अजमेर दरगाह में स्वास्तिक निशान का सच, ढाई दिन के झोंपड़े से है इसका नाता

अजमेर की दरगाह में हिंदू मन्दिर होने और वहां धार्मिक चिन्ह होने का दावा किया गया। इसके बाद इसे लेकर पूरे देश में चर्चा होने लगी। अजमेर दरगाह तक चर्चा पहुंची तो चिन्ह को लेकर पड़ताल की गई।

अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में स्वास्तिक चिन्ह के आधार पर हिंदू मंदिर होने का दावा किया गया था। लेकिन पड़ताल में पाया गया कि स्वास्तिक का चिन्ह दरगाह नहीं, बल्कि दूसरी जगह पर है। बताया गया है कि स्वास्तिक का चिन्ह ढाई (अढ़ाई) दिन के झोंपड़े का है, जिसका दरगाह से कोई लेना-देना नहीं है । अब दरगाह के मुस्लिम पदाधिकारी इस पर कार्रवाई करने की बात कह रहे हैं।

स्वास्तिक का चिन्ह दरगाह में नहीं
अजमेर की दरगाह में हिंदू मन्दिर होने और वहां धार्मिक चिन्ह होने का दावा किया गया। इसके बाद इसे लेकर पूरे देश में चर्चा होने लगी। अजमेर दरगाह तक चर्चा पहुंची तो चिन्ह को लेकर पड़ताल की गई। लेकिन ऐसा कोई भी चिन्ह दरगाह में नहीं मिला। इस बात को लेकर कल दरगाह के पदाधिकारियों ने भी अपने बयान जारी किए थे। इसमें उन्होंने इस दावे को खारिज किया था कि दरगाह में हिंदू मन्दिर है।

अढ़ाई दिन के झोंपड़ा का इतिहास
बताया जाता है कि जिस जगह स्वास्तिक का निशान मिला है, वहां का इतिहास बिल्कुल अलग है। अढ़ाई दिन का झोंपड़ा अजमेर स्थित एक मस्जिद है। माना जाता है इसका निर्माण सिर्फ अढ़ाई दिन में किया गया। इसी वजह से इसका नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा पड़ गया। इसका निर्माण पहले से वर्तमान संस्कृत विद्यालय को परिवर्तित करके मोहम्मद गोरी के आदेश पर उसके गवर्नर कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1194 में करवाया था। मोहम्मद गोरी ने तराईन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया। इसके बाद पृथ्वीराज की राजधानी तारागढ़ अजमेर पर हमला किया। यहां स्थित संस्कृत विद्यालय में रद्दोबदल करके मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। इसका निर्माण संस्कृत महाविद्यालय के स्थान पर हुआ। इसका प्रमाण अढ़ाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर लगा संगमरमर का एक शिलालेख है, जिस पर संस्कृत में इस विद्यालय का उल्लेख है। यहां पंचकल्याणक के प्रतीक स्वरूप 5 गर्भ गृह भी हैं। इसकी दीवारों पर हरकेली नाटक (विग्रहराज चतुर्थ द्वारा रचित) के अंश मिलते हैं, जिनके संस्कृत पाठशाला होने के साक्षी हैं।

विवाद पर लीगल कार्रवाई करेंगे दरगाह पदाधिकारी
दरगाह दीवान के बेटे सैय्यद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि किसी ने बेवजह दावा कर दरगाह ओर देश की गंगा जमुनी तहजीब को खत्म करने का प्रयास किया है, जो सही नहीं है। उन्होंने कहाकि 900 साल पुराना दरगाह का इतिहास रहा है लेकिन आज तक इस तरह की कोई बात सामने नहीं आई। बस लोकप्रियता पाने के लिए इस तरह का बेबुनियाद दावा किया गया। चिश्ती ने इस मामले में अन्य पदाधिकारियों से बात करके लीगल कार्रवाई करने की बात कही है।

महाराणा प्रताप सेना नाम की संस्था ने लिखा था सीएम के नाम पत्र
दिल्ली के रहने वाले राजवर्धन सिंह परमार नाम के शख्स ने महाराणा प्रताप सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को यह लेटर लिखा है। इस लेटर में मांग की गई है कि अजमेर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पहले हिंदू मंदिर था। उन्होंने लिखा है कि पुरातत्व विभाग से सर्वेक्षण करवाया जाए जिसमें आपको वहां हिन्दू मंदिर होने के पुख्ता सबूत मिल जाएंगे। लेटर में यह भी लिखा है कि दरगाह के अंदर कई जगहों पर हिंदू धार्मिक चिन्ह भी हैं, जिसमें स्वास्तिक निशान को प्रमुख बताया है। उन्होंने लिखा है कि इसके अलावा भी हिंदू धर्म के अन्य प्रतीक चिन्ह भी मौजूद हैं।

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