चीन की चाल, श्रीलंका का फॉल, यूक्रेन वॉर… क्‍यों महत्‍वपूर्ण है नेपाल के पीएम शेर बहादुर देउबा का भारत दौरा

नेपाल के पीएम शेर बहादुर देउबा भारत पहुंच चुके हैं। बतौर पीएम उनका अंतिम भारत दौरा 2017 में हुआ था। जुलाई 2021 में पांचवीं बार हिमालयी देश की कमान संभालने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा है। इसके लिए उन्‍होंने भारत को चुनकर बड़ा पॉलिटिकल मैसेज दिया है। इस मैसेज में भारत का आभार और दोस्‍ती दोनों छुपे हैं।

Nepal PM Sher Bahadur Deuba visit to India: नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) भारत आ गए हैं। जुलाई 2021 में पांचवीं बार उन्‍होंने नेपाल के पीएम पद की शपथ ली थी। इसके बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा है। इसके लिए उन्‍होंने सबसे पहले भारत को चुनकर पूरी दुनिया को एक बड़ा मैसेज दिया है। नेपाल के पीएम तीन दिन (Deuba arrives India on three-day visit) भारत में रहेंगे। उनका यह विदेश दौरा कई लिहाज से महत्‍वपूर्ण है। दोनों देशों के संबंध थोड़े समय के लिए गलतफहमियों का शिकार हुए थे। अब इनमें दोबारा सुधार के संकेत दिख रहे हैं। इस बीच दोनों पड़ोसियों में दूरी का फायदा उठाने की चीन ने जो चाल चली थी, वह नाकाम साबित हुई है। नेपाल को ड्रैगन (China-Nepal relations) के विस्‍तारवादी मंसूबों का एहसास हो चुका है। यही कारण है कि उसने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के झांसे में आने से मना कर दिया। श्रीलंका (Sri Lanka Economic Crisis) की तरह वह अपनी दुर्गति नहीं कराना चाहता है। श्रीलंका आज अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। वहीं, यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दुनिया में उथल-पुथल मची है। देउबा की भारत के शीर्ष नेताओं के साथ इन सभी मसलों पर चर्चा हो सकती है।

देउबा का भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर है। कारोबार, निवेश, कनेक्टिविटी और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्रों में वह भारत का सहयोग चाहते हैं। सीमा पार रेलवे परियोजना की भारत फंडिंग कर रहा है। इस दौरे में काठमांडू के साथ एक भारतीय शहर को जोड़ने वाली एक और रेलवे लाइन की घोषणा होने की उम्‍मीद है। यह कदम द्विपक्षीय संबंधों के लिए बहुत महत्व रखता है। खासतौर से यह देखते हुए कि नेपाल बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल होने के चीन के प्रस्ताव को ठुकरा चुका है।

नेपाल ने चीन को द‍िया था झटका
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने हाल में नेपाल यात्रा की थी। इस दौरान दोनों देशों में नौ समझौतों पर हस्‍ताक्षर हुए थे। यह और बात है कि कोई भी बीआरआई से जुड़ा नहीं था। चीन की नेपाल में घुसपैठ से भारत हमेशा चौंकन्‍ना रहता है। इसकी वजह यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में चीन उसकी सुरक्षा के लिए चुनौती पेश करता है। भारत और नेपाल में ‘रोटी-बेटी’ का रिश्‍ता रहा है। रणनीतिक लिहाज से नेपाल भारत के लिए बहुत ज्‍यादा महत्‍व रखता है।

बीआरआई में नेपाल का शामिल नहीं होना चीन के लिए झटका था। वांग यी के लिए इस इनि‍शिएटिव पर नेपाल को तैयार करना पहली प्राथमिकता थी। नेपाल ने ऊंची ब्‍याज दरों और इसके लिए कड़ी शर्तों पर चिंता जताई थी। वह पहले ही श्रीलंका को देख चुका है। कैसे अनाप-शनाप शर्तों वाले कर्ज को न चुका पाने के कारण उसने मुसीबत मोल ले ली है। नेपाल को भी डर था कि कहीं इस चक्‍कर में वह अपनी संप्रभुता को खतरे में न डाल दे। वैसे चीन की असलियत धीरे-धीरे जगजाहिर होने लगी है। कैसे वह कर्ज की लॉलीपॉप दिखाकर अपना साम्राज्‍य फैलाता है। इसके उलट भारत ने इन देशों को आसान शर्तों के साथ कर्ज दिया है। अमूमन यह कर्ज ग्रांट के रूप में दिया गया है। नेपाल में नई रेलवे लाइन की पूरी लागत भारत वहन कर सकता है।

