जयपुर बम धमाका केस: HC का फैसला पीड़ितों के लिए ‘सदमा’, चुनौती देगी राज्‍य सरकार

नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने 15 साल जेल में बिताने वाले आरोपियों को मुआवजा देने, धमाकों में मारे गए और घायल हुए लोगों को न्याय दिलाने के लिए मामले की नए सिरे से जांच की मांग की है.

जयपुर: 

राजस्थान के जयपुर शहर में वर्ष 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का उन लोगों ने ‘सदमा’ करार दिया है, ज‍िन्‍होंने इन धमाकों में अपने परिजनों को गंवा द‍िया था. वहीं, एक सरकारी वकील ने कहा है क‍ि राज्‍य सरकार इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी. राजस्थान हाईकोर्ट ने बुधवार को इस मामले में वर्ष 2019 में निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को रद्द करते हुए चारों आरोपियों को बरी कर दिया था.

इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने ‘खराब’ जांच के लिए भी जांच एजेंसी को फटकार लगाई. राजस्थान की राजधानी जयपुर में 13 मई 2008 को सिलसिलेवार हुए आठ बम धमाकों में कम से कम 71 लोगों की मौत हुई थी और 180 से अधिक घायल हुए थे. वहीं, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने 15 साल जेल में बिताने वाले आरोपियों को मुआवजा देने, धमाकों में मारे गए और घायल हुए लोगों को न्याय दिलाने के लिए मामले की नए सिरे से जांच की मांग की है.

लगभग 11 साल पहले हुए आठ सिलसिलेवार बम धमाकों ने जयपुर के परकोटे शहर को हिला दिया था. पहला धमाका चांदपोल हनुमान मंदिर और उसके बाद दूसरा सांगानेरी गेट हनुमान मंदिर पर हुआ था. इसके बाद बड़ी चौपड़, जोहरी बाजार, छोटी चौपड़ और तीन अन्य स्थानों पर धमाके हुए थे. बम साइकिल पर टिफिन बॉक्स में रखे गए थे.

उच्‍च न्‍यायालय का फैसला आने के बाद कपड़ा कारोबारी राजेंद्र साहू ने सवाल उठाया,”क्या यही न्याय है?” साहू की पत्नी सुशीला विस्‍फोट के कारण चोटिल हुईं थी. सिर में चोट के कारण वह चार साल तक कोमा में रहीं और 2012 में उनका निधन हो गया.

साहू पूछते हैं, ‘‘अगर उन्होंने (आरोपियों ने) विस्फोट नहीं किए तो 71 निर्दोष लोगों की हत्या के लिए कौन जिम्मेदार है? जिन्होंने अपनों को खोया या जो आज भी उस दर्द को जी रहे हैं, उनके इस गहरे दर्द का जिम्मेदार कौन है? अगर वे चारों दोषी नहीं थे तो दोषी कौन था? यह एक ज्वलंत प्रश्न है और सभी को इसका उत्तर चाहिए.”

उन्होंने कहा कि अगर जांच अधिकारी ने निष्पक्ष जांच नहीं की, या वे सच तक पहुंचने में नाकाम रहे तो सरकार को उनसे जवाब मांगना चाहिए कि कौन जिम्मेदार है. उन्‍होंने कहा, ‘‘हमें न्याय दिलाना राज्य की जिम्मेदारी है. मैं भुलाने की कोशिश कर रहा हूं कि इतने साल में मेरे परिवार के साथ क्या हुआ, लेकिन जो हुआ उसे भुलाना संभव नहीं है. हो सकता है कि मैं नियमित और सामान्य रूप से कामकाज कर रहा हूं, लेकिन उन चीजों का क्या जो हमेशा मेरे दिमाग में बार-बार आती हैं कि यह सब क्यों हुआ जबकि हमने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया.”साहू की पत्नी चांदपोल स्थित हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ाने गई थीं.

