इसके साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि उस बच्ची को पिता से मिलने के लिए नहीं रोका जाएगा। अदालत ने महिला को छुट्टियों के दौरान अपनी बेटी के साथ भारत आने का निर्देश भी दिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में आदेश दिया है कि किसी भी मां को करियर और बच्चे के बीच किसी एक को चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह उस महिला के ऊपर निर्भर करता है कि वह दोनों में से एक या दोनों को चुनेगी। इसके साथ ही संबंधित मामले में हाई कोर्ट ने महिला को अपने साथ बच्चे को विदेश ले जाने की इजाजत दे दी है।
दरअसल, यह मामला पुणे की एक कंपनी में काम करने वाली एक महिला से संबंधित है। कंपनी ने महिला को पोलैंड में एक सीनियर पोजिशन ऑफर किया। इसके बाद पति ने अपनी छोटी बेटी को विदेश साथ ले जाने पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद महिला ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख कर लिया था। महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट जस्टिस भारती डांगरे की सिंगल बेंच इस याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में महिला ने अपनी नौ साल की बेटी के साथ पोलैंड में जाकर रहने की अनुमति मांगी थी। महिला के पति ने इस याचिका का विरोध करते हुए दावा किया था कि अगर बच्चे को उससे दूर ले जाया गया तो वह उसे फिर से नहीं देख पाएगा। पति ने आरोप लगाया कि महिला का पोलैंड में बसने का एकमात्र मकसद पिता-पुत्री के बंधन को तोड़ना है।
हालांकि इसके साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि उस बच्ची को पिता से मिलने के लिए नहीं रोका जाएगा। अदालत ने महिला को छुट्टियों के दौरान अपनी बेटी के साथ भारत आने का निर्देश भी दिया। जिससे कि पिता अपनी बच्ची से मिल पाए। हाईकोर्ट में पति ने यह भी कहा कि वह और उसका परिवार भारत में बच्चे की देखभाल करेगा, लेकिन उनकी इस बात को नकार दिया गया।
हालांकि इस फैसले के बाद पति की तरफ से वकील ने बाद में कहा कि वे अब हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करेंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक इससे पहले महिला ने पुणे के फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका पर पत्नी को अपनी बेटी के साथ भारत से बाहर ले जाने से रोक दिया था। इसके बाद महिला ने इस आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।