हार्दिक पटेल को भाजपा में शामिल किए जाने को लेकर पार्टी के उच्चतम स्तर पर बात चल रही है और इसमें आरएसएस के शीर्ष नेता एक्टिव हैं। हार्दिक पटेल पाटीदार समुदाय के युवा चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं।
पिछले कुछ समय से कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी कलह को लेकर मुखर पाटीदार नेता हार्दिक पटेल जल्द ही अपना राजनीतिक ठिकाना बदल सकते हैं। अगर अंतिम क्षणों में कोई बड़ी गड़बड़ी न हुई, तो हार्दिक पटेल की भाजपा में वापसी बस कुछ ही समय की बात है। हार्दिक पटेल कांग्रेस में अपनी स्थिति को पुनर्जीवित करने के प्रयास में थे लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उनके लिए ‘सबसे पुरानी’ पार्टी के दरवाजे बंद हो चुके हैं। ऐसे में हार्दिक के सामने भाजपा के अलावा एकमात्र अन्य विकल्प आम आदमी पार्टी में शामिल होना बाकी है जो गुजरात में अपना पैर जमाने की कोशिश कर रही है। गुजरात में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं।
खबरें हैं कि हार्दिक पटेल को भाजपा में शामिल किए जाने को लेकर पार्टी के उच्चतम स्तर पर बात चल रही है और इसमें आरएसएस के शीर्ष नेता एक्टिव हैं। हार्दिक पटेल पाटीदार समुदाय के युवा चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं। दरअसल 2015 में पाटीदार आंदोलन हुआ था जिसमें समुदाय को अन्य पिछड़ा समुदाय (ओबीसी) श्रेणी में शामिल करने की मांग की गई थी। हार्दिक पटेल इस आंदोलन के अगुआ नेताओं में से एक थे।
हार्दिक ने की नरेश पटेल से मुलाकात
15 मई को उदयपुर में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के तीन दिवसीय मंथन सत्र में शामिल नहीं हुए गुजरात कांग्रेस के नेता हार्दिक पटेल ने पाटीदार समुदाय के प्रभावशाली नेता नरेश पटेल से मुलाकात की और उनसे जल्द से जल्द राजनीति में शामिल होने के बारे में फैसला लेने का अनुरोध किया। गुजरात में महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से पहले पाटीदार नेता के कांग्रेस से अलग होने की चर्चा के बीच यह बैठक महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
हार्दिक पटेल और अन्य पाटीदार आंदोलन के नेता अल्पेश कथिरिया और दिनेश बंभानिया ने 15 मई को सौराष्ट्र में नरेश पटेल से मुलाकात की। इस चर्चा के बीच बैठक महत्वपूर्ण हो गई है कि हार्दिक के गुजरात में महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से पहले विपक्षी कांग्रेस पार्टी से अलग होने की संभावना है। 28 वर्षीय नेता सार्वजनिक रूप से राज्य के नेताओं पर उन्हें और अन्य युवा नेताओं को पार्टी में काम करने की अनुमति नहीं देने के लिए कांग्रेस पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं।
जब उदयपुर में कांग्रेस का मंथन सत्र चल रहा था, तब पटेल ने कई टीवी इंटरव्यू दिए जिसमें पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह और अन्य लोग निराश महसूस करते हैं क्योंकि पार्टी ने उन्हें और अन्य को सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ काम करने की अनुमति नहीं दी है। उन्होंने इस सवाल को टाल दिया कि वह कांग्रेस पार्टी के चिंतन शिविर में शामिल क्यों नहीं हुए, यह तर्क देते हुए कि वे गुजरात में पहले से तय कार्यक्रम कर रहे हैं।
जब आरक्षण आंदोलन को मिला था RSS का समर्थन
कहते हैं कि 2015 में गुजरात को हिला देने वाले आंदोलन को आरएसएस का आशीर्वाद मिला था। आरएसएस ने 1981 में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें “अन्य आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को उनके त्वरित विकास को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक रियायतें देने की मांग की गई थी।”
1980 में गुजरात सरकार के आरक्षण नीति का बीजेपी ने जमकर विरोध किया था। लेकिन 1981 में आरक्षण के खिलाफ देश में फैले विरोध के बाद आरएसएस के गुट, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने गैर-राजनीतिक कमिटी बनाकर आरक्षण से उठ रही परेशानियों तथा पिछड़ी और जनजाति के उत्थान के लिए सकारात्मक कदम उठाने की मांग की थी।
गुजरात में हिंसक आरक्षण विरोधी दंगों के बाद आरएसएस ने 1981 में एबीपीएस प्रस्ताव पारित किया था। इसमें कहा था, “अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) की राय है कि आरक्षण की नीति, इसके गलत कार्यान्वयन के कारण, जिस उद्देश्य के लिए इसे बनाया गया था, उसे पूरा करने के बजाय सत्ता की राजनीति और चुनावी रणनीति का एक उपकरण बन गई है जिसके परिणामस्वरूप समाज में आपसी वैमनस्य और संघर्ष पैदा हुआ।” आरएसएस ने ये भी सुझाव दिया था कि कमिटी आर्थिक रूप से कमज़ोर दूसरी जातियों के लिए भी ख़ास इंतजाम करे।