वेंकैया नायडू के विदाई समारोह में राघव चड्डा ने जब पहले प्यार का जिक्र किया तो क्या था नायडू का रिएक्शन, देखें VIDEO

राघव चड्ढा ने उच्च सदन में सभापति के रूप में नायडू के योगदान को याद किया। उन्होंने सदन में आने के अपने पहले दिन के अनुभव को याद करते हुए कहा कि हर व्यक्ति को अपना पहला अनुभव याद होता है।

राज्यसभा में सोमवार को सभापति के रूप में एम वेंकैया नायडू को विदा देते हुए अधिकतर सांसदों ने जहां उनके हास्यबोध और हाजिरजवाबी की सराहना की, वहीं स्वयं नायडू ने आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद राघव चड्ढा (Raghav Chadha) की ‘पहले प्यार’ को लेकर की गई एक टिप्पणी पर ऐसी चुटकी ली, जिससे पूरे सदन में हंसी की लहर दौड़ गई।

राघव चड्ढा ने उच्च सदन में सभापति के रूप में नायडू के योगदान को याद किया। उन्होंने सदन में आने के अपने पहले दिन के अनुभव को याद करते हुए कहा, ”हर व्यक्ति को अपना पहला अनुभव याद होता है। स्कूल का पहला दिन, पहला प्रिंसिपल, पहली टीचर, पहला प्यार।” उन्होंने कहा कि जब उन्होंने अपने संसदीय जीवन की शुरुआत की तो उसमें पहले सभापति नायडू ही थे, इसलिए वह सदैव उन्हें याद रखेंगे।

‘आप’ सदस्य ने जब अपनी बात खत्म की तो नायडू ने प्रश्न किया, ”राघव, मेरे ख्याल से प्यार एक ही होता है ना? एक बार, दो बार, तीसरी बार…ऐसा होता है…नहीं ना।…पहला ही प्यार होता है ना?”

इस पर मुस्कुराते हुए चड्ढा ने कहा, ”सर, अभी मैं इतना अनुभवी नहीं हूं।”

इसके जवाब में नायडू ने भी हंसते हुए कहा, ”पहला प्यार अच्छा होता है, वही हमेशा रहना चाहिए… जिंदगी भर वही रहना चाहिए।” सभापति की इस टिप्पणी से पूरे सदन में हंसी की लहर दौड़ गई।

कर्तव्यों के निर्वहन के लिए सर्वोत्तम प्रयास किए : नायडू 

राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने सोमवार को कहा कि उन्होंने पांच वर्ष के कार्यकाल के दौरान अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास किए और सभी को साथ लेकर चलने की पूरी कोशिश की। नायडू ने सदन में लगभग चार घंटे तक चले अपने विदाई समारोह का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने सभी मौके पर सत्ता पक्ष और विपक्ष को समान अवसर देने के प्रयास किए। उन्होंने कहा कि मैंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन सर्वोतम ढंग से किया। उन्होंने कहा कि संसद को बेहतर तरीके से चलना चाहिए। आम जनता मुद्दों पर चर्चा चाहती है, जिससे समस्याओं का उचित ढंग से निपटारा हो सके। उन्होंने कहा कि सदस्यों के आचरण में नैतिक मूल्यों का समावेश अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

नायडू ने कहा कि मातृभाषा का मुद्दा उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रारंभिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और प्रशासनिक कार्य स्थानीय भाषाओं में होने चाहिए। उन्होंने कहा कि आम आदमी न्याय की आस में न्यायालय में आता है, लेकिन उनकी भाषा आम भाषा नहीं है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की भाषा स्थानीय भाषा होनी चाहिए। आवश्यक होने पर अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए।

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