Exclusive: “जम्मू-कश्मीर में पिछले 30 साल से कोई हल नहीं निकला” : रिटायर्ड जस्टिस संजय किशन कौल

जस्टिस संज कौल (Justice Sanjay Kaul On Jammu Kashmir) ने कहा कि किसी भी फैसले पर अक्सर दो तरह के मुद्दे या टिप्पणियां उठती हैं. कुछ लोग उससे खुश होंगे और कुछ नहीं होंगे. एक जज का काम है कि वह या तो किसी के फेवर में या किसी के खिलाफ फैसला देता है.

नई दिल्ली: 

जम्मू कश्मीर में जो भी हुआ, उसे मानना और मानकर भूलना होगा और आगे बढ़ना होगा. जम्मू कश्मीर पर ये बात सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में रिटायर हुए जज जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul On Jammu Kashmir) ने कही.  जस्टिस कौल ने एनडीटीवी के सीनियर एडीटर लीगल से आशीष भार्गव के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा कि जम्मू कश्मीर में 30 साल से कोई हल नहीं निकला. एक पूरी की पूरी पीढ़ी बड़ी हो चुकी है, ऐसे में एक ही हल है कि कश्मीर मुद्दे को शांत कर आगे बढ़ा जाए. ये बात बोलते-बोलते जस्टिस कौल भावुक हो गए.

अनुच्छेद 370 पर क्या बोले रिटायर्ड जस्टिस कौल?

जस्टिस कौल जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले और अनुच्छेद 370 को खारिज करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच में भी शामिल थे. उन्होंने अलग से अपना फैसला पढ़ा था. जिसमें अनुच्छेद 370 को खारिज करने के साथ ही जम्मू-कश्मीर के हालात पर विशेष टिप्पणी भी की गई.

इस सवाल के जवाब में जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि हम सभी की कहीं न कहीं एक सोच होती है, वह जम्मू-कश्मीर से जुड़े हैं, उन्होंने वहां की पीड़ा दोनों तरफ से देखी है. उन्होंने जो भी रखा है उसमें जैसे 1980 से कुछ न कुछ दिक्कत चली आ रही थी, लेकिन वह 1989 में आकर एक तरह से उभर गई. वहां से साढ़े 4 लाख कश्मीरी पंडितों को निकाल दिया गया. लेकिन किसी ने भी इसका कोई भी हल नहीं ढूंढा. स्थिति बहुत खराब हो गई और अच्छा माहौल बिगड़ गया.

उन्होंने कहा कि ये सब कितना मुश्किल है शायद हम इसे समझ ही नहीं पाए. 1989 में जब वह वहां पर रहते थे, उनके कॉटेज के आसपास एक से डेढ़ मील तक कोई भी आबादी नहीं थी. वह अपने कजिन्स के साथ वहां रहते थे, बाहर वॉक पर जाते थे. उनको कभी कोई डर महसूस नहीं हुआ.

किसी भी फैसले पर अक्सर दो तरह के मुद्दे या टिप्पणियां उठती हैं. कुछ लोग उससे खुश होंगे और कुछ नहीं होंगे. एक जज का काम है कि वह या तो किसी के फेवर में या किसी के खिलाफ फैसला देता है. वादी कहीं न कहीं नेगेटिव एनर्जी लेकर आता है. वह इस एनर्जी को वकील के पास छोड़ता है और वकील अपनी नेगेटिव एनर्जी जज के पास छोड़कर चला जाता है. यह हमारा काम हैं, इससे कोई खुश होगा और कोई नहीं होगा. अनुच्छेद 370 संवैधानिक मुद्दा था. इसके दो पहलू थे.

पहला पहलू यह था कि ये हो सकता है या नहीं. पब्लिक डिबेट में भी बहुत ज्यादा व्यूज अलग नहीं हैं,ऐसा भी हो सकता है क्यों कि संवैधानक प्रोवेजन ऐसा था, जो कश्मीर की असेंबलेशन में एक प्रोवेशन था. सही है कि कुछ लोग कहते हैं कि इसको परमानेंट होना चाहिए था. धीरे-धीरे जो अलग-अलग ऑफिशियल ऑर्डर इशू हुए उससे उसकी डायल्यूशन भी हुई है, अब उसको खत्म करना चाहिए था या नहीं करना चाहिए था ये पॉलिटिकल डिसीजन था, जो पॉलिटिकली लिया. जुडीशियली ये हो सकता था या नहीं इस पर एक वर्डिक्ट है.

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