बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में हैं। वह यहां विपक्ष के नेताओं के साथ मिलकर 2024 के लिए रणनीति तैयार करने में जुटे हैं। वह दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को भी साथ लेने की कोशिश में हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में हैं। वह यहां विपक्ष के नेताओं के साथ मिलकर 2024 के लिए रणनीति तैयार करने में जुटे हैं। सोमवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के बाद आज लेफ्ट के कुछ नेताओं और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से मुलाकात प्रस्तावित है। सबसे अधिक निगाहें नीतीश और केजरीवाल की मुलाकात पर टिकी हैं। राजनीतिक जानकार इसे नीतीश कुमार की असली परीक्षा बता रहे हैं।
इसकी असली वजह यह है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने पहले ही दिल्ली के सीएम अरविंद केरीवाल को 2024 में पीएम पद के लिए दावेदार घोषित कर दिया है। पार्टी का मानना है कि मौजूदा समय पर केजरीवाल ही पीएम मोदी को सबसे कड़ी चुनौती दे सकते हैं। 7 सितंबर से ही केजरीवाल 2024 के लिए अपने कैंपेन ‘मेक इंडिया नंबर वन’ कैंपेन की शुरुआत करने जा रहे हैं। सियासी जानकारों का मानना है अगले लोकसभा चुनाव में ‘आप’ अपनी ‘राष्ट्रीय ताकत’ को आजमाने का पूरा मन बना चुकी है। ऐसे में नीतीश कुमार को बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए।
केजरीवाल को विपक्ष के साथ लाने की कोशिश
माना जा रहा है कि केजरीवाल के साथ बैठक के दौरान नीतीश कुमार उनसे कांग्रेस नीत विपक्षी गठबंधन के साथ आने की अपील करेंगे। मोदी सरकार के खिलाफ जमकर मोर्चा खोल रहे केजरीवाल को साझा लड़ाई के जरिए बीजेपी सरकार को हटाने के लिए साथ आने को कहा जाएगा। दिल्ली और पंजाब में सरकार चला रही ‘आप’ तेजी से दूसरे राज्यों में भी अपने संगठन को विस्तार दे रही है। पार्टी ने महज एक दशक के अपने इतिहास में जिस तेज गति से अपने पैर जमाए हैं, उसके बाद राष्ट्रीय राजनीति में उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। यही वजह है कि खुद नीतीश कुमार ने उन्हें विपक्ष के साथ लाने का जिम्मा लिया है।
क्यों नीतीश के लिए यह असली टेस्ट?
कहा जा रहा है कि नीतीश के लिए सबसे असली परीक्षा केजरीवाल को साथ लेने में ही होगी। वैसे तो ममता बनर्जी भी काफी हद तक नीतीश की इस मुहिम से दूर दिख रही हैं। लेकिन ‘आप’ एक मात्र गैर भाजपाई दल है जिसने अपने नेता को पीएम पद का दावेदार आधिकारिक तौर पर घोषित कर दिया है। ऐसे में ‘आप’ को पीछे हटने के लिए मनाना आसान नहीं होगा। ‘आप’ के कुछ रणनीतिकारों का यह भी मानना है कि पार्टी को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कांग्रेस के साथ जाने से बचना चाहिए, क्योंकि कई राज्यों में उसकी लड़ाई देश की सबसे पुरानी पार्टी से ही है। इसके अलावा ‘आप’ का जन्म ही कांग्रेस सरकार के खिलाफ लड़ाई से हुआ और ऐसे में उसके साथ जाने पर पार्टी की छवि को नुकसान हो सकता है।