हाल में ऐसी रिपोर्टें आई थीं जिनमें कहा गया था कि चीन नेपाल के क्षेत्र में अवैध कब्‍जा करता जा रहा है। खासतौर से पश्चिमी नेपाल के इलाकों में चीन की काफी घुसपैठ हुई है। देउबा से पहले नेपाल में चीन के इशारे पर काम करने वाली कम्‍युनिस्‍ट सरकार सत्‍ता में थी। तब चीन ने नेपाल की काफी जमीन हड़प ली। यह सच सामने आने के बाद भी नेपाल ने चीन को रोकने की कोशिश नहीं की।

कसौट‍ियों पर खरे उतर चुके हैं भारत-नेपाल के संबंध
भारत-नेपाल के संबंध किसी से छुपे नहीं हैं। ये बेहद घनिष्‍ठ रहे हैं। जब-जब नेपाल पर मुश्किल पड़ी है भारत ने उसको उबारने में अपने पूरे संसाधन झोंक दिए हैं। चाहे प्राकृतिक आपदा का समय रहा हो या कोविड का भारत ने नेपाल की हर मुमकिन मदद की है। नेपाल के लिए भारत आवश्यक वस्तुओं का सबसे बड़ा सप्‍लायर रहा है। दोनों देशों के बहुत पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। हालांकि, भारत ने इसका कभी हिसाब नहीं मांगा। वहीं, चीन जब-जब कहीं घुसा है तो उसने वहां पर अपना हस्‍तक्षेप भी शुरू किया। श्रीलंका और पाकिस्‍तान इसके उदाहरण हैं।

कोरोना जब चरम पर था तब भारत ने नेपाल को दवाएं, एंबुलेंस और वेंटिलेटर के साथ तमाम आवश्‍यक चिाकित्‍सा उपकरण डोनेट किए। दूसरी लहर में जब ऑक्सिजन की देश में ही जबर्दस्‍त मांग थी उस वक्‍त भी भारत ने नेपाल से मुंह नहीं फेरा। वह एक एकमात्र देश था जिसने उस मुश्किल दौर में भी नेपाल में ऑक्सिजन भेजी। जबकि भारत में ही ऑक्सिजन के लिए त्राहि-त्राहि मची थी।

नेपाल के लोगों ने भी इस मदद की गहराई को समझा और भारत की सराहना की। जब कोरोना की वैक्‍सीन बनी तो उसे नेपाल को भी उपलब्‍ध कराया गया। तत्कालीन नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी इससे गदगद हो गए थे। वो खुद को भारत की तारीफ करने से रोक नहीं पाए थे। उन्‍होंने भारत को सच्‍चा मित्र बताते हुए धन्‍यवाद दिया था।

देउबा का भारत आना नेपाल के साथ हमारे मजबूत रिश्‍तों पर मुहर है। हाल में जब रूस के हमले के बाद यूक्रेन में लोग फंस गए तो भारत ने सिर्फ अपनों को ही नहीं बल्कि नेपाली नागरिकों को भी निकालने में मदद की थी। तब देउबा ने पीएम नरेंद्र मोदी को धन्‍यवाद दिया था।

भारत नेपाल का सच्‍चा दोस्‍त साबित हुआ
इसके पहले 2021 में भारत ने अफगानिस्तान से भी कई नेपालियों को निकालने में सहायता की थी। भारत की ओर से उठाए गए इन कदमों ने नेपाल की तमाम तरह की गलतफहमियों को दूर किया है। उसे एहसास हो चुका है कि भारत से ज्‍यादा सच्‍चा और भरोसेमंद दोस्‍त उसका कोई नहीं है। जुलाई 2021 में देउबा के पीएम बनने के बाद दोनों देशों के रिश्‍तों में सुधार की रफ्तार तेज हुई है। नवंबर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नेपाली सेना प्रमुख जनरल प्रभुराम शर्मा को भारतीय सेना के जनरल की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।

