असदुद्दीन ओवैसी का बयान अदालत के एक आयुक्त के वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद में अदालत के आदेश के अनुसार परिसर का सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी करने के एक दिन बाद आया है।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने शनिवार को कहा कि ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर के कुछ इलाकों के सर्वेक्षण पर अदालत का हालिया आदेश “रथ यात्रा के रक्तपात और 1980-1990 के दशक की मुस्लिम विरोधी हिंसा का रास्ता खोल रहा है”। वाराणसी की अदालत के आदेश की निंदा करते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने एक ट्वीट में कहा, “काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करने का यह आदेश 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है, जो धार्मिक स्थलों के रूपांतरण पर रोक लगाता है।”
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “अयोध्या के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अधिनियम भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा करता है जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है।” असदुद्दीन ओवैसी का बयान अदालत के एक आयुक्त के वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद में अदालत के आदेश के अनुसार परिसर का सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी करने के एक दिन बाद आया है।
ज्ञानवापी मस्जिद कांड
दिल्ली की राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू और अन्य ने एक याचिका दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और नंदी में दैनिक पूजा और अनुष्ठान करने की अनुमति मांगी थी। उन्होंने 18 अप्रैल, 2021 को अपनी याचिका के साथ अदालत का रुख किया था।
याचिका पर सुनवाई के बाद वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और अन्य स्थानों पर ईद के बाद और 10 मई से पहले श्रृंगार गौरी मंदिर की वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया। आपको बता दें कि 6 मई और 7 मई को मस्जिद के परिसर के अंदर की वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण होने वाला था।
शृंगार गौरी मंदिर ढांचा की एक-एक ईंट का सर्वे
शुक्रवार दोपहर बाद तीन बजे काशी विश्वनाथ धाम परिसर स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास उस समय हलचल बढ़ गई जब कोर्ट कमिश्नर की अगुवाई में दोनों पक्षकार और उनके साथ अधिवक्ता धाम के मुख्य प्रवेश द्वार (गेट सं. चार) से प्रवेश करते हुए मस्जिद के पश्चिम पहुंचे। ज्ञानवापी की चारों दिशाएं पुलिस छावनी में तब्दील हो गई थी। मुख्य द्वार से श्रद्धालुओं का प्रवेश बंद कर दिया गया था। पहले से मौजूद विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक डॉ. सुनील कुमार वर्मा और डीएम के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे एडीएम सिटी गुलाब चंद्र ने सर्वे शुरू कराया। कोर्ट कमिश्नर ने दो साथी अधिवक्ताओं के साथ सर्वे शुरू किया जो करीब तीन घंटे तक अनवरत जारी रहा। कमीशन की कार्रवाई के दौरान गेट के बाहर काफी गहगहमी रही। दोनों पक्षों के लोगों का जमावड़ा लगा रहा।
ताखे के अंदर देखने को जली टार्च
कोर्ट कमिश्नर ने पहले चरण में शृंगार गौरी व आसपास के चबूतरे की वस्तुस्थिति की जांच की। एक-एक ईंट से लेकर मिट्टी व पत्थर तक की वीडियोग्राफी करायी। 40 फीट के दायरे में 70 से ज्यादा फोटोग्राफ लिए गए। कोर्ट कमिश्नर ने शृंगार गौरी के ताखे के अंदर टार्च जलाकर वस्तुस्थिति देखी। ताखे में लगे रंग को हाथ से छूकर महसूस किया। मस्जिद की पश्चिम दीवार की नक्काशी की बारीकी से वीडियोग्राफी करायी। गुंबद व पिछली दीवार के जोड़ वाले हिस्से को भी देखा। सर्वे के दौरान कोर्ट कमिश्नर ने साथी अधिवक्ताओं के साथ बीच में तथ्यों व वस्तुस्थिति की रिपोर्ट भी लिखी। करीब तीन घंटे तक अनवरत सर्वे चला।
