पहली बार भारत SpaceX के फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए अपना सैटेलाइट लॉन्च करेगा

यह पहली बार है जब इसरो फाल्कन-9 हेवी लिफ्ट लांचर का उपयोग करेगा जो कि फ्लोरिडा से उड़ान भर सकता है.

नई दिल्ली : 

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अपने अगली पीढ़ी के भारी संचार उपग्रह जीसैट-20 को लॉन्च करने के लिए स्पेसएक्स पर निर्भर रहेगी. यह पहली बार है जब अंतरिक्ष विभाग और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) फाल्कन-9 हेवी लिफ्ट लांचर का उपयोग करेगा. इस भारतीय मिशन के लिए फ्लोरिडा से उड़ान भरी जा सकती है.

यह डील इसरो की कमजोर स्थिति को भी उजागर करती है. इसरो के पास अभी भी ऐसे रॉकेट का अभाव है जो बड़े संचार उपग्रहों को लिफ्ट करने में सक्षम हों. इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ का कहना है कि भारत को स्पेसएक्स के पास जाना पड़ा क्योंकि ‘समय पर कोई अन्य रॉकेट उपलब्ध नहीं है.’

इसरो की कामर्शियल शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ने इस साल की दूसरी तिमाही में संभावित लिफ्टऑफ के लिए स्पेसएक्स के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए हैं. स्पेसएक्स डील भी एक अहम बदलाव का संकेत देने वाली है क्योंकि अब तक भारत भारी उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए फ्रांस की एरियनस्पेस कंसोर्टियम पर बहुत अधिक निर्भर रहता था. भारत के अपने रॉकेटों में बहुत भारी चार टन से अधिक के सैटेलाइटों को जियोस्टेशनरी आर्बिट में लॉन्च करने की क्षमता नहीं है.

एनएसआईएल के अनुसार जीसैट-20 अंडमान और निकोबार, जम्मू और कश्मीर और लक्षद्वीप सहित पैन-इंडिया कवरेज वाले 32 बीम के साथ का-का बैंड हाई थ्रू पुट (HTS) क्षमता प्रदान करेगा. NSIL इसरो के माध्यम से GSAT-20 सैटेलाइट का निर्माण कर रहा है. उपग्रह का वजन 4700 किलोग्राम है, यह करीब 48Gpbs की HTS क्षमता प्रदान करेगा. इस सैटेलाइट को खास तौर पर दूरस्थ/संपर्क से बाहर के क्षेत्रों में सेवा की जरूरतों को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है.  NSIL के सीएमडी डॉ राधाकृष्णन दुरईराज का कहना है कि जीसैट-24 मिशन के बाद एनएसआईएल द्वारा चलाया जा रहा यह दूसरा मांग आधारित कम्युनिकेशन सैटेलाइट मिशन है. जीसैट-24 की पूरी क्षमता टाटा प्ले को लीज पर दी गई थी. दुरईराज ने कहा कि यह नई सैटेलाइट डील केवल इस बात की पुष्टि करती है कि सरकार की ओर से शुरू की गई सुधार प्रक्रिया नतीजे दे रही है. एनएसआईएल ने यह खुलासा नहीं किया है कि इस सैटेलाइट की क्षमता किसने खरीदी है.

जब फ्रांस और एरियनस्पेस वास्तव में सभी मौकों पर भरोसेमंद साझेदार थे तब भारत ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के स्वामित्व वाले इस रॉकेट पर अपने 23 भारी कम्युनिकेशन सैटेलाइट लॉन्च किए. दुरईराज ने कहा कि, लेकिन 21वीं सदी के नए युग में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के लिए निचले स्तर पर ध्यान देना ‘अगर कामर्शियल और सार्थक तैयारी है तो हम ऐसा करेंगे.’ यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि एरियनस्पेस ने अपने सबसे भरोसेमंद रॉकेट एरियन-5 को रिटायर कर दिया है और उसे एरियन-6 से रिप्लेस करने में बहुत देरी हो चुकी है.

अब GSAT 20 उपग्रह का नाम  GSAT-N2 होगा. यह दूरदराज के क्षेत्रों में जरूरी ब्रॉडबैंड इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराएगा. यह साफ तौर पर वनवेब (OneWeb) और स्टारलिंक (Starlink) के साथ प्रतिस्पर्धा में होगा, जिन्हें जल्द ही लाइसेंस मिल सकता है. नए टेलीकॉम कानून ने उनके लिए अपनी सेवाएं शुरू करने का रास्ता खोल दिया है. अंतरिक्ष आधारित इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर मार्केट को सक्रिय रूप से लुभाने वाले अन्य खिलाड़ियों में रिलायंस जियोस्पेस भी शामिल है.

भारत का सबसे भारी रॉकेट जिसे बाहुबली या लॉन्च व्हीकल मार्क 3 कहा जाता है, केवल 4000 किलोग्राम तक के सैटेलाइटों को भू-स्थिर कक्षा (geo-stationary orbit) में ले जा सकता है. एस सोमनाथ नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) नाम के एक भारी रॉकेट के तत्काल निर्माण की जरूरत पर जोर दे रहे हैं. यह रॉकेट 10,000 किलोग्राम तक वजन उठाकर उसे कक्षा में ले जा सकता है. इसे पहले से ही विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में डिजाइन किया जा रहा है. इसके मूर्त रूप लेने में कुछ वर्ष और लगेंगे. सोमनाथ का कहना है, ‘भारत की प्रक्षेपण क्षमता को लागत प्रतिस्पर्धी होने के साथ-साथ भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए बढ़ाना होगा.’

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