न्यायालय कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिनमें हिंसा के मामलों की जांच अदालत की निगरानी में कराने के अलावा राहत एवं पुनर्वास के लिए उठाए कदमों के बारे में बताने का अनुरोध किया गया है.
नई दिल्ली:
मणिपुर हिंसा मामले की जांच के लिए गठित जस्टिस गीता मित्तल समिति का कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने और बढ़ा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में सार्वजनिक प्रार्थना स्थलों को सुरक्षित करने के लिए कदम उठाने को कहा है. मणिपुर सरकार ने एक हलफनामा दायर किया था. इस हलफनामे में उल्लेख किया गया था कि जातीय हिंसा के बीच राज्य में प्रार्थना स्थलों में तोड़फोड़ की गई है. उन्हें नुकसान पहुंचाया गया और जला दिया गया है.
याचिकाकर्ताओं के वकील हुजैफा अहमदी से कोर्ट ने प्रभावित धार्मिक स्थलों की सूची मांगी है. अहमदी ने कहा कि ये आंकड़े उनके पास नहीं हैं. लेकिन अपनी अर्जी के साथ कुछ गिरजाघरों की तस्वीरें उन्होंने अदालत को दी है. इस पर अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा कि कई मंदिरों को भी नुकसान पहुंचाया गया है. जब कोर्ट में बात हो तो सभी धर्म स्थलों की बात होनी चाहिए.
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रार्थना स्थलों के जीर्णोद्धार के मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि राज्य सरकार हिंसा के दौरान क्षतिग्रस्त किए गए धार्मिक स्थलों की पहचान करने के बाद एक व्यापक सूची दो सप्ताह के भीतर समिति को सौंपे.
पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल रहे. पीठ ने स्पष्ट किया कि ऐसी संरचनाओं की पहचान में सभी धार्मिक स्थल शामिल होंगे.
उसने कहा, ‘‘मणिपुर सरकार समिति को सार्वजनिक प्रार्थना स्थलों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताएं.”
सुप्रीम कोर्ट ने समिति को मई के बाद से हिंसा के दौरान क्षतिग्रस्त या नष्ट किए गए सार्वजनिक प्रार्थना स्थलों के जीर्णोद्धार समेत कई कदमों पर एक व्यापक प्रस्ताव तैयार करने की भी अनुमति दे दी है.
न्यायालय कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिनमें हिंसा के मामलों की जांच अदालत की निगरानी में कराने के अलावा राहत एवं पुनर्वास के लिए उठाए कदमों के बारे में बताने का अनुरोध किया गया है.
उसने न्यायूमर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल की अध्यक्षता में उच्च न्यायालय की पूर्व महिला न्यायाधीशों की एक समिति नियुक्त की थी. इसमें न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) शालिनी पी. जोशी और न्यायमूर्ति आशा मेनन भी शामिल हैं.
मणिपुर में गैर-आदिवासी मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने पर विचार करने का राज्य सरकार को निर्देश देने वाले उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद मई में हिंसा भड़क गयी थी. इस हिंसा में 170 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों अन्य घायल हो गए हैं.