बीजेपी का ओवर कॉन्फिडेंस, भूमिहार वोटरों की नाराजगी, बोचहां में हार की इनसाइड स्टोरी

Bochaha UP Chunav Results 2022 : चार राज्यों की 4 विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के फाइनल नतीजे आ चुके हैं। बीजेपी को सभी सीटों पर करारी शिकस्त मिली है। ये नतीजे बीजेपी के लिए सबक लेने वाली बात है। खास तौर से जिक्र करें बिहार के बोचहां विधानसभा सीट की तो वहां उपचुनाव (Bochaha Results 2022) में आरजेडी के अमर पासवान (RJD Candidate Amar paswan) ने जीत दर्ज की। यहां सामने आए नतीजों में सोशल पैटर्न और जातीय समीकरण का असर दिखाई दे रहा है। भारतीय जनता पार्टी को अब इस चुनाव परिणाम के बाद बड़ी दिक्कत होगी। कहीं न कहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) मंद-मंद मुस्करा रहे होंगे। भले ही मुकेश सहनी का दिल उनसे टूट गया हो लेकिन सहनी के कारण एक बड़ी हार बीजेपी को मिली है।

तेजस्वी का ए टू जेड फार्मूला ही चला
जेडीयू और बीजेपी के बीच क्या संबंध हैं ये किसी से छिपे नहीं हैं। बीजेपी के दोनों उपमुख्यमंत्री कैसे हैं ये किसी से छिपा नहीं है। भूपेंद्र यादव बिहार में बीजेपी के प्रभारी हैं, संजय जायसवाल प्रदेश अध्यक्ष हैं, रामसूरत राय जिन्होंने बड़ी भूमिका अदा की इस उपचुनाव में। इन सारे समीकरण को देखें तो वहां का जो सवर्ण वोटर हैं वो ठगा सा महसूस कर रहे थे। उनको ये लग रहा था कि हमें अब भी संगठन के भीतर तरजीह नहीं मिल रही, पार्टी के भीतर हमारी नहीं सुनी जा रही। जो हमेशा से बीजेपी का कोर वोटर रहा है चाहे लालू का जमाना हो, पार्टी के जो कोर वोटर रहे हैं वो सवर्ण वोटर ही रहे हैं। इसलिए उन्होंने इस बार तय किया कि तेजस्वी यादव का जो ए टू जेड वाला फॉर्मूला है चलो इसे आजमाते हैं। इसमें भी अगर थोड़ा पीछे जाएं तो लालू यादव जो जेल की सजा अस्पताल से भुगत रहे हों, उन्होंने बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेला था। उन्होंने इससे पहले जिस तरह से अनंत सिंह को न सिर्फ टिकट दिया बल्कि पहली बार शायद राष्ट्रीय जनता दल में अनंत सिंह के कहने पर MLC के टिकट बांटे गए। ये सब जो सोशल मैसेजिंग है उसे देने में तेजस्वी यादव काफी हद तक कामयाब साबित हुए।

भूमिहार वोटरों में नाराजगी की वजह
इसके अलावा स्थानीय स्तर पर जो कुछ चीजें हुईं जो शायद लोगों को नहीं मालूम हम बताना चाहेंगे। जैसे बोचहां उपचुनाव से पहले रामसूरत राय जब मुजफ्फरपुर गए तो उन्होंने कुछ बातें कहीं सुरेश शर्मा के खिलाफ, जो भूमिहार नेता माने जाते हैं और पहले शहरी विकास मंत्री भी थे। अब दरकिनार कर दिए गए हैं क्योंकि वो चुनाव हार गए थे। लेकिन हारने की बात नहीं है और ना ही सुरेश शर्मा में लोगों की अपील है। ऐसा नहीं है कि वो भूमिहारों के नेता हैं। लेकिन जो बातें रामसूरत राय ने कहीं, कुछ चीजें नित्यानंद राय ने कहीं। इसके बाद उस समाज में एक तरीके का बैकलैश जो होता है उसकी मंशा जगी। कांटी एक विधानसभा क्षेत्र है मुजफ्फरपुर का, वहां के पूर्व विधायक और पथ निर्माण मंत्री रह चुके हैं अजित कुमार। अजित कुमार और सुरेश शर्मा ने मिलकर एक भूमिहार फ्रंट बनाया। ये सब कुछ चुनाव के दो तीन महीने पहले होता है। फिर ये दोनों नेता मिलकर जिले के जितने भी ऐसे गांव जहां भूमिहार जाति के वोटर ज्यादा हैं जैसे खबरा, मुसहरी आदि जगहों पर गए। वहां के पूर्व मुखिया, मौजूदा मुखिया, पंचायत समिति के सदस्य, वार्ड मेंबर्स उनको मोबिलाइज किया। हर चौक चौराहे पर मीटिंग की गई उसमें बाकायदा ये तय किया गया कि इस बार वोट आरजेडी के अमर पासवान को ही देना है। हम बीजेपी की बेबी कुमारी को वोट नहीं करेंगे। जबकि बेबी कुमारी सशक्त उम्मीदवार थी वो इस सीट पर निर्दलीय चुनाव जीत चुकी हैं। लेकिन तय हुआ कि नहीं हम तेजस्वी को देखते हैं कि वो क्या करते हैं।

