कृत्रिम मेधा में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन इससे जुड़ी चिंताओं का दूर करना जरूरी: राष्ट्रपति मुर्मू

राष्ट्रपति ने कहा कि कृत्रिम मेधा और अन्य समकालीन प्रौद्योगिकी विकास असीमित और अभूतपूर्व विकासात्मक और परिवर्तनकारी संभावनाएं प्रस्‍तुत कर रहे हैं.

लखनऊ: 

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को कहा कि कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियन इंटेलिजेंस) और अन्य समकालीन प्रौद्योगिक विकास में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन इनके उपयोग से जुड़ी चिंताओं को दूर करना भी जरूरी है. राष्ट्रपति ने कहा कि आज भारत के पास पांच-डी: डिमांड (मांग), डेमोग्राफी(जनसांख्यिकी), डेमोक्रेसी (लोकतंत्र), डिजाइयर (इच्छा) और ड्रीम (सपने) हैं. ये सभी हमारी विकास यात्रा में बहुत लाभकारी सिद्ध होंगी.

उन्होंने यहां भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) के दूसरे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा, ‘‘हमारी अर्थव्यवस्था, जो एक दशक पहले 11वें स्थान पर थी, आज पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और यह वर्ष 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के राह पर है.”

उन्होंने यह भी कहा, ‘‘भारत एक प्रगतिशील और लोकतांत्रिक राष्ट्र है. हमारा यह सपना है कि भारत वर्ष 2047 तक एक विकसित देश बने. यह आईआईआईटी, लखनऊ के सभी छात्रों की जिम्मेदारी है कि वे न केवल इस परिकल्पना में भागीदार ही न बनें, बल्कि इसे पूरा करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान भी दें.”

राष्ट्रपति ने कहा कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हम चौथी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत देख रहे हैं.

मानव जीवन को आसान बनाने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृत्रिम मेधा एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो रहा है. अपने व्यापक अनुप्रयोगों के साथ, कृत्रिम मेधा और मशीन लर्निंग हमारे जीवन के लगभग सभी पहलुओं को छू रहे हैं. स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कृषि, स्मार्ट सिटी, बुनियादी ढांचे, स्मार्ट गतिशीलता और परिवहन जैसे सभी क्षेत्रों में, कृत्रिम मेधा और मशीन लर्निंग बड़े पैमाने पर हमारी दक्षता तथा कार्य क्षमता में सुधार के कई अवसर प्रस्‍तुत कर रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि भारत कृत्रिम मेधा, मशीन लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और ब्लॉकचेन जैसी नई प्रौद्योगिकियों के वैश्विक केंद्र के रूप में भी उभर रहा है.

राष्ट्रपति ने कहा कि कृत्रिम मेधा और अन्य समकालीन प्रौद्योगिकी विकास असीमित और अभूतपूर्व विकासात्मक और परिवर्तनकारी संभावनाएं प्रस्‍तुत कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन, यह जरूरी है कि पहले कृत्रिम मेधा के इस्तेमाल जुड़ी चिंताओं को दूर किया जाए. चाहे वो स्वचालन के कारण उत्पन्न हुई रोजगार की समस्या हो, या आर्थिक असमानता की बढ़ती हुई खाई हो या कृत्रिम मेधा से उत्पन्न मानवीय पूर्वाग्रह हो, हमें इन सभी समस्याओं का रचनात्मक तरीके से समाधान करना होगा.”

उन्होंने कहा कि हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हम ‘‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस” के साथ-साथ ‘‘इमोशनल इंटेलिजेंस” को भी महत्व दें.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमें यह याद रखना होगा कि कृत्रिम मेधा एक साध्य नहीं बल्कि एक साधन होना चाहिए जिसका उद्देश्य मानव जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाना है. हमारे हर निर्णय से सबसे निचले पायदान पर बैठे व्यक्ति को भी लाभ मिलना चाहिए.”

राष्ट्रपति ने कहा कि यह जानकर काफी खुशी हुई कि आईआईआईटी लखनऊ को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा दिया गया है.

राष्ट्रपति ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं में ज्ञान प्राप्त करने का विचार एक सकारात्मक कदम है. यह कदम भाषाई सीमाओं के कारण ज्ञानवर्धन के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के बारे में एक बड़ा कदम साबित होगा.

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