गजेंद्र सिंह राजावत भी भगवान हनुमान के अन्य भक्तों में से एक थे जो उस शाम हाथों में प्रसाद लेकर मंदिर में प्रवेश कर रहे थे. तभी जोर का धमाका सुना और वह बेहोश हो गए. धमाकों में बाल-बाल बचे राजावत कहते हैं,“मेरे शरीर में 22 छर्रे लगे. मैंने जो दर्द महसूस किया वह आरोपियों के बरी होने के दर्द के सामने समय बौना है.”

राजस्थान की विशेष अदालत ने 18 दिसंबर 2019 को इस मामले में आरोपी मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सलमान और सैफुर्रहमान को दोषी माना जबकि शाहबाज हुसैन को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त करार दिया. राज्य सरकार ने शाहबाज हुसैन को बरी किए जाने के फैसले को उच्‍च न्‍यायालय में चुनौती दी थी. वहीं, चारों ने सजा के खिलाफ अपील दायर की थी.

न्यायमूर्ति पंकज भंडारी और न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने बुधवार को चारों को बरी करने का फैसला सुनाया. अदालत ने अपने आदेश में निचली अदालत द्वारा पांचवें व्यक्ति- शाहबाज हुसैन को बरी करने की भी पुष्टि की.

न्यायालय ने बुधवार को इस मामले को संस्थागत विफलता का ‘ उत्कृष्ट उदाहरण’ करार दिया जिस कारण गलत/दोषपूर्ण/घटिया जांच हुई. अदालत ने विस्फोट मामले में चारों आरोपियों को बरी कर दिया. साथ ही, पीठ ने कहा कि शायद यह सच हो कि अगर किसी जघन्य अपराध के अभियुक्तों को सजा नहीं मिलती है या उन्हें बरी कर दिया जाता है, तो समाज और विशेष रूप से पीड़ितों के परिवार में पीड़ा और निराशा पैदा हो सकती है.

अदालत ने कहा कि कानून अदालतों को नैतिक विश्वास या केवल संदेह के आधार पर आरोपियों को दंडित करने की अनुमति नहीं देता है. कोई दोषसिद्धि केवल दिए गए निर्णय की निंदा की आशंका पर आधारित नहीं होनी चाहिए.

अदालत ने यह भी कहा कि उच्‍चतम न्‍यायालय ने प्रकाश सिंह व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य के मामले में अपने फैसले में ‘पुलिस शिकायत प्राधिकरण’ के गठन पर विचार किया था जो राजस्थान राज्य में अब भी समुचित रूप से गठित नहीं है.

न्‍यायालय ने अपने आदेश में कहा है,‘‘ यह मामला संस्थागत विफलता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसके परिणामस्वरूप दोषपूर्ण/त्रुटिपूर्ण/घटिया जांच हुई. हमें डर है कि जांच एजेंसियों की विफलता के कारण प्रभावित होने वाला यह पहला मामला नहीं है और अगर चीजें वैसे ही चलती रहीं, तो निश्चित रूप से यह आखिरी मामला नहीं होगा जिसमें घटिया जांच के कारण न्याय का क्रियान्वयन प्रभावित हुआ हो. इसलिए, हम राज्य, विशेष रूप से मुख्य सचिव को इस मामले को देखने का निर्देश देते हैं.”

बचाव पक्ष के वकील एस.एस. अली ने कहा कि अदालत ने मामले की जांच करने वाले आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) द्वारा प्रस्तुत पूरे आधार को गलत पाया. उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच चार अलग-अलग जांच अधिकारियों ने की थी.

इस मामले में आरोप पत्र दाखिल करने वाले एक जांच अधिकारी ने संपर्क करने पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. अतिरिक्त राजकीय अधिवक्ता वकील रेखा मदनानी ने कहा कि राज्य सरकार से मंजूरी के बाद फैसले को चुनौती देने के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका (एसएलपी) दायर की जाएगी.

दूसरी ओर, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने मामले की नए सिरे से जांच की मांग की है. गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव ने कहा, ‘बरी किए गए आरोपियों को जेल में बिताए 15 साल के नुकसान की भरपाई की जानी चाहिए, परिवार की मानहानि की भरपाई की जानी चाहिए.’

उन्होंने कहा कि जांच करने वाली पुलिस टीम के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और विस्फोटों के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए नए सिरे से जांच शुरू की जानी चाहिए.

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