नीतीश क्यों होंगे खुश?
अब बिहार में नई राजनीति करवट लेती हुई दिख रही है ये वैसा ही है जो लालू के खिलाफ 1995 के लोकसभा उपचुनाव में जब सारी सीटें आरजेडी जीत गई थी उपचुनाव हुआ वैशाली में जहां किशोरी सिन्हा मुकाबले में थीं। वहां आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद मैदान में उतरीं। लवली आनंद ने जीत हासिल की थी तब लालू यादव के खिलाफ प्रदेश में माहौल बना कि उन्हें भी कोई टक्कर दे सकता है। उसकी तुलना अभी से करना बहुत बड़ा पैरलल हो जाए लेकिन हां तेजस्वी यादव ने ये जरूर दिखाया है अगर वो सवर्णों का वोट या कहें भूरा बाल साफ करो वाली जो उनके पिता की छवि थी उससे आगे निकल पाते हैं, और तबकों में पैठ बढ़ाते हैं उनको पार्टी में प्रतिनिधित्व देते हैं तो ये जेडीयू के लिए नहीं बीजेपी के लिए एक चैलेंज होगा। इसलिए मैंने कहा कि नीतीश शायद मुस्कुरा रहे होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि नीतीश कुमार की पार्टी में आप देखेंगे कि जिस वर्ग का वो प्रतिनिधित्व करते हैं और खास तौर से जेडीयू में क्या आप यादव नेता पाएंगे। जेडीयू के शीर्ष नेतृत्व में नहीं हैं। जेडीयू को पता है कि कैसे हमें लवकुश समीकरण या अन्य पिछड़ा वर्गों को साध कर रखना है। भारतीय जनता पार्टी के साथ क्या दिक्कत हुई है अभी वो OBC और अन्य पिछड़ा वर्ग (MBC) उसको इन्होंने पिछले एक दशक में साध लिया। लेकिन ये 90 के दशक से मान कर चलते रहे हैं कि चाहे हम कुछ भी करें हमारा जो सवर्ण वोटर है उसकी ये मजबूरी रही है वो हमें ही वोट करेंगे। वो चीज मुझे टूटती हुई दिख रही है यही चीज बीजेपी के लिए चिंता का विषय है।

कुछ और भी चीजें हुई हैं बिहार में जैसे जब विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए तो ये माना जा रहा था कि बड़ी पार्टी होने की वजह से इस बार मुख्यमंत्री उनका होगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सबसे बड़ी पार्टी के बाद भी बीजेपी ने नीतीश कुमार को चाहे वो उनका प्रेशर रहा हो उन्हें सीएम की गद्दी छोड़नी पड़ी। फिर हुआ कि उपमुख्यमंत्री कौन होगा तो जो दो डिप्टी सीएम दिए गए सुशील मोदी को दरकिनार करते हुए क्या उनकी जो छवि है तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी की उनका बैकग्राउंड जो भी रहा हो, संघ से जुड़े रहे हों। उनकी जो छवि है बिहार में पूरे देश में उनके जो बयान हैं उसे देखें तो एक किस्म की जैसे राबड़ी देवी जिस छवि की रही हैं वो एक छाप दिखाई देती है। इसमें भी बीजेपी ने वही पिछड़े और अति पिछड़े का जो समीकरण है वही साधने की कोशिश की। लगातार जो ये मैसेज दिया गया समाज के एक तबके को लगा कि क्या हमारे लिए एक लॉयिलिटी की कोई कद्र है या नहीं है इस पार्टी के अंदर। ये झटका इसलिए दिया है अब ये स्थायी होगा या नहीं? क्या तेजस्वी यादव इसको स्थायी बना पाएंगे और अगर ऐसा कर पाते हैं तो भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किल होगी।

बोचहां उपचुनाव के फाइनल नतीजे
बिहार की बोचहां विधानसभा सीट में सत्ताधारी बीजेपी को आरजेडी से शिकस्त मिली है। वीआईपी विधायक मुसाफिर पासवान के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें उनके बेटे अमर पासवान ने आरजेडी के टिकट पर दावेदारी की और 36653 वोटों से शानदार जीत दर्ज की। चुनाव से ठीक पहले आरजेडी में शामिल हुए अमर पासवान को कुल 82562 वोट मिले। वहीं बीजेपी कैंडिडेट बेबी कुमारी को 45909 मत मिले। VIP की गीता कुमारी को 29279 वोट आए हैं। कांग्रेस को नोटा से भी कम मत मिले।

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