कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर आपके पास दो या दो से अधिक राज्य एक साथ आते हैं, तो आप एक केंद्र शासित प्रदेश बना सकते हैं. लेकिन आप एक राज्य में दो केंद्र शासित प्रदेश नहीं बना सकते.नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 के खिलाफ याचिकाओं पर पांच जजों की संविधान पीठ में तीसरे दिन की सुनवाई पूरी हुई. जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को शिथिल करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कपिल सिब्बल ने दलील दी कि क्या इस संबंध में एक स्पष्ट प्रावधान के बावजूद जम्मू-कश्मीर के लोगों के परामर्श के बिना संवैधानिक रूप से आमूल चूल परिवर्तन हो सकता है? क्या किसी राज्य के लोगों से परामर्श किए बिना अपनी मर्जी से उसे केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित किया जा सकता है? ये संवैधानिक पैमाने हैं, लेकिन बहुमत की सत्ता से ऐसे संवैधानिक परिवर्तन नहीं किए जा सकते. संविधान में ऐसा इरादा कभी नहीं था कि संविधान की संरचना बदल दी जाए. लेकिन अब इसे बदल दिया गया.
कपिल सिब्बल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में लागू कर इसने सभी सीमाएं पार कर दी हैं. वहां लोकतंत्र की बहाली के कदम कहां हैं? ये कदम लोकतंत्र को उल्टा कर दिया. लोगों की भावनाओं पर ध्यान ही नहीं दिया जाता. उनके विचारों पर ध्यान नहीं दिया जाता. अनुच्छेद 356 के तहत किया गया हर काम संघवाद और लोकतंत्र दोनों के बुनियादी सिद्धांतों और संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत के खिलाफ हैं. 356 इस उद्देश्य के लिए नहीं है. अदालत को यह निर्धारित करना होगा.
उन्होंने कहा कि क्या यह शक्ति का अत्यधिक उपयोग नहीं था? आनुपातिकता का सिद्धांत इस संदर्भ में प्रासंगिक है और इसे लागू किया जाना चाहिए. सामान्य परिस्थितियों में इस तरह से विधानसभा भंग नहीं की जा सकती, सबसे पहले विधानसभा निलंबित की जाएगी. फिर सरकार बनाने का प्रयास किया जाएगा, जब आपको एहसास होता है कि यह बिल्कुल भी संभव नहीं है, तब आप विधानसभा भंग कर देते हैं और चुनाव बुलाते हैं. इस बीच आप राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं. आपने विधानसभा कब भंग की? 21 नवंबर 2018 को और आज हम कहां हैं? अगस्त 2023 में इसमें 356 का मकसद कहां है.
सिब्बल ने कहा कि उन्होंने क्या किया वे जानते थे कि मंत्रिपरिषद कभी भी राज्यपाल को भंग करने की सलाह नहीं देगी. इसलिए उन्होंने इसे अपने आप ही भंग कर दिया. फिर गवर्नर ने 356 लगाया, शक्तियां अपने हाथ में ले लीं. अंततः आप एक प्रतिनिधि हैं. 356 आपको विधायिका की शक्ति सौंपता है. इससे आप जो चाहें वह करने के लिए सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान अथॉरिटी नहीं बन जाते, आप बस एक प्रतिनिधि हैं. यदि आप इस अनुच्छेद में “राज्य” शब्द के स्थान पर यूनियन टेरेटरी शब्द को स्थापित करते हैं, तो इसका कोई मतलब नहीं बनता है.
उन्होंने कहा कि आप किसी राज्य को यूटी में नहीं बदल सकते. यह सरकार के रिप्रजेंटेशन के सभी सिद्धांतों के विपरीत है. यह किसी राज्य को समाप्त करने की अनुमति नहीं देता है. क्या आप कल यह तर्क दे सकते हैं कि मध्य प्रदेश या बिहार केंद्र शासित प्रदेश हो सकते हैं? या आप इसे एक के साथ कर सकते हैं. आप राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं, सभी राज्यों को केंद्र शासित प्रदेश बना सकते हैं. अगर आपके पास दो या दो से अधिक राज्य एक साथ आते हैं तो आप एक केंद्रशासित प्रदेश बना सकते हैं. लेकिन आप एक राज्य में दो केंद्र शासित प्रदेश नहीं बना सकते.
कपिल सिब्बल ने कहा कि यदि आपने लोगों की आवाजें दबा दीं, तो लोकतंत्र में क्या बचा है? मैं बस इतना कह सकता हूं कि यह ऐतिहासिक क्षण है, वर्तमान के लिए नहीं बल्कि भारत के भविष्य के लिए ऐतिहासिक है. मुझे आशा है कि यह अदालत चुप नहीं रहेगी.
