मध्य प्रदेश में आयुष डॉक्टर बनाने का ‘बड़ा खेल’ खत्म, एडमिशन के लिए अब NEET पास करना जरूरी

मध्य प्रदेश में 50 से ज्यादा आयुष चिकित्सा महाविद्यालय हैं जिनमें हर साल 7000 से ज्यादा विद्यार्थी एडमिशन लेते हैं यहां अब वे विद्यार्थी ही एडमिशन ले पाएंगे जो नीट परीक्षा में न्यूनतम योग्यता अंक हासिल करेंगे.

जबलपुर: 

मध्य प्रदेश में निजी कॉलेज बड़ी फीस लेकर छात्रों को आयुष डॉक्टर बनाने का बड़ा खेल खेल रहे थे. मध्य प्रदेश के निजी आयुर्वेदिक यूनानी होम्योपैथी और सिद्धा कॉलेज उन सभी छात्रों को अपने यहां एडमिशन दे रहे थे जिन्होंने कभी राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (NEET) दी ही नहीं थी. नीट जिसे मूल रूप से ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) भी कहा जाता है, यह परीक्षा भारतीय चिकित्सा और दंत चिकित्सा संस्थानों में एमबीबीएस और बीडीएस डिग्री के लिए प्रवेश परीक्षा है. इसे राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा संचालित किया जाता है.

दरअसल, नेशनल कमीशन फॉर इंडियन मेडिसिन (NCIM) नई दिल्ली ने साल 2021 में नीट परीक्षा पास किए बिना एडमिशन देने पर रोक लगा दी थी, इस आदेश के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने भी बिना नीट परीक्षा पास किए विद्यार्थियों के एडमिशन पर रोक लगा दी थी, इस आदेश के खिलाफ मध्य प्रदेश के 35 होम्योपैथी, यूनानी, सिद्धा और आयुर्वेदिक कालेजों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की और एक अंतरिम आदेश भी ले लिया और साल 2021 और 2022 में कुछ छात्रों को एडमिशन दे दिए थे.

नेशनल कमिशन फॉर इंडियन मेडिसिन नई दिल्ली के एडवोकेट आदित्य संघी ने बताया कि जिस तरह एलोपैथिक डॉक्टर नीट परीक्षा पास करने के बाद एक गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्राप्त करते हैं इसी तरह यूनानी डॉक्टरों को भी नीट परीक्षा में न्यूनतम अंक पाना अनिवार्य किया जाना चाहिए. एलोपैथिक डॉक्टर हों या होम्योपैथी, यूनानी, आयुर्वेदिक, सिद्धा चिकित्सा पद्धति का डॉक्टर, वह इलाज तो मनुष्य का ही करते हैं इसलिए योग्य डॉक्टर ही समाज में पहुंचे यह NCIM की मर्जी है.

वहीं, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने 99 पेज के फैसले में इस बात को माना की समाज में पढ़े लिखे योग्य डॉक्टर ही आने चाहिए चाहे वह किसी भी चिकित्सा पद्धति के हों. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि जो विद्यार्थी वर्ष 2021 या 22 में एडमिशन ले चुके हैं उन्हें स्पेशल प्रिविलेज देते हुए पढ़ाई पूरी करने की अनुमति दी जाती है लेकिन आगामी वर्षों में वही विद्यार्थी इन कॉलेजों में एडमिशन ले पाएंगे जिन्होंने नीट परीक्षा में सामान्य वर्ग के लिए 50 परसेंटाइल और अनुसूचित जाति, जनजाति, आरक्षित वर्ग के लिए 45 परसेंटाइल न्यूनतम अंक हासिल किए हों.

याचिकाकर्ता कॉलेजों की तरफ से हाईकोर्ट में दलील दी गई कि नीट परीक्षा में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति को ध्यान में रखकर परीक्षा ली जाती है. आयुष चिकित्सा पद्धति के लिए एक अलग से नीट परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए. आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी और सिद्धा चिकित्सा पद्धति कि शिक्षा के लिए अलग परीक्षा इन पद्धति को ध्यान में रखकर ली जाए ताकि विद्यार्थी तैयारी कर सकें. याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट से अपील की कि वर्तमान नीट परीक्षा जबरदस्ती इन कॉलेजों पर थोपी जा रही है. इस तर्कों को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया.

एडवोकेट आदित्य संघी ने एनडीटीवी से कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है, देश के अनेक प्रांतों में भी यह हो रहा है लेकिन अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला देश के अनेक राज्यों के लिए नजीर बनेगा और देश में विद्यार्थी आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी या सिद्धा चिकित्सा पद्धति में नीट में न्यूनतम अंक हासिल कर योग्य चिकित्सक बन सकेंगे और अयोग्य व्यक्ति पैसे के दम पर अब डॉक्टर नहीं बन पाएंगे. मध्य प्रदेश में 50 से ज्यादा आयुष चिकित्सा महाविद्यालय हैं जिनमें हर साल 7000 से ज्यादा विद्यार्थी एडमिशन लेते हैं यहां अब वे विद्यार्थी ही एडमिशन ले पाएंगे जिन्होंने नीट परीक्षा में न्यूनतम योग्यता अंक प्राप्त किए हों.

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