ट्रेन की लंबी वेटिंग लिस्ट (Waiting List) के बावजूद किसी-किसी Passenger का टिकट कंफर्म (Confirmed Ticket) हो जाता है। आपको पता है कि ऐसा कैसे होता है? क्या है वीआईपी या इमर्जेंसी कोटा (EQ) की व्यवस्था? यह कोटा किनकी सिफारिश पर छूटता है? आइए हम बताते हैं क्या है ईक्यू का सिस्टम (EQ System)।
रेलवे की भाषा में EQ (या इमरजेंसी कोटा) रेलवे हेडक्वार्टर से छूटने वाला रिजर्व कोटा है। कभी इसे रेलवे के वैसे अधिकारियों या कर्मचारियों के लिए बनाया गया था, जिन्हें इमर्जेंसी में यात्रा करनी होती है। बाद में इसमें मंत्री, सांसद, विधायक, न्यायिक अधिकारी, सिविल सेवा के अधिकारी आदि भी जुड़ते चले गए। उपरोक्त व्यक्ति यदि खुद यात्रा करते हैं तो वे इस कोटे के तहत सीट या बर्थ के लिए रिक्वेस्ट कर सकते हैं। यही नहीं, वे अपने मातहत लोगों के लिए रिक्वेस्ट करते हैं। सांसद और विधायक अपने क्षेत्र की जनता के लिए भी रिक्वेस्ट करते हैं।
यहां प्रश्न उठता है कि EQ की क्या आवश्यकता है? मान लीजिए कि आपने नई दिल्ली से पटना जाने के लिए संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस में रिजर्वेशन लिया। इस ट्रेन के AC3 टियर में आपको वेटिंग लिस्ट में 75 नंबर मिला है। अगले दिन आपकी ट्रेन है तो यह तो अपने आप कंफर्म होने वाला है नहीं। ऐसे में आपके पास दो विकल्प हैं। पहला विकल्प है कि आप अपना टिकट रद्द करें और फ्लाइट का टिकट लें। दूसरा विकल्प किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क करना है जो आपका टिकट ईक्यू कोटे से कंफर्म करवा सकता हो। एक बार EQ के लिए अनुरोध करने के बाद, आपको चार्ट के फाइनल होने तक इंतजार करना होगा। अमूमन ट्रेन के छूटने से 3-4 घंटे पहले चार्ट जारी किया जाता है। चार्ट के जारी होने के बाद, आपको अपने नाम के आगे एक CNF (पुष्टि) स्थिति दिखाई देगी।
रेलवे बोर्ड के अधिकारी बताते हैं कि इस बारे में कोई निश्चित मात्रा तय नहीं है। उनका कहना है कि यह तो ट्रेन की श्रेणी, उसमें होने वाली भीड़ और ईक्यू के लिए मिलने वाले रिक्वेस्ट के आधार पर तय किया जाता है। लेकिन, इतना अवश्य ध्यान रखा जाता है कि किसी ट्रेन में एक तय सीमा से ज्यादा सीटें ईक्यू कोटा में नहीं रखी जाए। यदि ऐसा होता है तो इससे आम यात्रियों को दिक्कत होती है।
आमतौर पर सांसद या विधायक इस कोटे के लिए रिक्वेस्ट करते रहते हैं। वे अपने क्षेत्र की जनता के लिए रेल मंत्रालय से ईक्यू जारी करने की चिट्ठी जारी करते हैं। रामसनेही जैसे लोग अपना गांव छोड़ कर दिल्ली आ गए हैं, लेकिन वे अपने सांसद से टच में रहते हैं। जैसे ही उन्हें इमर्जेंसी में ट्रेवल करने की जरूरत होती है तो वह तुरंत वेटिंग टिकट कटाते हैं। और सांसद से अपना टिकट कंफर्म करवाने के लिए चिट्ठी बनवा लेते हैं। इस चिट्ठी को रेलवे बोर्ड तक पहुंचा देते हैं। बस, उनका काम पूरा हो गया।
रेल अधिकारियों का कहना है कि इमर्जेंसी कोटे से टिकट कन्फर्म होने का 50-50 चांस रहता है। जब गर्मी की छुट्टी हो या शादी ब्याह का मौसम हो, होली-दिवाली का समय हो तो ईक्यू में भी टिकट कंफर्म बड़ी मुश्किल से होता है। ऐसी स्थिति के लिए रेलवे ने प्रोटोकाल बना रखा है। प्रोटोकाल के मुताबिक बड़े लोगों के रिक्वेस्ट पर ही कोटा छूटता है। छोटे मोटे अधिकारी या व्यक्ति का रिक्वेस्ट यूं ही निरस्त हो जाता है। उदाहरण के लिए मान लिया जाए कि नई दिल्ली से प्रयागराज जाने वाली प्रयागराज एक्सप्रेस में एसी 2 टियर में चार सीटें ईक्यू के तहत हैं। उन सीटों के लिए कोई केबिनेट मंत्री की चिट्ठी आती है और किसी सांसद की चिट्ठी आती है। ऐसे में वे सीटें केबिनेट मंत्री के सिफारिश वाले व्यक्ति को मिल जाएगी। सांसद की सिफारिश वाले यात्री का सीट कंफर्म नहीं हो पाएगा।