नई दिल्ली : रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत को अपने पाले में खड़ा करने के लिए बेचैन अमेरिका लगातार अपनी कोशिशों में लगा हुआ है। इसी कड़ी में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अगले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने वाले हैं। मई में जापान में होने जा रहे क्वॉड शिखर सम्मेलन से इतर बाइडन-मोदी मुलाकात होगी। भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए अमेरिका क्वॉड मीटिंग के अजेंडे में रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा भी रखने जा रहा है। इसमें उसे जापान और ऑस्ट्रेलिया का भी साथ मिल रहा है जबकि भारत नहीं चाहता कि क्वॉड मीटिंग में युद्ध का मसला उठे।
क्वॉड समिट में मिलेंगे मोदी-बाइडन
वाइट हाउस ने बुधवार को इस बात की पुष्टि की कि राष्ट्रपति बाइडन तोक्यो में पीएम मोदी से मिलेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति 20 मई से 24 मई तक दक्षिण अफ्रीका और जापान के दौरे पर रहेंगे। कोरिया के साथ वह द्विपक्षीय बातचीत करेंगे जबकि जापान में क्वॉड के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। क्वॉड में अमेरिका के अलावा भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। वाइट हाउस प्रेस सेक्रटरी जेन साकी ने बताया, ‘ये दौरा बाइडन-हैरिस प्रशासन की स्वतंत्र और खुला हिंद-प्रशांत की मजबूत प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाएगा।’
भारत की दृढ़ और स्वतंत्र विदेश नीति ने बढ़ाई अमेरिका की चिंता
बाइडन पीएम मोदी से कई बार मिल चुके हैं। इसी महीने 11 अप्रैल को भी दोनों नेताओं की वर्चुअल मीटिंग हुई थी। इसके बाद भी वह पीएम मोदी को दृढ़ और स्वतंत्र विदेश नीति के रुख में नरमी के लिए मना नहीं पाए हैं। कई बार नई दिल्ली का रुख वॉशिंगटन के दृष्टिकोण या लक्ष्यों के अनुरूप नहीं रहता। रूस-यूक्रेन युद्ध इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 11 अप्रैल की वर्चुअल मीटिंग हो या फिर ऑस्ट्रेलिया में हुई पिछली क्वॉड मीटिंग रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर दोनों पक्ष में मतभेद बरकरार रहे। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने रूस-यूक्रेन मुद्दे को क्वॉड के अजेंडे में शामिल किए जबकि भारत इसके खिलाफ था और अमेरिका के हिसाब से चलने से इनकार कर दिया था।
भारत पर सख्ती से बचना अमेरिका की मजबूरी
भारत की तरफ से दो टूक जवाब मिलने के बाद भी बाइडन प्रशासन ने दीर्घकालिक नजरिया अपनाते हुए नई दिल्ली के प्रति नरम रुख रखा है। उनके दिमाग में चीन का खतरा भी है जिस वजह से अमेरिका नई दिल्ली पर सख्त होने से बचता आ रहा है। बुधवार को कांग्रेसनल हेयरिंग के दौरान सेनेटर विलियम हैगर्टी ने अमेरिका-भारत के मतभेदों पर निराशा जताई थी। तब अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने सांसद को शांत कराया।
हैगर्टी ने कहा, ‘मैं जो देख रहा हूं वह शॉर्ट टर्म में बहुत निराश करने वाला है…हमारे बीच मतभेद हैं…और आपको इससे हर दिन दो-चार होना पड़ता है।…हालांकि हमें उम्मीद है कि लंबे वक्त में हमारी रणनीतिक साझेदारी 21वीं सदी में और गहरी होगी।’ इस पर ब्लिंकन ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी बढ़ रही है और इसमें क्षमता है कि ये सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मूलभूत साझेदारियों में से एक बन सके। उन्होंने कहा कि इसकी एक बड़ी वजह चीन है।
अमेरिका को उम्मीद, भारत को रूस से दूर कर सकेगा
हालांकि, फिलहाल अमेरिका रूस के मुद्दे को लेकर चिंतित है। भारत जोर देकर कह रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को क्वॉड मीटिंग के अजेंडे से दूर रखा जाए लेकिन यूएस इसे उठाना चाहता है। उसे जापान और ऑस्ट्रेलिया का भी समर्थन हासिल है। रूस से दूरी बनाने से भारत के इनकार के बाद ब्लिंकन ने संकेत दिया कि अमेरिका अब नई दिल्ली-मॉस्को के संबंधों को कमजोर करने की स्थिति में है। उन्होंने बुधवार को कांग्रेसनल हेयरिंग में कहा, ‘भारत की बात करें तो, उनके साथ संबंध दशकों पुराने हैं और भारत ने जरूरत के चलते रूस से साझेदारी की थी क्योंकि तब हम एक साझेदार बनने की स्थिति में नहीं थे।’ ब्लिंकन का इशारा ये था कि भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर था लेकिन अब अमेरिका के साथ जिस तरह उसके रिश्ते मजबूत हुए हैं, उससे वॉशिंगटन इस स्थिति में है कि नई दिल्ली की मॉस्को पर निर्भरता खत्म कर सके। इस तरह अमेरिका आज भारत-रूस संबंधों को कमजोर करने की स्थिति में है।