अपनी तीन दिवसीय यात्रा में देउबा बीजेपी कार्यालय का दौरा करेंगे। बीजेपी प्रेसीडेंट जेपी नड्डा ने उन्‍हें इसके लिए इनवाइट किया है। वह पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी जाएंगे। उनकी यह यात्रा दोनों देशों को आपसी रिश्‍तों को आगे बढ़ाने का मौका देगी। देउबा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तरीय वार्ता करेंगे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मिलेंगे। उनकी भारतीय उद्यमियों से भी मुलाकात होगी। नेपाल के पीएम के तौर पर देउबा का अंतिम भारत दौरा 2017 में हुआ था।

यह दौरा भारत को भी मौका देगा कि वह अपने पड़ोसी देश को दोबारा यह विश्‍वास दिलाने में कामयाब हो कि वह हमेशा उसके साथ खड़ा है। लेकिन, वह किसी बाहरी बहकावे में नहीं आए। खासतौर से चीन भारत को ध्‍यान में रखकर नेपाल के कंधे से जो बंदूक चलाने की कोशिश कर रहा है, वह कतई उसके चक्‍कर में नहीं पड़े। उसे बताना है कि कैसे दोनों देश मिलकर विकास की राह में और आगे बढ़ सकते हैं।

नेपाल के लोगों ने भी इस मदद की गहराई को समझा और भारत की सराहना की। जब कोरोना की वैक्‍सीन बनी तो उसे नेपाल को भी उपलब्‍ध कराया गया। तत्कालीन नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी इससे गदगद हो गए थे। वो खुद को भारत की तारीफ करने से रोक नहीं पाए थे। उन्‍होंने भारत को सच्‍चा मित्र बताते हुए धन्‍यवाद दिया था।

देउबा का भारत आना नेपाल के साथ हमारे मजबूत रिश्‍तों पर मुहर है। हाल में जब रूस के हमले के बाद यूक्रेन में लोग फंस गए तो भारत ने सिर्फ अपनों को ही नहीं बल्कि नेपाली नागरिकों को भी निकालने में मदद की थी। तब देउबा ने पीएम नरेंद्र मोदी को धन्‍यवाद दिया था।

भारत नेपाल का सच्‍चा दोस्‍त साबित हुआ
इसके पहले 2021 में भारत ने अफगानिस्तान से भी कई नेपालियों को निकालने में सहायता की थी। भारत की ओर से उठाए गए इन कदमों ने नेपाल की तमाम तरह की गलतफहमियों को दूर किया है। उसे एहसास हो चुका है कि भारत से ज्‍यादा सच्‍चा और भरोसेमंद दोस्‍त उसका कोई नहीं है। जुलाई 2021 में देउबा के पीएम बनने के बाद दोनों देशों के रिश्‍तों में सुधार की रफ्तार तेज हुई है। नवंबर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नेपाली सेना प्रमुख जनरल प्रभुराम शर्मा को भारतीय सेना के जनरल की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।

अपनी तीन दिवसीय यात्रा में देउबा बीजेपी कार्यालय का दौरा करेंगे। बीजेपी प्रेसीडेंट जेपी नड्डा ने उन्‍हें इसके लिए इनवाइट किया है। वह पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी जाएंगे। उनकी यह यात्रा दोनों देशों को आपसी रिश्‍तों को आगे बढ़ाने का मौका देगी। देउबा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तरीय वार्ता करेंगे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मिलेंगे। उनकी भारतीय उद्यमियों से भी मुलाकात होगी। नेपाल के पीएम के तौर पर देउबा का अंतिम भारत दौरा 2017 में हुआ था।

यह दौरा भारत को भी मौका देगा कि वह अपने पड़ोसी देश को दोबारा यह विश्‍वास दिलाने में कामयाब हो कि वह हमेशा उसके साथ खड़ा है। लेकिन, वह किसी बाहरी बहकावे में नहीं आए। खासतौर से चीन भारत को ध्‍यान में रखकर नेपाल के कंधे से जो बंदूक चलाने की कोशिश कर रहा है, वह कतई उसके चक्‍कर में नहीं पड़े। उसे बताना है कि कैसे दोनों देश मिलकर विकास की राह में और आगे बढ़ सकते हैं।

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