मास्क न पहनने पर कोई जुर्माना नहीं… कहीं जल्दबाजी तो नहीं कर रहे हैं, पढ़िए एक्सपर्ट की राय

नई दिल्ली: भारत में कोरोना के मामले (Corona Cases In India) काफी कम हुए जिसके बाद लगभग सभी पाबंदियों को हटा लिया गया। इसके बीच कई देशों में कोरोना के मामले फिर बढ़ने शुरू हो गए हैं और भारत में भी कोरोना के नए वेरिएंट XE (Corona New XE Variant) को लेकर आशंका जताई जा रही है। कोरोना के केस कम हुए जिसके बाद कई राज्यों ने उस नियम को हटा दिया कि मास्क पहनना (Mask Mandate) अनिवार्य है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह कदम राज्यों की ओर से जो उठाए गए हैं वो जल्दबाजी में लिए गए हैं या उनकी ओर से जो फैसला किया गया है वो सही है। इसको लेकर विशेषज्ञों की भी अलग-अलग राय है। कहा जा रहा है कि जब केस इतने कम हैं अब नहीं तो आखिर कब यह नियम हटे, वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि खतरा है अभी।

मास्क को अनिवार्य किए जाने को खत्म करने का समय आ गया

ICMR महामारी विज्ञान और संचारी रोगों के पूर्व प्रमुख ललित कांत का कहना है कि भारत में कोविड -19 की वर्तमान स्थिति को देखते हुए मास्क को अनिवार्य किए जाने के नियम को खत्म करने का समय आ गया है। कोरोना के मामले और अस्पताल में भर्ती होने के मामले अब तक के सबसे निचले स्तर पर हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था पर कोई दबाव नहीं है। कोरोना पॉजिटिविटी रेट कम है और नए मामले भी कम हैं।

रिसर्च से यह पता चला है कि जब लोग अधिक संख्या में नए मामलों के आने और इससे होने वाली और मौतों के बारे में सुनते हैं तो लोग स्वेच्छा से मास्क पहनते हैं। उदाहरण के लिए, वे बाजारों, दुकानों, सार्वजनिक परिवहन के उपयोग के वक्त मास्क पहनते हैं। इससे पता चलता है कि व्यक्ति खतरे को देखते हुए स्वेच्छा से निर्णय लेते हैं। किसी सरकारी आदेश की आवश्यकता नहीं है। साथ ही, यह डर बेवजह है कि आदेश वापस लेने के बाद लोग तुरंत मास्क उतार देंगे। फेस मास्क कोविड -19 महामारी से बचने का प्रतीक बन गया है। यह आदत पड़ने में समय लेती है लेकिन एक बार लग जाने के बाद यह अचानक से नहीं जाती।

भारत में एक सच्चाई यह भी है कि ज्यादातर लोग जुर्माने के डर से सिर्फ मास्क पहने हुए थे। उन्होंने न केवल कम-प्रभावी मास्क पहने थे बल्कि उन्हें गलत तरीके से पहना था – माथे या ठुड्डी पर लटका हुआ, एक कान से लटका हुआ, या केवल मुंह को ढंकते हुए, नाक को खुला रखते हुए। दुनिया भर में कई सरकारों ने कोरोनोवायरस मास्क के आदेश में ढील दी है क्योंकि हाल के हफ्तों में ओमीक्रोन वेरिएंट के मामलों में तेजी से गिरावट आई है। भारत में भी, महाराष्ट्र, दिल्ली, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों ने इस महीने से कोविड -19 मानदंडों में ढील देने की घोषणा की है।

क्या बहुत जल्दबाजी में तो नहीं कर रहे हैं
जैसे-जैसे मामले कम हो रहे हैं कई राज्यों ने मास्क को अनिवार्य रखे जान के नियम को हटा लिया है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विशेषज्ञ गिरिधर आर बाबू का कहना है कि मास्क का उपयोग बंद करने से पहले हमें खुद से पूछना चाहिए। क्या कोविड -19 पृथ्वी से गायब हो गया है। जवाब साफतौर पर ना है। यह तब तक नहीं है जब तक विश्व स्वास्थ्य संगठन यह घोषणा नहीं करता कि महामारी समाप्त हो गई है। मास्क को एक साधारण सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय के रूप में देखने के बजाय, जो संक्रामक रोगों के प्रसार को रोक सकता है, मास्क को एक बुरे उपकरण के रूप में देखा जा रहा है।

मास्क को लेकर पेनल्टी की जरूरत नहीं है। गिरिधर आर बाबू का कहना है कि नाकारात्मकता का एक कारण लोगों में यह भावना है कि उन पर मास्क थोपे जा रहे हैं। लोगों को फैसला करने दें। उदाहरण के लिए, यदि कोई बुजुर्ग व्यक्ति मास्क पहनना जारी रखने का निर्णय लेता है, तो उन्हें क्यों रोका जाए। साथ ही, सरकारी एजेंसियों, विशेषज्ञों और मीडिया का यह कर्तव्य है कि वे न केवल कोविड-19 बल्कि अन्य संक्रामक रोगों के संचरण को रोकने में मास्क की उपयोगिता और मास्क पहनने के न्यूनतम जोखिमों के बारे में लोगों को जागरूक करें। हम जिस भीड़-भाड़ वाली जगह में रहते हैं वहां मास्क से बचाव होता है।

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