छत्तीसगढ़ में सरकार अच्छी शिक्षा देने का दावा करती है, लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में दावों की हकीकत कुछ और ही है। अबूझमाड़ के बच्चे, शिक्षक और स्कूल मांगने 20 KM पैदल चलकर सड़क तक आए थे।
छत्तीसगढ़ में सरकार अच्छी शिक्षा देने का दावा करती है, लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में दावों की हकीकत कुछ और ही है। माओवाद प्रभावित नारायणपुर जिले के बच्चे अपने पालकों के साथ शिक्षक और स्कूल मांगने 20 किलोमीटर का सफर तय कर नारायणपुर-ओरछा मार्ग तक पहुंचे। राहगीरों से बच्चों ने आग्रह किया कि हमारी मांग को इंटरनेट के माध्यम से सरकार और शासन तक पहुंचा दो, ताकि हमारे गांव को स्कूल और गुरुजी मिल जाए। सैकड़ों की संख्या में बच्चों व पालकों के सड़क पर खड़े होकर स्कूल और शिक्षक मांगने के आग्रह के दौरान राहगीर भी उनके पास पहुंचते रहे।
दरअसल, अबूझमाड़ का ओरछा ब्लॉक अति संवेदनशील इलाका है। इस ब्लॉक के एक गांव होयगेर के सैकड़ों ग्रामीण अबूझमाड़ में स्कूल व बालक आश्रम में शिक्षकों की मांग को लेकर हाथों में बैनर-पोस्टर लिए ब्लॉक मुख्यालय जाने को निकले। गुरुवार की शाम को ग्रामीण 20 किलोमीटर का सफर तय कर नारायणपुर-ओरछा मार्ग के बटुम गांव तक पहुंचे थे। बैनर-पोस्टर लेकर बच्चे व पालक गांव में स्कूल और शिक्षक की मांग कर रहे हैं। बड़ी संख्या में ग्रामीणों की आने की सूचना पर प्रशासनिक अधिकारी व मीडिया कर्मी वहां पहुंचे। ग्रामीणों ने कलेक्टर ऋतुराज रघुवंशी के नाम होयगेर में स्कूल आश्रम और प्रत्येक स्कूल में दो शिक्षकों की नियुक्ति करने का मांग पत्र दिया।
गांव में 30 से ज्यादा बच्चे खाली घूम रहे
ग्रामीणों का कहना था कि ग्राम होयगेर में 30 से अधिक बच्चे हैं। बच्चे घरों में रहकर गाय-बैल चराने को मजबूर हैं, क्योंकि आसपास स्कूल व आश्रम संचालित नहीं है। गांव से अधिक दूरी पर स्कूल व आश्रम है। इस वजह से पालक अपने बच्चों को नहीं भेज पाते। ग्रामीणों ने आरोप भी लगाया कि अबूझमाड़ में कई स्कूल संचालित हैं, लेकिन शिक्षकों की भारी कमी है। गांव से पांच किमी दूर एक मोहल्ला स्कूल है, जहां शिक्षक महीने में एक बार आते हैं। ऐसे स्कूलों में अगर बच्चों को दाखिल भी कर देंगे तो कोई मतलब नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए। स्थानीय मीडिया कर्मी हेमंत संचेती ने बताया कि ग्रामीणों ने मीडिया से आग्रह किया है कि उनकी बात को सरकार और शासन तक पहुंचाए, ताकि गांव को स्कूल और शिक्षक मिल जाए।