अखिलेश यादव को अब क्यों आई आजम खान की याद, ‘गढ़ और साख’ बचाने के प्रेशर में सपा अध्यक्ष?

लखनऊ में आजम से मिलने की कोशिश ना करने वाले अखिलेश ने यदि दिल्ली तक दौड़ लगाई तो इसके कई मायने हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबला हारने वाले अखिलेश के सामने गढ़ बचाने की चुनौती है।

आजम खान 2 साल से अधिक समय बाद जब 20 मई को सीतापुर जेल की सलाखों से आजाद होकर निकले तो उम्मीद रही होगी कि पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव उन्हें गले लगाने को दौड़ेंगे। लेकिन एक सप्ताह से अधिक समय तक अखिलेश यादव उनके लिए समय नहीं निकाल पाए। इधर आजम इशारों में अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे और उधर अखिलेश अनजान बने बैठे रहे। अटकलें लगने लगीं कि आहत आजम किसी भी वक्त अपनी राहें अलग कर सकते हैं। लेकिन इस बीच राज्यसभा और लोकसभा उपचुनाव ने दोनों नेताओं को 27 महीने बाद इतने करीब ला दिया कि कैमरे के एक फ्रेम में कैद हो पाए।

राज्यसभा चुनाव ने साजगार बनाया माहौल
अखिलेश यादव और आजम खान के बीच नाराजगी दूर होने की उम्मीदें उसी समय बढ़ गईं थीं जब सपा अध्यक्ष ने रामगढ़ के विधायक को ‘आजादी’ दिलाने वाले कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजने का ऐलान किया। आजम खान ने जेल से बाहर आने के बाद कपिल सिब्बल की खूब तारीफ की थी और खुलकर यह इच्छा जाहिर की कि उन्हें राज्यसभा भेजा जाए। यूं तो अखिलेश और मुलायम के सिब्बल से पहले से ही अच्छे रिश्ते हैं और इससे पहले भी सपा ने उन्हें उच्च सदन भेजने के लिए समर्थन दिया था, लेकिन इस बार उनके जरिए सपा अध्यक्ष ने एक तीर से दो निशाने साध लिए।
उपचुनाव का है प्रेशर?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो लखनऊ में आजम से मिलने की कोशिश ना करने वाले अखिलेश ने यदि दिल्ली तक दौड़ लगाई तो इसके कई मायने हैं। हाल ही में विधानसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबला हारने वाले अखिलेश के सामने गढ़ और साख बचाने की चुनौती है। यूपी में आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव का ऐलान हो चुका है। 6 जून तक प्रत्याशियों के नाम तय करके उनसे नामांकन दाखिल करना होगा। ये दोनों सीटें अखिलेश और आजम के विधानसभा में जाने के बाद इस्तीफे से खाली हुई हैं। ऐसे में दोनों सीटों को बरकरार रखना अखिलेश के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। यह अलग बात है कि आजमगढ़ और रामपुर की गिनती सपा के मजबूत किलों में होती है, लेकिन दोनों ही सीटों पर मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका निभाते हैं और ऐसे में अखिलेश आजम की नाराजगी मोल नहीं ले सकते हैं।

नहीं चूकना चाहते थे दूसरा मौका
आजम खान के करीबियों से जब भी यह सवाल किया गया कि अखिलेश यादव से नाराजगी की वजहें क्या हैं तो उन्होंने एक ही बात कही कि सपा अध्यक्ष ने बुरे वक्त में साथ नहीं दिया। उन्हें इस बात की तकलीफ है कि आजम की रिहाई के लिए प्रयास तो दूर अखिलेश सीतापुर जाकर मिलने तक का समय नहीं निकाल पाए। भले ही मुस्लिम वोटर्स ने रणनीतिक रूप से विधानसभा चुनाव में सपा के लिए एकतरफा वोट किया, लेकिन आजम खान की ओर नाराजगी जाहिर किए जाने के बाद मुसलमानों के एक बड़े तबके के रूठ जाने की आशंका थी। आजम बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती है, ऐसे में यदि अखिलेश उनका हालचाल लेने नहीं जाते तो आजम समर्थकों की नाराजगी बढ़ सकती थी।

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