कोर्ट ने जमानत आदेश पर बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा दी गई रोक को भी सुनवाई की अगली तारीख 5 अक्टूबर तक बढ़ा दिया.
नई दिल्ली:
भीमा कोरेगांव मामले (Bhima Koregaon Case) में आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता महेश राउत की जमानत के खिलाफ NIA की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने महेश राउत को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. फिलहाल जमानत पर बाहर नहीं आ सकेंगे राउत. सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रोक के आदेश को पांच अक्तूबर तक बढ़ा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कथित माओवादी संबंधों को लेकर आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता महेश राउत को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी की अपील मंजूर कर ली है.
कोर्ट ने जमानत आदेश पर बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा दी गई रोक को भी सुनवाई की अगली तारीख 5 अक्टूबर तक बढ़ा दिया. जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ NIA की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही है. जिसमें राउत की जमानत अर्जी को अनुमति देने के 21 सितंबर को दिए गए बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है. कोर्ट ने एक सप्ताह की अवधि के लिए रिहाई को टाल दिया था.
21 सितंबर को हाईकोर्ट ने दी थी जमानत
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 सितंबर को एल्गार परिषद-माओवादी संबंधों के आरोपी महेश राउत को जमानत दे दी थी. पीठ ने कहा कि वह एनआईए की इस दलील को स्वीकार करने में असमर्थ है कि राउत ने प्रतिबंधित संगठन में लोगों को भर्ती करने का अपराध किया है. जिन लोगों पर संगठन में भर्ती होने या शामिल होने का आरोप है,उनमें से किसी का भी कोई सबूत नहीं है. सुनवाई- के दौरान पीठ ने कहा कि अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि राउत सीपीआई (माओवादी) के सदस्य थे.
सशर्त मिली थी जमानत
पीठ ने कहा कि वो पांच साल से अधिक समय से प्री-ट्रायल कैद में थे और उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है. इसके साथ ही पीठ ने राउत को जमानत के तौर पर एक लाख रुपये की जमानत राशि भरने का निर्देश दिया. साथ ही कहा, राउत मुंबई छोड़कर बाहर नहीं जा सकते हैं, यदि वे बाहर यात्रा करना चाहते हैं तो उन्हें विशेष एनआईए अदालत से पूर्व अनुमति लेनी होगी. राउत ने जमानत की मांग करते हुए 2022 में उच्च न्यायालय का रुख किया था.
राउत ने विशेष एनआईए अदालत द्वारा उन्हें जमानत न देने के आदेश को चुनौती दी थी याचिका में कहा था कि उनकी हिरासत अनुचित थी. एनआईए ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज आरोपी को संवैधानिक आधार पर जमानत देना उचित नहीं है. इस मामले में 16 एक्टिविस्ट को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से पांच फिलहाल जमानत पर हैं.