दो साल पहले कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक से लेकर कुछ दिन पहले जम्मू कश्मीर में कैंपेन कमेटी के चेयरमैन पद से इस्तीफे के बीच कई पल हैं, जिसने आजाद के कांग्रेस से अलग होने के रास्ते तैयार किए।
गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। आजाद ने इस्तीफा भले ही कल दिया हो, लेकिन सच यह है कि इसकी स्क्रिप्ट काफी पहले से ही लिखी जानी शुरू हो गई थी। बताया जाता है कि दो साल पहले कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक से लेकर कुछ दिन पहले जम्मू कश्मीर में कैंपेन कमेटी के चेयरमैन पद से इस्तीफे के बीच बहुत से ऐसे पल जाए, जिसने आजाद के लिए कांग्रेस से अलग होने के रास्ते तैयार किए। आइए जानते हैं गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस से आजाद होने की इनसाइड स्टोरी…
साल 2020 से शुरुआत
बताया जाता है कि इसकी शुरुआत हुई थी अगस्त 2020 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी बैठक से। इसमें जी-23 ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था, जिसमें संगठन के अंदर बदलाव की मांग की गई थी। लेकिन कांग्रेस के कई नेताओं को यह बात रास नहीं आई। उस वक्त कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चार जी-23 नेताओं में से गुलाम नबी आजाद के ऊपर आरोप लगे कि वह बीमार और अस्पताल में भर्ती सोनिया गांधी के ऊपर दबाव बना रहे हैं। जी-23 के सुधार की बातों से विद्रोह का अंदेशा लगाया गया और कहा गया कि इस वक्त किसी को भी पार्टी को कमजोर करने और पार्टी नेतृत्व के ऊपर दबाव बनाने की इजाजत नहीं है।
2021 में और बिगड़ी बात
साल 2021 में गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा में विपक्ष नेता का कार्यकाल समापन के करीब था। पार्टी उन्हें इस भूमिका में जारी रखना चाहती थी। लेकिन कांग्रेस नेताओं ने फीडबैक दिया कि आजाद बहुत ज्यादा नरम रवैया अपना रहे हैं। बताया गया कि साल 2019 में जब कांग्रेस लोकसभा और राज्यसभा में सरकार का विरोध कर रही थी, तब वह काम पर वापस लौट गए थे। उनके इस रवैये को लेकर राहुल गांधी भी चिढ़ गए थे। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने बताया कि हम अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहता थे। हमारे सहयोगी दल भी इसके लिए सहमत थे, लेकिन आजाद इसको लेकर हिचक रहे थे। बताया जाता है कि कांग्रेस में आजाद को प्रियंका गांधी सबसे ज्यादा सपोर्ट करती थीं। कोविड-19 के समय कांग्रेस वर्किंग कमेटी की एक मीटिंग में प्रियंका ने यह भी सुझाव दिया था कि पूर्व स्वास्थ्य मंत्री आजाद एक रेगुलर प्रेस कांफ्रेंस करें और बताएं कि सरकार आखिर इस महामारी को हैंडल करने में कहां नाकाम है।
इसके बाद हुए कुछ वाकए जिन्होंने कांग्रेस में आजाद की निष्ठा को लेकर शक की दीवार खड़ी कर दी। साल 2021 में राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद का विदाई समारोह चल रहा था। इसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी विदाई भाषण देते वक्त इमोशनल हो उठे। इस बात से कांग्रेस अंदरखाने खुश नहीं हुई। वहीं साउथ एवेन्यू लेन के बंगले पर आजाद का कब्जा कायम रहा। इससे कांग्रेस में आजाद को लेकर शक बढ़ने लगा। शुक्रवार को जब आजाद के इस्तीफे के बाद पार्टी नेता उनके ऊपर फायर थे, तो जयराम रमेश ने इन बातों का जिक्र भी कर डाला। जयराम रमेश ने कहा कि जिस नेता की पार्टी ने सबसे ज्यादा इज्जत की, उसने कांग्रेस नेतृत्व पर निजी हमला करके अपना असली चरित्र दिखा दिया। उन्होंने कहा कि पहले संसद में मोदी के आंसू, फिर पद्म विभूषण और बंगले का समय बढ़ाना। यह संयोग नहीं, आपसी सहयोग है।
पद्म सम्मान पर नहीं मिली थी पार्टी की बधाई
गुलाम नबी आजाद को लेकर कांग्रेस में असहजता किस कदर बढ़ चुकी थी, इसका अंदाजा उस वक्त लगा जब इस साल जनवरी में आजाद को पद्म विभूषण दिया गया। इसके चलते कांग्रेस में दो-फाड़ भी हुआ। कुछ नेताओं ने आजाद को बधाइयां भी दीं जबकि पार्टी की आलोचना की। तारीफ करने वाले नेताओं में जी-23 के दो नेता कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा शामिल थी। इसके अलावा कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा था कि विरोधी धड़े की सरकार आजाद की पब्लिक सर्विस को पहचान रही है तो यह एक बड़ी बात है। हालांकि कांग्रेस की तरफ से आजाद को कोई भी बधाई नहीं मिली थी। तब पार्टी के चीफ व्हिप रहे जयराम रमेश ने उल्टे पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की पद्म सम्मान लेने से इंकार करने के लिए उनकी तारीफ की थी। साथ ही उन्होंने लिखा था कि बुद्धदेव ‘गुलाम नहीं बल्कि आजाद ’ रहना चाहते हैं। यह एक तरह से आजाद के ऊपर तंज था।