चीन के एक जनरल थे. नाम था जियोंग गुआंग. उन्होंने एक बार कहा था कि पाकिस्तान चीन का इजरायल है. साल 2010 में पाकिस्तान पब्लिक ओपिनियन को लेकर प्यू ने एक सर्वे कराया था, जिसमें 84 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि चीन को लेकर उनका नजरिया सकारात्मक है. जबकि 16 प्रतिशत ने अमेरिका का नाम लिया था. पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भी चीन को पाकिस्तान का ऑल वेदर फ्रेंड बता चुके हैं.
पाकिस्तान के मौजूदा राजनीतिक हालात में उसकी विदेश नीति अमेरिका और चीन के बीच झूल रही है. बीते दिनों इमरान खान जब रूस दौरे पर गए थे, तो अमेरिका की भौएं चढ़ गई थीं. पुतिन से इमरान खान की मुलाकात की चर्चाएं अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी हुई थीं. जब इमरान की कुर्सी पर संकट आया तो उन्होंने इसे अमेरिका की साजिश बताते हुए उसे जमकर खरी-खोटी सुनाई थी. अमेरिका भी पलटवार करने में पीछे नहीं रहा. ऐसे में पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते पटरी से इस समय तो उतरे ही हुए हैं.
इमरान खान की कुर्सी जाने के बाद पीएमएल-एन के चीफ शहबाज शरीफ का वजीर-ए-आजम बनना तय माना जा रहा है. ऐसे में उनके सामने चीन से रिश्ते मजबूत करने के साथ-साथ अमेरिका से रिश्ते सुधारने का दारोमदार होगा. अमेरिका और चीन दुनिया का दो बड़ी आर्थिक और सामरिक महाशक्तियां हैं. दोनों से पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य मदद मिलती रही है. पाकिस्तान और अमेरिका यह मानते रहे हैं कि पूर्वी यूरोप, दक्षिण और मध्य एशिया के नजरिए से भी उनके रिश्ते महत्वपूर्ण हैं. लेकिन चीन और रूस से लगातार पाकिस्तान से बढ़ती करीबी से अमेरिका कहीं न कहीं उससे दूर होता जा रहा है, जो शायद पाकिस्तान नहीं चाहेगा.
कैसे हैं अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते
जब भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया तो 20 अक्टूबर 1947 यानी ठीक 2 महीने और 6 दिन बाद अमेरिका उन चंद देशों में से एक था, जिसने पाकिस्तान के साथ संबंध स्थापित किए थे. साल 1948 से लेकर 2016 तक अमेरिका ने पाकिस्तान को सैन्य मदद के तौर पर 78.3 बिलियन डॉलर दिए हैं.
पाकिस्तान के बाजार के लिए चीन सबसे बड़ा आयातक और निर्यातक होने के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका पाकिस्तान में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है और पाकिस्तान का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है.
अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते रोलर कोस्टर की तरह रहे हैं.1979 से 1989 तक, अमेरिका और पाकिस्तान ने अफगान मुजाहिदीन की फंडिंग में सहयोग किया, जिन्होंने सोवियत संघ को सोवियत-अफगान युद्ध में शामिल किया. लेकिन उनके संबंध उस वक्त खराब हो गए, जब अमेरिका ने पाकिस्तान पर गुपचुप परमाणु हथियार बनाने पर बैन लगा दिया था. जबकि पाकिस्तानी प्रशासकों ने कहा था कि भारत से अपनी रक्षा करने का एकमात्र साधन यही है.
इन सबके बावजूद पाकिस्तान अमेरिकी भू-राजनीतिक रणनीति में एक अहम साझेदार और 2002 से एक प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी रहा है. 21 जुलाई 2019 को जब पाक पीएम इमरान खान ने यूएस का दौरा किया था, जब डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि दोनों देशों के संबंधों को रीसेट करना चाहिए. दोनों देश तब सैन्य रिश्तों को मजबूत करने पर सहमत हुए थे. हालांकि इससे पहले और बाद में भी अमेरिका कई बार आतंकवादियों पर एक्शन नहीं लेने को लेकर पाकिस्तान की मदद बंद कर चुका है. अफगानिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान की अमेरिका ने खासी मदद ली थी. पाकिस्तान के कई ऐसे सैन्य बेस हैं, जिनका अमेरिका इस्तेमाल कर सकता है. अमेरिका कई तरह के हथियार और लड़ाकू विमान भी पाकिस्तान को सप्लाई करता है, जिसमें एफ-16 लड़ाकू विमान भी शामिल है.
चीन और पाकिस्तान के संबंध
इमरान खान की कुर्सी जाने के बाद चीन का चौंकाने वाला बयान आया है. चीन ने कहा है कि इमरान खान से ज्यादा शहबाज शरीफ दोनों देशों के रिश्तों के लिए बेहतर साबित होंगे. पाकिस्तान और चीन के संबंध बरसों पुराने हैं.चीन पाकिस्तान का हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता और उसका तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन चुका है. हाल ही में, दोनों देशों ने पाकिस्तान के असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सुधार के लिए सहयोग करने का निर्णय लिया है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, पाकिस्तान चीन का सबसे बड़ा हथियार खरीदार है, जिसकी गिनती लगभग 47% चीनी हथियारों के एक्सपोर्ट में होती है.
चीन-पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक रिश्ते 1950 में स्थापित हुए थे. सीमा विवाद 1963 में सुलझे और सैन्य मदद 1966 में शुरू हुई. 1972 में दोनों में सामरिक गठबंधन बना और आर्थिक सहयोग का आगाज 1979 में हुआ. चीन के लिए इस्लामिक बिरादरी में पाकिस्तान एक मुख्य पुल है. चीन सीपीईसी यानी चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का भी निर्माण कर रहा है. दोनों देश मिलकर जेएफ-17 थंडर लड़ाकू विमान भी बना रहे हैं. चीन का पाकिस्तान के ग्वादर सी पोर्ट का सबसे बड़ा निवेश है. दोनों देश पाकिस्तान के लिए रोजी-रोटी जैसे हैं. ऐसे में नए प्रधानमंत्री दोनों देशों के बीच संतुलन कैसे साधते हैं, ये देखने वाली बात होगी.