कोर्ट कमिश्नर के अंदर जाने पर विरोध
ज्ञानवापी प्रकरण में विपक्षी अंजुमन मस्जिद इंतजामिया कमेटी के अधिवक्ता अभयनाथ यादव ने कहा कि हम कोर्ट कमिश्नर की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हैं। कोर्ट में उन्हें बदलने की अर्जी देंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि कोर्ट कमिश्नर एक-एक चीज को ऊंगली से कुरेद रहे थे जबकि कोर्ट का किसी चीज को कुरेदने या खोदने का आदेश नहीं है। इसलिए इस कार्रवाई से मैं संतुष्ट नहीं हूं। अधिवक्ता ने बताया कि शृंगार गौरी के चबूतरे के सर्वे के बाद कोर्ट कमिश्नर ने ज्ञानवापी मस्जिद के प्रवेश द्वार को खुलवा कर अंदर जाने का प्रयास किया। इसका हमने विरोध दर्ज करवाया। अधिवक्ता ने कहा, कोर्ट का ऐसा कोई आदेश नहीं है कि बैरिकेडिंग के अंदर जाकर आप उसकी वीडियोग्राफी करें लेकिन वकील कमिश्नर ने कहा कि मुझे ताला खोलवा कर अंदर वीडियोग्राफी कराने का आदेश है।
न्यायमूर्तियों के पहुंचते ही दिखी हलचल
सर्वे के दौरान शाम करीब साढ़े बजे सुप्रीम कोर्ट के जज डीवाई चंद्रचूड़ और इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल के लिए धाम का प्रवेश द्वार खुलते ही मौके पर मौजूद अधिवक्ताओं में हलचल बढ़ गयी। प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी कुर्सी छोड़कर खड़े हो गए। कोर्ट कमिश्नर सहित अन्य अधिवक्ताओं ने कुछ क्षणों के लिए सर्वे रोक दिया। सांकेतिक अभिवादन करने के बाद उन्होंने सर्वे शुरू किया। अंत में सभी को मंदिर प्रशासन ने प्रसाद दिया।
शृंगार गौरी प्रकरण पहली बार 1995 में पहुंचा था अदालत
शृंगार गौरी प्रकरण के सर्वे के लिए पहली बार वर्ष 1995 में मामला अदालत में पहुंचा था। लक्सा के सूरजकुंड निवासी डॉ. सोहनलाल आर्य ने अदालत से कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर सर्वे कराने की गुहार लगायी थी। वर्ष 1996 में अदालत ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर कमीशन की कार्रवाई करने का आदेश दिया था। डॉ. सोहनलाल बताते हैं कि कोर्ट कमिश्नर ने दोनों पक्षों को नोटिस देकर 18 मई 1996 को सर्वे के लिए बुलाया। सर्वे के दौरान विपक्षी की ओर से काफी संख्या में पहुंचे लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। इसकी वजह से सर्वे पूरा नहीं हो सका। तब भी जुमा का दिन था और नमाजियों का हुजूम उमड़ पड़ा था। इसके बाद दिल्ली की राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू, रेखा पाठक ने 18 अगस्त 2021 को संयुक्त रूप से सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में याचिका दायर की। डॉ. सोहनलाल इस प्रकरण में पैरोकार हैं। वादी में शामिल लक्ष्मी देवी उनकी पत्नी हैं। आठ अप्रैल 2022 को अदालत ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया। कोर्ट कमिश्नर ने 19 अप्रैल को सर्वे करने के लिए अदालत को अवगत कराया।
18 अप्रैल को शासन-प्रशासन ने शासकीय अधिवक्ता के जरिए आपत्ति दाखिल कर वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी पर रोक लगाने की मांग की। 19 अप्रैल को विपक्षी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने भी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे रोकने की गुहार लगाई। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। 20 अप्रैल को निचली अदालत ने भी सुनवाई पूरी की। 26 अप्रैल को निचली अदालत ने ईद के बाद सर्वे की कार्यवाही का आदेश दिया। आदेश के तहत कोर्ट कमिश्नर ने शुक्रवार को सर्वे शुरू कर दिया है। वादी ने विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, डीएम, पुलिस आयुक्त, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को पक्षकार बनाया है।