नई दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कूड़े से निकलने वाले काले पानी (लीचेट) के तालाब बन गए हैं। यह काला पानी आसपास की भूमि के सतही जल में मिश्रित हो रहा है और भूजल को प्रदूषित कर रहा है।
इंजीनियरिंग विभाग के सूत्रों का कहना है कि करीब चार साल पहले लैंडफिल साइट पर लीचेट ट्रीटमेंट संयंत्र स्थापित करने की योजना तैयार की गई थी, लेकिन यह कागजों में ही सिमट कर रह गई। जानकारी के मुताबिक, करीब 70 एकड़ भूमि पर 38 साल से संचालित गाजीपुर लैंडफिल साइट को वर्ष 2009 तक बंद कर दिया जाना चाहिए था।
उस समय गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई 30 से 35 मीटर थी, लेकिन पूर्वी दिल्ली नगर निगम एमएसडब्ल्यू-2000 नियम के मुताबिक इस पर काम नहीं कर सकी। इसके चलते गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई धीरे-धीरे 61 मीटर तक पहुंच गई, हालांकि अभी इसकी ऊंचाई 55 मीटर है।
वर्तमान में लैंडफिल साइट पर 14 मिलियन टन से अधिक पुराना कूड़ा पड़ा है। इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ सूत्रों का कहना है कि लैंडफिल साइट पर धीरे-धीरे कूड़े से निकलने वाले काले पानी (लीचेट) के तालाब बन गए हैं। बताया गया कि लीचेट के तालाब बनने की वजह से वायु, जल और भूमि प्रदूषण गंभीर चिंता का कारण बना हुआ है। इसे लेकर एनजीटी ने कूड़े का जैव उपचार और लैंडफिल साइट खाली करने के निर्देश दिए थे।
एनजीटी के निर्देश के बाद लैंडफिल साइट पर 150 केएलडी का लीचेट ट्रीटमेंट संयंत्र लगाने की योजना तैयार की गई। इस संयंत्र के माध्यम से लगभग 50 लाख टन पुराने कूड़े का निस्तारण करने के लिए कहा गया था। सूत्रों का कहना है कि दस एकड़ भूमि पर स्थापित किए जाने वाले लीचेट संयंत्र पर करीब 450 करोड़ रुपये की लागात आने का अनुमान बताया गया था, लेकिन यह योजना कागजों में ही सिमट गई।