अरुण अशेष, पटना: स्थानीय प्राधिकार से भरी जाने वाली विधान परिषद की 24 सीटों का परिणाम आ गया। यह उस अनुमान के करीब है कि इस चुनाव में सबसे बड़ी अपील धन की होती है। उसकी हैसियत के सामने कोई नहीं टिकता। फिर भी राजनीतिक दलों की आम चुनाव जैसी सक्रियता रहती है। दलों के बड़े नेता और सरकार के मंत्री चुनाव प्रचार करते हैं। सो, यह नहीं कहा जा सकता है कि राजनीतिक दलों की भूमिका शून्य हो जाती है। परिणाम इस अनुमान के करीब ही है कि एनडीए के दोनों घटक दल-भाजपा और जदयू आपस में लड़े। राजद-कांग्रेस के आपसी झगड़े विपक्षी दलों को भी नुकसान हुआ। कांग्रेस को कम, राजद को अधिक। कम से कम पांच सीटें-कटिहार, दरभंगा, सीतामढ़ी, पूर्णिया और गोपालगंज में कांग्रेस ने राजद का खेल बिगाड़ा।
आपसी लड़ाई रही अधिक असरदार
सबसे असरदार एनडीए की आपसी लड़ाई रही। सिवान में जदयू के एक पूर्व विधायक ने भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। पूर्वी चंपारण में भाजपा के एक सांसद पर आरोप लगा कि वे अपनी पार्टी की हार के सूत्रधार बने। यहां से निर्दलीय महेश्वर सिंह की जीत में उनका योगदान है। मधुबनी में कांग्रेस कुछ नहीं कर पाई। राजद के बागी की जीत हुई। एनडीए से जदयू के उम्मीदवार थे। भाजपा ने अपने बागी की मदद की। परिणाम: एनडीए उम्मीदवार की हार हो गई। दोनों दलों के वोट एक साथ जुटते तो जीत भी हो सकती थी।
मधुबनी में लुक छिपकर प्रचार
बेगूसराय में जदयू के विधायक के भाई की जीत कांग्रेस टिकट पर हुई। मधुबनी में भाजपा लुक छिपकर प्रचार कर रही थी। बेगूसराय में जदयू के विधायक का विरोध खुलेआम था। भागलपुर-बांका में जदयू को अपने विधायक की पत्नी की निर्दलीय उम्मीदवारी से जीत का खतरा था। लेकिन, हिसाब किताब बता रहा है कि यहां जदयू को बागी उम्मीदवार के खड़ा होने का लाभ मिला। आकलन किया जा रहा है कि जदयू के बागी को आया वोट अगर राजद समर्थित भाकपा उम्मीदवार के पक्ष में जाता तो परिणाम बदल भी सकता था।
मुंगेर में उम्मीदवारी को लेकर देर तक घमासान
मुंगेर में उम्मीदवारी को लेकर जदयू के भीतर देर तक घमासान चला। सरकार के एक मंत्री परिवार में ही उम्मीदवारी चाह रहे थे। जदयू की प्रतिबद्धता संजय प्रसाद के प्रति थी। काफी देरी से उनका टिकट तय हुआ। यह नहीं कहा जा सकता है कि लखीसराय डांस गिरफ्तारी से उत्पन्न विवाद का मुंगेर के चुनाव पर असर नहीं पड़ा। इस विवाद के कारण भाजपा-जदयू के बीच जो कटुता पैदा हुई, उससे परिणाम अछूता नहीं रहा। जल्द ही एनडीए के घटक दल हार-जीत की सूक्ष्म समीक्षा करेंगे। संभव है कि उसमें अंदरूनी लड़ाई के प्रमाण जुटाए जाएं।