गुपकार अलायंस ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने का फैसला किया है। चिनाब और पीर पंजाल इलाके में 16 सीटें हैं और यहां भाजपा के लिए बड़ी चुनौती पैदा हो सकती है।
जम्मू-कश्मीर में गुपकार गठबंधन का मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। इससे न केवल भाजपा बल्कि कुछ अन्य मेनस्ट्रीम छोटी पार्टियां जैसे कि सज्जाद लोन की पीपल्स कॉन्फ्रेंस और अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी भी मुश्किल में पड़ सकती हैं। पीएजीडी के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि गठबंधन के सदस्य मिलकर चुनाव लड़ेंगे।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के विरोध में पहले के धुर विरोधी रहे नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी एक ही बैनर तले साथ आ गए थे। कुछ छोटी पार्टियों को मिलाकर उन्होंने गुपकार अलायंस बनाया था। गुपकार अलायंस का साथ मिलकर चुनाव लड़ना सज्जाद लोन और अपनी पार्टी के लिए अच्छी खबर नहीं है। बुखारी ने दो साल पहले ही पीडीपी से अलग होकर यह पार्टी बनाई थी।
2014 के विधानसभा चुनाव में पीपल्स कॉन्फ्रेंस को दो सीटें हासिल हुई थीं और दोनों ही कुपवाड़ा से थीं। इन दो सीटों पर पार्टी का वोटशेयर 24.7 प्रतिशत था। वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस का वोट शेयर 26.7 और पीडीपी का 32.2 प्रतिशत था। अगर पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के वोट एक साथ पड़ते तो पीपल्स कॉन्फ्रेंस के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती थी। वहीं अपनी पार्टी की बात करें तो अभी इसका कैडर भी तैयार नहीं हो पाया है।
भाजपा और पीएजीडी के लिए क्या चुनौती
भाजपा और पीजीजीडी दोनों के लिए ही चेनाब वैली और पीर पंजाल इलाके में चुनौती है। यहां मुस्लिम पॉपुलेशन ज्यादा है। जम्मू-कश्मीर की कुल 43 विधानसभी सीटों में से 16 इन दोनों क्षेत्रों में हैं। भाजपा के पास कश्मीर घाटी में सफलता के चांस ज्यादा हैं। 2014 के चुनाव में भाजपा को घाटी में सबसे ज्यादा वोट मिले थे लेकिन यह सीट में नहीं परिवर्तित हो पाया था। वहीं जम्मू में भाजपा ने हिंदू वोट जमकर बटोरे।
चिनाब, पीर पंजाल में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के बीच वोटों का बंटवारा हो गया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अब इन दोनों इलाकों में मुस्लिम वोट इकट्ठा हो सकता है। गुपकार अलायंस मिलकर लड़ता है तो उसे इसका फायदा मिलेगा और इस इलाके में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
सियासत के पंडितों का एक और अनुमान है कि अगर चुनाव से पहले गुलाम नबी आजाद अलग पार्टी बना लेते हैं तो गुपकार अलायंस को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन अगर कांग्रेस भी गुपकार के साथ मिल जाती है तो उसे फायदा मिल सकता है।