डॉलर के मुक़ाबले दुनिया की प्रमुख मुद्राओं की कमज़ोर होती स्थिति ने ऐसे देशों की आर्थिक परेशानियां और बढ़ा दी हैं.
दिक्कत सिर्फ़ मजबूत डॉलर की वजह से नहीं है बल्कि अमेरिका में ब्याज दरों का बढ़ना भी कई देशों की अर्थव्यवस्था के लिए बुरी ख़बर है.
हालांकि वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिलहाल जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उसकी वजह डॉलर या अमेरिका में ब्याज दरों का बढ़ना नहीं है.
लेकिन ये भी सच है कि इससे आग में घी डालने वाली स्थिति पैदा हो रही है.
यूक्रेन पर रूस के हमले के कारण बना अनिश्चितता का माहौल और दुनिया भर में रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ें जिस तरह से रिकॉर्ड स्तर पर हैं, उससे इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
वैश्विक अर्थव्यवस्था
विशेषज्ञों का कहना है कि डॉलर की बढ़ती क़ीमत की वजह से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में आर्थिक गतिविधियों में जो सुस्ती आई है, वो और बढ़ गई है.
मेक्सिको में इकोनॉमिक्स और फाइनांस के प्रोफ़ेसर एडवर्डो कार्बाजाल कहते हैं, “मजबूत डॉलर से ग्रोथ पर असर पड़ रहा है क्योंकि ये ऐसे समय पर हो रहा है जब महंगाई अपने चरम पर है और इस ऊंची मुद्रास्फीति को ऊंचे ब्याज दरों से मुक़ाबला करना पड़ रहा है.”
प्रोफ़ेसर एडवर्डो की राय में “डॉलर के महंगे होने के कारण न केवल अमेरिका में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कर्ज लेना महंगा हो गया है.”
इसका मतलब ये हुआ कि जब देशों, कंपनियों और आम लोगों के लिए पैसे उधार लेना और महंगा हो जाएगा तो आर्थिक गतिविधियां सुस्त हो जाएंगी और पहले से संघर्ष कर रहीं अर्थव्यवस्थाओं को पटरी पर लाना एक कठिन काम हो जाएगा.
और अगर ये सब कुछ एक नाज़ुक संतुलन पर टिका हो तो इकॉनमी की स्टियरिंग में किसी किस्म का जरा सा भी बदलाव सिस्टम के दूसरे हिस्से पर असर डाल सकता है.