देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा, ‘मेरे इस निर्वाचन में देश के गरीब का आशीर्वाद शामिल है, देश की करोड़ों महिलाओं और बेटियों के सपनों और सामर्थ्य की झलक है।
द्रौपदी मुर्मू भारत की महामहिम बन गई हैं। सोमवार को उन्होंने देश की 15वीं राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। इसके साथ ही उन्होंने शीर्ष पद पर पहुंचने वाली पहली आदिवासी और दूसरी महिला होने का गौरव भी हासिल किया है। पहले संबोधन की शुरुआत ‘जोहार ! नमस्कार !’ से की और गरीबी में हुई प्रारंभिक शिक्षा से लेकर राजनीति की शुरुआत और राष्ट्रपति बनने के सफर को याद किया। इस दौरान उन्होंने खासतौर से महिलाओं के सशक्तिकरण पर बात की और इस उपलब्धि को गरीबों को समर्पित किया।
75 और 25 वर्षों का खास जिक्र
सोमवार को राष्ट्रपति मुर्मू ने उनकी सियासी पारी और नए पद की जिम्मेदारी का समय का खास जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘मुझे राष्ट्रपति के रूप में देश ने एक ऐसे महत्वपूर्ण कालखंड में चुना है जब हम अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। आज से कुछ दिन बाद ही देश अपनी स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे करेगा।’ उन्होंने कहा, ‘ये भी एक संयोग है कि जब देश अपनी आजादी के 50वें वर्ष का पर्व मना रहा था तभी मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी। और आज आजादी के 75वें वर्ष में मुझे ये नया दायित्व मिला है।’
आजाद भारत में जन्मीं देश की नई राष्ट्रपति
उम्र को लेकर भी मुर्मू काफी चर्चा में हैं। वह यह पद संभालने वाली सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं देश की ऐसी पहली राष्ट्रपति भी हूं जिसका जन्म आजाद भारत में हुआ है।’ इससे पहले प्रतिभा पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति थीं।
देश के वीरों को नमन और ‘सबका प्रयास और सबका कर्तव्य’
उन्होंने कहा, ‘कल यानि 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस भी है। ये दिन, भारत की सेनाओं के शौर्य और संयम, दोनों का ही प्रतीक है। मैं आज, देश की सेनाओं को तथा देश के समस्त नागरिकों को कारगिल विजय दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं देती हूं।’
इस दौरान उन्होंने देश के सेनानियों को याद किया और उनकी इच्छाएं पूरी करने की बात की। मुर्मू ने कहा, ‘हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने आजाद हिंदुस्तान के हम नागरिकों से जो अपेक्षाएं की थीं, उनकी पूर्ति के लिए इस अमृतकाल में हमें तेज गति से काम करना है। इन 25 वर्षों में अमृतकाल की सिद्धि का रास्ता दो पटरियों पर आगे बढ़ेगा- सबका प्रयास और सबका कर्तव्य।’
एक और उपलब्धि: कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली बेटी
पुराने दौर को याद करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘मैंने अपनी जीवन यात्रा ओडिशा के एक छोटे से आदिवासी गांव से शुरू की थी। मैं जिस पृष्ठभूमि से आती हूं, वहां मेरे लिये प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करना भी एक सपने जैसा ही था। लेकिन अनेक बाधाओं के बावजूद मेरा संकल्प दृढ़ रहा और मैं कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली बेटी बनी।’
लोकतंत्र की शक्ति
मुर्मू ने कहा, ‘मैं जनजातीय समाज से हूं, और वार्ड कौन्सिलर से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तक का अवसर मुझे मिला है। यह लोकतंत्र की जननी भारतवर्ष की महानता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘ये हमारे लोकतंत्र की ही शक्ति है कि उसमें एक गरीब घर में पैदा हुई बेटी, दूर-सुदूर आदिवासी क्षेत्र में पैदा हुई बेटी, भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती है।’
गरीबों के नाम अपनी उपलब्धि समर्पित
राष्ट्रपति ने अपनी उपलब्धि देश के गरीबों के नाम की है। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना, मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है।’ उन्होंने कहा, ‘मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए बहुत संतोष की बात है कि जो सदियों से वंचित रहे, जो विकास के लाभ से दूर रहे, वे गरीब, दलित, पिछड़े तथा आदिवासी मुझ में अपना प्रतिबिंब देख रहे हैं।’
महिला सशक्तिकरण पर जोर
राष्ट्रपति मुर्मू ने संबोधन के दौरान सबसे खास जिक्र महिलाओं का रहा। उन्होंने कहा, ‘मेरे इस निर्वाचन में देश के गरीब का आशीर्वाद शामिल है, देश की करोड़ों महिलाओं और बेटियों के सपनों और सामर्थ्य की झलक है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं आज समस्त देशवासियों को, विशेषकर भारत के युवाओं को तथा भारत की महिलाओं को ये विश्वास दिलाती हूं कि इस पद पर कार्य करते हुए मेरे लिए उनके हित सर्वोपरि होंगे।’ मुर्मू ने कहा, ‘मैं चाहती हूं कि हमारी सभी बहनें व बेटियां अधिक से अधिक सशक्त हों तथा वे देश के हर क्षेत्र में अपना योगदान बढ़ाती रहें।’