लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। सपा मुखिया अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच पिछले कुछ दिनों से चल रहे घटनाक्रम ने भाजपा के लिए ‘चरखा दांव’ की नई जमीन तैयार कर दी है। प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव की सत्ता खेमे से बढ़ रही नजदीकियों के बाद माना जा रहा है कि भाजपा नितिन अग्रवाल की तरह ही शिवपाल को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाकर सपा के खिलाफ बड़ा रणनीतिक दांव चल सकती है।
अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच लंबी चली खींचतान पर इस विधानसभा चुनाव में विराम लगता नजर आया। अलग पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने वाले शिवपाल अपने भतीजे व सपा मुखिया से कुछ सीटों के लिए बातचीत करते रहे, लेकिन अंतत: अखिलेश ने सिर्फ एक ही सीट उनके लिए छोड़ी।
उसके बाद प्रसपा अध्यक्ष परिवार में सब कुछ ठीक और परिवार की एकजुटता का संदेश देते रहे, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद परिस्थितियां फिर पहले जैसी होती महसूस हो रही हैं। अखिलेश ने सपा विधायक दल की बैठक बुलाई, लेकिन उसमें शिवपाल को नहीं बुलाया, जबकि वह सपा के टिकट पर ही जसवंत नगर से चुनाव जीते हैं।
इसके बाद जब सहयोगी दलों की बैठक का न्योता पहुंचा तो प्रसपा मुखिया उसमें नहीं पहुंचे। इसी बीच चर्चा शुरू हुई कि शिवपाल ने दिल्ली में भाजपा के कुछ नेताओं से भेंट की है। वह बेशक, पुष्ट नहीं हुई, लेकिन यहां लखनऊ में वह जरूर मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर पहुंचे और योगी आदित्यनाथ से मिले।
इधर, शिवपाल ने ट्विटर पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ को फालो करना शुरू कर दिया। यह भाजपा के प्रति उनकी बढ़ती नजदीकियों के स्पष्ट संकेत हैं। तभी से चर्चा शुरू हो गई कि भाजपा शिवपाल को आजमगढ़ से लोकसभा उपचुनाव लड़ा सकती है। उन्हें राज्यसभा भी भेजा जा सकता है।
इन परिस्थितियों ने अब नई अटकलों को जन्म दे दिया है। माना जा रहा है कि छह बार के वरिष्ठ विधायक शिवपाल यादव को भाजपा विधानसभा उपाध्यक्ष बना सकती है। व्यवस्था अनुसार विधानसभा अध्यक्ष सत्ता दल का, जबकि उपाध्यक्ष विपक्ष का होता है। जिस तरह भगवा रणनीतिकारों ने सपा खेमे में सेंध लगाते हुए उसके विधायक नितिन अग्रवाल को उपाध्यक्ष बनाया था, वैसे ही सपा विधायक शिवपाल पर दांव आजमा सकती है।
नितिन अब योगी सरकार-2.0 में आबकारी मंत्री हैं। ऐसा हुआ तो शिवपाल की कुर्सी नेता विरोधी दल अखिलेश के बगल में होगी। खास बात यह कि यदि प्रसपा मुखिया इसके लिए तैयार हो चुके होंगे तो सपा चाहकर भी भाजपा की इस रणनीति को असफल नहीं कर पाएगी।