Hijab Case Update: मामले को लेकर नई बेंच के सामने सुनवाई की दोबारा शुरुआत हो सकती है। उस दौरान जस्टिस गुप्ता और जस्टिस धूलिया की तरफ से उठाए गए सवालों पर भी नई बेंच विचार कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को जजों की अलग-अलग राय ने हिजाब मामले को विस्तार दे दिया है। फिलहाल, साफ नहीं हो पाया है कि हिजाब पर अंतिम स्थिति क्या होगी। हालांकि, कोर्ट ने यह मामला बड़ी बेंच के सामने रखने का फैसला कर लिया है, लेकिन अभी सुनवाई की तारीख का ऐलान नहीं हुआ है। अब सवाल है कि आगे क्या? इसे विस्तार से समझते हैं-
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य के शिक्षण संस्थानों से हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार कर दिया था। उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
कानूनी मोर्चे पर ये हैं संभावनाएं
– भारत के मुख्य न्यायाधीश एक नई बेंच गठित कर सकते हैं, जिसमें जजों की संख्या तीन या इससे ज्यादा हो सकती है। जबकि, फैसला सीजेआई की तरफ से ही लिया जाएगा।
– मामले को लेकर नई बेंच के सामने सुनवाई की दोबारा शुरुआत हो सकती है। उस दौरान जस्टिस गुप्ता और जस्टिस धूलिया की तरफ से उठाए गए सवालों पर भी नई बेंच विचार कर सकती है।
– सुप्रीम कोर्ट की तरफ से रोक नहीं लगाए जाने के चलते कर्नाटक उच्च न्यायालय का आदेश भी वैध रहेगा।
– गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस धूलिया की तरफ से दिए गए फैसले पर याचिकाकर्ता निर्भर रह सकते हैं। जस्टिस धूलिया का कहना है कि हिजाब पहनना एक व्यक्ति के आजादी के अधिकार के तहत सुरक्षित है।
– इधर, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अंतिम फैसला आने तक कर्नाटक सरकार ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध बरकरार रखा है। अब राज्य सरकार के पास भी कर्नाटक हाईकोर्ट और SC के जस्टिस गुप्ता के फैसले का समर्थन हासिल है।
सुप्रीम कोर्ट में हिजाब मामला
शीर्ष न्यायाल ने करीब 10 दिनों तक सुनवाई के बाद याचिकाओं पर 22 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। 15 मार्च को कर्नाटक के उडुपी की कुछ छात्राओं ने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था।
जजों ने क्या कहा
बेंच की अगुवाई कर रहे जस्टिस गुप्ता ने मतभेद की बात कही। वहीं, जस्टिस धूलिया ने कहा कि हाईकोर्ट ने गलत रास्ता अपनाया है और अंत में हिजाब पहनना अपनी पसंद का मामला है। उन्होंने आर्टिकल 19(1)(a) और 25(1) का हलावा दिया। जस्टिस गुप्ता ने अपने फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इससे उलट जस्टिस धूलिया ने सभी अपीलों को स्वीकार किया।