दिल्ली पहुंची अफगानी सिख महिला ने बयां किया तालिबानी शासन का हाल, भारत से की खास अपील

अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान अल्पसंख्यकों लोगों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। बच्चों को स्कूल भेजने की बात तो जरूर करता है लेकिन इसके शासन की जमीनी सच्चाई कुछ और ही बयां करती दिख रही है।

अफगानिस्तान में पिछले साल तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद से दो बच्चों की मां मनप्रीत कौर ने काबुल स्थित अपने घर से शायद ही कभी बाहर कदम रखा और उनके बच्चों को बाहर की दुनिया के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कौर और उनके परिवार की दुनिया तीन अगस्त को उस समय बदल गई, जब वे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी), इंडियन वर्ल्ड फोरम और केंद्र सरकार की मदद से 28 अफगान सिखों के एक समूह के साथ भारत पहुंचीं।

कौर ने तालिबान के शासन में अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा, ‘अल्पसंख्यक होने के कारण निशाना बनाए जाने का लगातार खतरा बना रहता था। काबुल में सिख एवं हिंदू परिवार रात में चैन से नहीं सो पाते थे। उपासना स्थल सुरक्षित नहीं हैं। ‘गुरुद्वारा करता-ए-परवान’ पर 18 जून को आतंकवादियों ने हमला किया।’ उन्होंने कहा, ‘हमें अपने घर से बाहर निकलने से पहले 10 बार सोचना पड़ता था। हमारे बच्चों के घर से बाहर निकलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। यदि हमें बाहर निकलना होता था, तो हमें अपने चेहरों को ढकना होता था।’

‘स्कूल भेजना मतलब जीवन को खतरे में डालना’

उन्होंने दावा किया कि अफगानिस्तान में अधिकतर अल्पसंख्यकों की शिक्षा तक कोई पहुंच नहीं थी क्योंकि बच्चों को स्कूल भेजने का अर्थ था, ‘उनके जीवन को खतरे में डालना।’ कौर ने कहा, ‘यदि कोई बच्चा किसी शैक्षणिक संस्थान में जाता है, तो उसे वहां परेशान किया जाता है। जो लोग पढ़ना चाहते हैं, उनमें से अधिकतर भारत आ जाते थे।’ अफगानिस्तान से तीन अगस्त को भारत पहुंचे एक अन्य सिख तरणजीत सिंह का तीन वर्षीय बेटा हृदय संबंधी बीमारी से पीड़ित है। उन्होंने कहा कि अस्पतालों तक पहुंचने में दिक्कत होने के कारण उनके बेटे को काबुल में उचित उपचार नहीं मिल पाया।

भारत से की यह अपील

सिंह ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि हम भारत में उसका उपचार करा पाएंगे।’ सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने कहा कि केंद्र को भारत में ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता देने और उन्हें काम मुहैया कराने की नीति बनानी चाहिए। कृष्णन ने कहा, ‘हमारा देश इन शरणार्थियों को नागरिकता देने में सक्षम है। सरकार को न केवल अफगान सिखों और हिंदुओं को, बल्कि सभी शरणार्थियों को यह सहायता देनी चाहिए।’

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