सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अब राज्यपाल इस सत्र को वैध मानते हुए अपने पास लंबित बिल पर फैसला ले. विधानसभा सत्र की वैधता पर राज्यपाल की ओर से संदेह जताना सही नहीं है. विधानसभा में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि है. लिहाजा सत्र को राज्यपाल द्वारा गैरकानूनी ठहराना संवैधानिक रूप से सही नहीं है.”
नई दिल्ली:
पंजाब में भगवंत मान (Bhagwant Mann) के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार और राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित (Banwari Lal Purohit) के बीच चल रहे विवाद पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस (CJI DY Chandrachud) ने पंजाब के राज्यपाल को सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 19 और 20 जून को पंजाब विधानसभा के सत्र को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया है. कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या राज्यपाल को इस बात का जरा भी अंदेशा है कि वो आग से खेल रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच बड़ा मतभेद है. अगर राज्यपाल को लगता भी है कि बिल गलत तरीके से पास हुआ है, तो उसे विधानसभा अध्यक्ष को वापस भेजना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अब राज्यपाल इस सत्र को वैध मानते हुए अपने पास लंबित बिल पर फैसला ले. विधानसभा सत्र की वैधता पर राज्यपाल की ओर से संदेह जताना सही नहीं है. विधानसभा में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि है. लिहाजा सत्र को राज्यपाल द्वारा गैरकानूनी ठहराना संवैधानिक रूप से सही नहीं है.” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब के राज्यपाल के पास यह कहने का अधिकार नहीं है कि विधानसभा सत्र वैध नहीं है
लंबित विधेयकों पर सत्र वैध होने के आधार पर फैसला लेना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबित विधेयकों पर राज्यपाल को सत्र वैध होने के आधार पर निर्णय लेना चाहिए. सरकार सत्रावसान के बिना सत्र को अनिश्चित काल तक नहीं बढ़ा सकती. संविधान स्पीकर की अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने की शक्ति को मान्यता देता है, इसका इस्तेमाल सदन को निलंबित एनीमेशन में रखने के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता है.
अदालत ने कहा, “संविधान की बुनियाद में यह सिद्धांत निहित है कि निर्णय निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में हैं. राज्यपाल का उद्देश्य संवैधानिक चिंताओं के मामलों पर सरकार का मार्गदर्शन करने वाला एक संवैधानिक प्रमुख होना है.”
“मेरे सामने राज्यपाल के लिखे दो पत्र”
चीफ जस्टिस ने कहा कि मेरे सामने राज्यपाल के लिखे दो पत्र हैं जिसमें उन्होंने सरकार को कहा कि चूंकि विधानसभा का सत्र ही वैध नहीं तो वो बिल पर अपनी मंजूरी नहीं दे सकते हैं. राज्यपाल ने ये कहा कि वो इस विवाद पर कानूनी सलाह के रहे हैं, हमें कानून के मुताबिक ही चलना होगा. केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि राज्यपाल का पत्र आखिरी फैसला नहीं हो सकता है. केंद्र सरकार इस विवाद को सुलझाने के लिए रास्ता निकाल रही है.
सॉलिसिटर जनरल ने मांगा समय
पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में कोर्ट से ओर समय मांगा. उन्होंने कहा कि कोर्ट उनको इस मामले में एक हफ्ते का समय दे. वह इस मामले में कोई न कोई हल निकाल लेंगे. ऐसे में बेंच ने उनसे सवाल किया कि अगर निकालना था तो अदालत आने की जरूरत क्यों पड़ी.
क्या है पूरा मामला?
पंजाब सरकार ने 19 और 20 जून को विधानसभा का सत्र बुलाया था. इस सत्र में SGPC संशोधन बिल, आरडीएफ फंड पेंडिंग, यूनिवर्सिटी चांसलर संबंधी विधेयक और पंजाब पुलिस एक्ट बिल पास हुए. हालांकि, पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित का कहना है कि पंजाब सरकार द्वारा जून में बुलाया गया विधानसभा सत्र असंवैधानिक है, इसलिए इस सत्र में किए गए काम भी असंवैधानिक हैं. इसके खिलाफ पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है. सरकार का कहना है कि अभी सत्र का सत्रावसान नहीं हुआ है, तो सरकार जब चाहे सत्र बुला सकती है.
तमिलनाडु मामले में SC ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी शासित राज्यों 1) पंजाब 2) तमिलनाडु द्वारा संबंधित राज्यपालों द्वारा विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को सहमति नहीं देने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 12 विधेयकों, अभियोजन की मंजूरी, दोषियों की समयपूर्व रिहाई और टीएनपीएससी सदस्यों की नियुक्ति के प्रस्तावों को महीनों तक दबाए रखने पर गंभीर चिंता व्यक्त की और केंद्रीय गृह मंत्रालय से 20 नवंबर तक जवाब मांगा.