दुनिया भर में क्लाइमेंट चेंज को गंभीरता से लिया जा रहा है और वैकल्पिक फ्यूल नीतियां इसके लिए तैयार की जा रही हैं। कोयले का उपयोग पूरी तरह से किस तरह से बंद हो अथवा किस तरह से चरणबद्ध तरीके से इसके उपयोग को कम किया जा सकता है। इसके लिए ग्लासगो में फेज डाउन अथवा फेज इट आउट पर गंभीरता से बहस हुई। महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया ने समझा कि प्रकृति को बचाने के लिए प्लान बी पर काम करना शुरू करना होगा।
सुखद बात यह है कि छत्तीसगढ़ शासन की नीतियां विकास का ऐसा मॉडल प्रस्तुत करती हैं जिसमें धरती के संसाधनों को ही बढ़ावा देकर और उनका उचित दोहन कर विकास के सहज रास्ते पर बढ़ा जा सकता है। पूरे विश्व में अल्टरनेट फ्यूल्स पर फोकस किया जा रहा है। अल्टरनेट फ्यूल्स पर हर देश का फोकस अलग हो सकता है जैसे नीदरलैंड ने पवन चक्कियों को प्रोत्साहित किया क्योंकि वहां पर हवाएं तेज चलती हैं। ब्रिटिश सरकार तेजी से ई-ट्रांसपोर्ट पर काम कर रही है और इसकी अधोसंरचना भी तैयार कर रही है।
भारत को भी अपनी प्रकृति के मुताबिक इसके लिए अलग रास्ता अख्तियार करना होगा। कृषि प्रधान और वनोपज संपदा से विकसित देश होने के नाते भारत इस रास्ते पर बढ़ सकता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने यह माडल प्रस्तुत किया है। पाटन के ग्राम सिकोला में जिस तरह से गोबर के माध्यम से बिजली उत्पादन के प्रयोग हुए हैं वे बहुत शुभ हैं। भविष्य में वे और परिवर्धित होंगे तथा वैकल्पिक फ्यूल का एक अच्छा माडल प्रस्तुत करेंगे। गौठानों के लिए जिस तरह से पैरादान हो रहे हैं उससे पराली की समस्या दूर हो रही है और शुभ्र साफ वातावरण के पक्ष में राह खुल रही है।
राजीव गांधी किसान न्याय योजना के माध्यम से प्लांटेशन को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। पहली बार सरकार द्वारा प्लांटेशन पर इस तरह से सब्सिडी उपलब्ध कराई जा रही है जो प्रकृति को संरक्षित करने एवं इसके माध्यम से आगे बढ़ने का जरिया है। जंगलों को बचाने का सबसे व्यावहारिक तरीका यह है कि इनकी उपयोगिता को कायम रखा जाए। जंगलों की उपयोगिता इनके वनोपजों में हैं। वनोपज के उचित दाम संग्राहकों को मिले तो इनके फलने-फूलने और संरक्षण की अतिरिक्त कोशिश भी होगी। इन्हें उचित मूल्य पर खरीदने और इसकी प्रोसेसिंग के लिए सरकार ने जो कदम उठाये हैं उससे निश्चित रूप से वनोपज संग्राहकों को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था के लिए भी विपुल आर्थिक अवसर उपलब्ध होंगे।
देश भर में जैविक वनौषधियों की माँग बढ़ी है। बस्तर और सरगुजा जैसे क्षेत्रों में अब भी रासायनिक प्रदूषण बेहद कम है और निश्चित रूप से ही यहां के उत्पाद जब विक्रय के लिए जाएंगे तो इनकी अतिरिक्त माँग होगी और मूल्य भी बेहतर मिलेगा। बस्तर और सरगुजा के इस वैशिष्ट्य के सुंदर प्रयोग का निर्णय जो शासन ने लिया है उससे निश्चित रूप से इस क्षेत्र में आर्थिक अवसर भी बढ़ेंगे और बिना विस्थापन की पीड़ा झेले लोग अपनी आय बढ़ा सकेंगे। इसी तरह नरवा योजना देखें तो वृहत रूप में जलस्तर बढ़ने पर खेती किसानी के लिए तो जल उपलब्ध ही होगा। पनबिजली परियोजनाओं की सफलता दर भी बढ़ेगी।
महात्मा गांधी ने सुराजी गांवों का सपना देखा था। ग्लोबलाइजेशन के दौर में ग्लोबल मार्केट से जुड़ने के बावजूद उसके दबाव में नहीं आने का सबसे अच्छा रास्ता यह है कि आप अपने स्थानीय बाजार को भी मजबूत रखें, स्वावलंबी बनें। यह एक तरह से ग्लोबलाइजेशन में अपनी भूमिका सुरक्षित रखने का बी प्लान है। ग्रामीण क्षेत्र अपनी जरूरतों के मुताबिक बहुत से उत्पाद स्वयं तैयार कर लें तो धीरे-धीरे हर चीज के लिए निर्भर रहने की प्रवृति घटेगी। कोरोना जैसे संकटों के दौर में सुरक्षित रहने के लिए यह बहुत जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर भी अपनी उत्तरजीविता बनाने के लिए किसी तरह का माडल हो। छत्तीसगढ़ में कोरोना काल में भी ग्रामीण आजीविका उसी तरह चलती रही क्योंकि कृषि प्रधान क्षेत्र होने के साथ ही बाड़ियों का विकास भी किया गया था। लाकडाउन के दिनों में इन्हीं बाड़ियों ने ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जी की आपूर्ति की।
छत्तीसगढ़ शासन की नीतियां प्रदेश की प्रकृति के अनुरूप तैयार की गई हैं और इनके क्रियान्वयन से ठोस आर्थिक विकास का रास्ता बिना प्रकृति से छेड़छाड़ किये निकल रहा है। शुभ यह है कि ग्लासगो में जो निष्कर्ष निकाले गये, उन पर तेजी से क्रियान्वयन हमारे राज्य में हो रहा है।