इस दौरान CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 370(3) विशेष रूप से निरस्त करने के लिए अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों का प्रावधान करता है. उन्होंने कहा कि एक बार मान भी लें कि कानून बनाने वाली संस्था के रूप में संसद के पास धारा 370 में संशोधन करने या उसे निरस्त करने की शक्ति है, तो कोई भी संशोधन नैतिकता के आधार पर आलोचना का विषय हो सकता है, लेकिन शक्ति के आधार पर नहीं. यह एक राजनीतिक तर्क हो सकता है लेकिन संसद में संवैधानिक शक्ति की कमी का मुद्दा नहीं उठाया जा सकता.
CJI ने कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होते ही धारा 370 में संशोधन करने की शक्ति पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी?
हमारे जैसे संविधान में जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है. संवैधानिक लोकतंत्र में लोगों की राय लेना स्थापित संस्थानों के माध्यम से होना चाहिए. जब तक लोकतंत्र मौजूद है, लोगों की इच्छा का कोई भी सहारा स्थापित संविधान द्वारा व्यक्त किया जाना चाहिए. इसलिए आप BREXIT जैसे जनमत संग्रह की परिकल्पना नहीं कर सकते. वह एक राजनीतिक फैसला है जो तत्कालीन सरकार ने लिया था. लेकिन हमारे जैसे संविधान में जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है.
वहीं कपिल सिब्बल ने कहा कि आप 370 को बदल भी नहीं सकते, निरस्त करना तो भूल ही जाइए. ये संविधान के साथ धोखा है. इस पर सीजेआई ने कहा, “लेकिन 370 खुद कहता है कि इसे निरस्त किया जा सकता है.”
जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि धारा 370(1) के खंड (डी) के तहत, राष्ट्रपति संशोधन कर सकते हैं. इन संशोधनों को करने के लिए, प्रक्रिया क्या होगी? सिब्बल ने कहा कि इसकी एक अलग व्याख्या दी गई है, यह संविधान में संशोधन करने वाली व्याख्या से अलग है.
जस्टिस खन्ना ने फिर पूछा, क्या अलग व्याख्या के खंड में संशोधन नहीं किया जा सकता? सिब्बल ने कहा, नहीं, किसी व्याख्या के जरिए आप 370 में संशोधन नहीं कर सकते. आप संविधान सभा का स्थान नहीं ले सकते. जो आप प्रत्यक्ष रूप से नहीं कर सकते, वह आप अप्रत्यक्ष रूप से भी नहीं कर सकते. इसे निरस्त करना एक राजनीतिक निर्णय था और जम्मू-कश्मीर के लोगों की राय मांगी जानी चाहिए थी. उन्होंने ब्रेक्जिट का उदाहरण दिया, जहां जनमत संग्रह हुआ था.
सीजेआई ने कहा कि 367(4) पहली बार संविधान के साथ नहीं, बल्कि इसे 1954 में लाया गया था. इसलिए जब 367(4) लाया जाता है, यदि आपका तर्क सही है, तो 367(4) की मूल प्रविष्टि भी अमान्य है. सिब्बल ने कहा कि ये सिर्फ व्याख्या है. मुझे अगर ऐसा करना होता तो मैं 370 में संशोधन नहीं करता, बल्कि 367 में संशोधन करके 370 में संशोधन करूंगा?
जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि इसे सीधे शब्दों में कहें तो जब अनुच्छेद 356 लागू है, तो आप अनुच्छेद 370(1) के खंड (4) को कैसे लागू करेंगे? आप यही कहना चाह रहे हैं? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 2019 में 370 हटाने के बाद अब राज्य में लगभग 1200 कानून लागू हैं. जो बाकी देश के नागरिकों के लिए उपलब्ध सभी लाभकारी कानून अब जम्मू-कश्मीर के लिए भी उपलब्ध हैं. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम लागू नहीं था. आरटीई लागू नहीं था.
सिब्बल ने जवाब देते हुए कहा कि भ्रष्टाचार निवारण कानून वहां पहले से लागू था. ऐसी व्याख्या को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो हमारे संवैधानिक मूल्यों, अर्थात प्रतिनिधि लोकतंत्र, संघवाद और संवैधानिक नैतिकता के साथ अधिक सुसंगत हो. इससे संविधान का सुचारू और सामंजस्यपूर्ण कामकाज सुनिश्चित हो. उन्होंने 370(1)(डी) के तहत मिली शक्ति को पहले से तय तीन मामलों के अलावा 370 को हटाया नहीं जा सकता. अनुच्छेद 3 के तहत शक्ति किसी राज्य के कैरेक्टर को खत्म कर केंद्र शासित प्रदेश नहीं बना सकते है.
सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल की दलीलें पूरी हो गईं हैं. अब बुधवार को गोपाल सुब्रमण्यम दलील देंगे.