रायपुर : शहरी गौठानों में इकोफ्रेंडली उत्पादों का सवा तीन करोड़ रूपये से अधिक का व्यवसाय

महिला समूहों की सदस्यों को 65 लाख रूपये से अधिक का फायदा

रायपुर के शहरी गौठानों से ही निकला रीपा का कांसेप्ट

पूरे देश में गौठान, गांवों में पशुओं के ठहरने की जगह के रूप में पहचाने जाते है, परन्तु छत्तीसगढ़ में गौठानों को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बदलने वाले संस्थानों के रूप में भी पहचान मिल रही है। खास बात यह है कि राज्य में शहरी क्षेत्रों में भी मवेशियों के ठहरने के लिए डे केयर सेंटर के रूप में शुरू किए गए शहरी गौठान अब कमजोर वर्ग की महिलाओं और स्व-सहायता समूहों के लिए आमदनी के नये केन्द्र बन गए है। करीब तीन साल पहले प्रदेश में रायपुर शहर में शहरी गौठान शुरू किए गए। आवारा मवेशियों के सड़कों पर घूमने से होने वाली दुर्घटना और अन्य दूसरे कारणों से निजात के लिए गौठान शुरू किए गए थे। नरवा, गरवा, घुरवा बाड़ी संकल्पना पर शुरू हुए गौठान तेजी से मल्टी एक्टिविटी सेंटर के रूप में विकसित हुए है। रायपुर शहर के गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, कण्डा, गौकाष्ट, गोबर का पेंट, गौमूत्र आदि इको फ्रेंडली उत्पादों का व्यवसाय सवा तीन करोड़ रूपये से ज्यादा का हो गया है। पिछले ढाई-तीन सालों में रायपुर के शहरी गौठानों में काम करने वाली स्व-सहायता समूहों की महिलाओं को 65 लाख रूपये से अधिक का मुनाफा हो चुका है। लाभांश की यह राशि समूह की महिलाओं को दी भी जा चुकी है।

गांवों की तरह शहर में गौठानों का कांसेप्ट कमजोर वर्गों की माली हालत सुधारने और महिलाओं को घर के पास रोजगार देने में सफल साबित हुआ है। रायपुर जिले के गौठानों को माॅडल के रूप में सफल होता देख राज्य सरकार ने ग्रामीण स्तर पर भी गौठानों को मल्टी एक्टिविटी सेंटरों के रूप में विकसित करने पर जोर दिया है। अब इससे भी आगे बढ़कर रायपुर के शहरी गौठानों के तर्ज पर गांवों के चिन्हांकित गौठानों को रूरल इंडस्ट्रीयल पार्क के रूप में भी विकसित किया जा रहा है। रायपुर के शहरी गौठानों में 250 से अधिक महिला परिवारों को रोजगार मिला है। गोबर के इको फ्रेंडली सामान, मूर्तियां, गमले, दीया, गौकाष्ट, गोबर का पेंट-इमल्शन आदि बनाने का काम सबसे पहले रायपुर के शहरी गौठानों में ही शुरू हुए है। इन गौठानों में अब गोबर के साथ-साथ गौमूत्र भी खरीदा जा रहा है। रायपुर के दस शहरी गौठानों में अब तक गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाकर लगभग 1 करोड़ 10 लाख रूपये से अधिक का व्यवसाय हो चुका है। इसी तरह लगभग 2 करोड़ रूपये के सुपर कम्पोस्ट और लगभग 16 लाख रूपये के दीया, कण्डा, गौकाष्ट जैसे उत्पादों के साथ-साथ 30 लाख रूपये का गोबर के पेंट का भी व्यवसाय महिला समूहों ने कर लिया है।

रायपुर के शहरी गौठानों में जुलाई 2020 से गौधन न्याय योजना के तहत गोबर की खरीदी शुरू हुई है। अभी तक लगभग 1 लाख 44 हजार क्विंटल से अधिक गोबर की खरीदी गौठानों और महिला समूहों ने कर ली है। इस गोबर का उपयोग कर महिलाओं ने लगभग 11 हजार क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट, लगभग 32 हजार क्विंटल सुपर कम्पोस्ट, नौ सौ क्विंटल गौकाष्ट, नौ सौ क्ंिवटल से अधिक कण्डे और लगभग 20 हजार लीटर गोबर का पेंट बनाया है। गौठानों में 6 हजार लीटर से अधिक गौमूत्र भी खरीदा गया है। गौठानों में महिलाएं गोबर की मूर्तियां, गोबर का सूटकेस, गोबर का चप्पल, गुलाल से लेकर गौमूत्र से फसलों में उपयोग होने वाले कीटनाशक ब्रम्हास्त्र व जीवामृत भी बना रही है। राज्य शासन द्वारा गौठानों को आगे भी अपग्रेड करने की योजना है ताकि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिल सके और महिलाएं आत्मनिर्भर हो सके।

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