यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत में तेज वृद्धि हुई है। एक समय कीमत 150 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 400 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी। अभी 300 डॉलर प्रति टन है। इससे आयातित कोयले पर निर्भर संयंत्रों ने आयात बंद-सा कर दिया। तमिलनाडु के अधिकांश संयंत्र इसी वजह से संकट में हैं।
देश में बिजली संकट की आहट करीब आती जा रही है। कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों के पास 12 अप्रैल को मात्र 8.4 दिन का कोयला बचा हुआ था। कोयले की कमी के कारण उत्पादन प्रभावित होने से 12 राज्यों ने बिजली कटौती शुरू कर दी है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने माना है, कुछ राज्यों में कोयले की कमी हो गई है। हालांकि, इसके लिए उन्होंने अलग कारण बताए हैं।
देश में अप्रैल में बिजली की मांग 38 वर्षों में सबसे ज्यादा है, जबकि कोयले की आपूर्ति बीते दस सालों में सबसे कम। पूरे वित्त वर्ष की बात करें तो बिजली संयंत्रों में कोयले की आपूर्ति पिछले साल के मुकाबले 24.5% बढ़कर 67.767 करोड़ टन रही है। इसके बावजूद, बढ़ी मांग से यह आपूर्ति भी कम पड़ रही है। कायदे से संयंत्रों के पास एक महीने का कोयला स्टॉक होना चाहिए।
महाराष्ट्र में 2500 मेगावाट बिजली की कमी है। ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में कटौती की घोषणा की गई है। आंध्र प्रदेश में मांग से 8.7 फीसदी बिजली कम है। वहीं, ऊर्जा मंत्री सिंह ने बताया कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान में आयात बंद करने या रेलवे से समय पर आपूर्ति न होने से कोयले की कमी हुई है। बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है। अनुमान है कि इस बार मांग में जबरदस्त इजाफा होगा, जो चार दशक में सबसे अधिक होगी।
आयातित कोयले का दाम दोगुना
यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत में तेज वृद्धि हुई है। एक समय कीमत 150 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 400 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी। अभी 300 डॉलर प्रति टन है। इससे आयातित कोयले पर निर्भर संयंत्रों ने आयात बंद-सा कर दिया। तमिलनाडु के अधिकांश संयंत्र इसी वजह से संकट में हैं।
मांग के अनुपात में आपूर्ति नहीं बढ़ी
देश में कोयले का रिजर्व कम हुआ है। पहले जो रिजर्व 14-15 दिन का रहता था, वह अभी सिर्फ 9 दिन का बचा है। दरअसल जिस अनुपात में मांग बढ़ी है उस अनुपात में उसकी आपूर्ति नहीं बढ़ पाई है। -आरके सिंह, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री