि इस दौरान डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और थायराइड होने की आशंका होती है। जिन्हें पूर्व में यह रोग नहीं है उन्हें भी हो सकता है।
जानीमानी प्रसूती, स्त्री एवं बांझपन रोग विशेषज्ञ डॉ. संगीता चौधरी का मातृ दिवस के अवसर पर कहना है कि मां कई बार अपनी जिंदगी देकर अपने शिशु को जीवन देती है। वो जननी होती है। ऐसे में उन्हें अपना ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है। आधुनिक चिकित्सा ने मां को लगभग सुरक्षित बना दिया है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वो इस चिकित्सा की मदद लें। मां बनने की योजना बनाने से लेकर शिशु जन्म देने तक उन्हें आधुनिक चिकित्सा का उपयोग करना चाहिए।
जब कोई महिला मां बनने की योजना बनाती हैं तो एक बार डॉक्टर से परामर्श जरूर कर लेना चाहिए। इससे गर्भाधारण से लेकर प्रसव तक की प्रक्रिया सुरक्षित हो जाती है। प्रसव किसी भी सूरत में किसी अस्पताल में ही कराना चाहिए। क्योंकि थोड़ी सी लापरवाही जीवन समाप्त कर देती है। यदि पुरईन चिपका रह गया तो भारी रक्तस्त्राव होता है। डॉ. संगीता चौधरी गौशाला रोड, सीवान, बिहार स्थित आदर्श मल्टीस्पेशियलिटी सेंटर की निदेशक हैं।
डॉ. संगीता कहती हैं कि गर्भावस्था के दौरान सावधानी बेहद जरूरी होती है। क्योंकि इस दौरान डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और थायराइड होने की आशंका होती है। जिन्हें पूर्व में यह रोग नहीं है उन्हें भी हो सकता है। और जिन्हें है उनका कुछ बढ़ सकता है। इसलिए रेगुलर डॉक्टर की संपर्क में रहें। गर्भावस्था के दौरान थायरॉयड की मांग शरीर में बढ़ जाती है जबकि यह बच्चा और जच्चा दोनों के लिए जरूरी होता है। थायरॉयड की कमी से शिशु मंद बुद्धि का हो जाता है। और भी कई मानसिक विकार हो जाते हैं। गर्भ के दौरान हाइपोथाइरॉएडिज्म है तो गर्भस्थ शिशु के ब्रेन का न्यूरोन नहीं बनेगा। ऐसे में बच्चा तेज-तर्रार नहीं होगा। इसलिए गर्भधारण की प्लानिंग या योजना से प्रसव तक प्रसव एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ के संपर्क में रहना चाहिए।
डॉ. संगीता चौधरी के मुताबिक यदि कोई महिला मां बनने की योजना बना रही हैं तो कुछ जरूरी जांच जरूर कराएं। डॉक्टर से मिलें। वो परीक्षण करेंगी कि मासिक कम या ज्यादा तो नहीं आ रहा है। कई तरह के हार्मोनल जांच भी कराया जाना चाहिए। सब ठीक रहने पर फोलिक एसिड की गोली लेनी है। इससे गर्भ में ठहरने वाले शिशु को न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट से बचाया जा सकता है। यदि न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट होगा तो शिशु की खोपड़ी ही नहीं बनेगी।
गर्भवर्ती महिलाएं इन बातों का ख्याल रखें:
-चुकुमुकु नहीं बैठना।
-पीढ़िया पर भी नहीं बैठना है।
-घिसटकर स्थान नहीं बदलना है।
-पहले तीन माह कम से कम सहवास करना है।
-इस दौरान एस्प्रीन और फोलिक एसिड की गोली खानी है। यह चमकी और रक्तचाप को नियंत्रित रखेगा।
-गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर से मिलकर नियमित जांच कराती रहें।
-शरीर में हीमोग्लोबिन बनाए रखना जरूरी है।
पहले तीन माह इन बातों का ख्याल रखें
डॉ. संगीता के अनुसार यदि मासिक टल गया है और प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉजिटिव है तो डॉक्टर से जरूर मिलें। इससे कई तरह की समस्या से गर्भवती महिला बच जाती हैं। 11 सप्ताह के अंदर अल्ट्रासाउंड(एंटी-स्कैन) और खून की जांच अवश्य कराएं। इससे पता चल जाता है कि गर्भस्थ शिशु में कोई शारीरिक विकार तो नहीं है। इसी अल्ट्रासाउंड से डिलीवरी की तारीख भी सटीक मिल जाती है।
चाढे़ चार से पांच माह के बीच लेवल -2 अल्ट्रसाउंड जरूरी
डॉ. संगीता चौधरी के अनुसार चाढ़े चार से पांच माह के बीच लेवल -2 का अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए। इससे पता चलता है कि कहीं गर्भस्थ शिशु के दिल में छेद, दाग आदि तो नहीं है। किडनी बड़ा-छोटा, एक किडनी, किडनी में सूजन आदि की भी जानकारी मिल जाती है। तालू, रीढ़ की हड्डी, मस्तिष्क की संपूर्ण जानकारी भी मिलती है। यदि बच्चे में कोई लाइलाज बीमारी पकड़ में आती है तो कानून के मुताबिक गर्भ ठहरने के 24 सप्ताह तक डॉक्टर की सलाह से गर्भपात कराया जा सकता है।
आठवां माह में तीसरा अल्ट्रासाउंड
डॉ. संगीता चौधरी के मुताबिक आठवें माह में भी गर्भवती महिला को अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए। इससे बच्चे का वजन, उसने कितना किक या लात मारा आदि की जानकारी मिल जाती है। यदि कोई महिला मां बनने की योजना बना रही हैं या गर्भवती है और कोई उलझन है तो वो मुझसे फोन 8292563929 पर सलाह ले सकती हैं।