रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहे है। संयुक्त राष्ट्र में भी इस मामले को लेकर कई बार वोटिंग हो चुकी है हालांकि भारत हर बार तटस्थ रहा है। भारत ने प्रस्तावों पर होने वाली वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। इस बार भारत की गुट निरपेक्षता की बड़ी परीक्षा होने वाली है। गुरुवार को यूएन जनरल असेंबली के विशेष सत्र में इस बात पर वोटिंग होनी है कि क्या संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से रूस की सदस्यता खत्म कर दी जाए?
अब तक भारत यूएन के प्रस्तावों पर वोटिंग के दौरान दूरी बनाता रहा है। भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय समझौतों को लेकर इस बार कड़ी परीक्षा होने वाली है। इस बार अगर भारत वोट नहीं करता है तब भी यह बात पश्चिमी देशों के पक्ष में जाएगी।
दरअसल इस बार वोटिंग में उन देशों की गिनती नहीं की जाएगी जो वोट नहीं करेंगे। जो देश वोट करेंगे उनमें दो तिहाई बहुमत वाले फैसले को स्वीकार किया जाएगा। यूएन में रूस के प्रतिनिधि में इस बात की चेतावनी भी दे डाली है कि अगर कोई देश वोटिंग से दूरी बनाता है तो उसे भी विरोधी ही माना जाएगा।
जानकारी के मुताबिक इस प्रस्ताव पर यूएन में मोहर लगनी तय है। 2006 के रेजोलूशन के मुताबिक अगर कोई देश मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है तो उसकी सदस्यता यूएनएचसी से खत्म कर दी जाएगी। अगर भारत प्रस्ताव का समर्थन करता है तो रूस और भारत के बीच संबंध खटाई में पड़ जाएंगे। इस प्रस्ताव को पेश करने वाले लिथुआनिया ने कहा है कि गुरुवार को वोटिंग होगी।
4 मार्च 2022 को भी यूएन में रूस के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया था लेकिन इसमें भारत ने वोटिंग से दूरी बना ली थी। इसमें प्रस्ताव था कि यूक्रेन में रूस के हमलों की जांच के लिए एक कमिशन बनाया जाना चाहिए। बता दें कि बीते दिनों बूका में रूस की सेना ने कथित तौर पर बड़ा नरसंहार किया है। भारत ने अब तक यूएन बॉडी में इस मामले को लेकर नौ बार वोटिंग से दूरी बनाई है। इससे पहले 2011 में लीबिया को यूएनएचसी से बाहर कर दिया गया था।