शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर SC की संविधान पीठ में सुनवाई, हरीश साल्वे ने कहा- अगर वास्तव में विश्वास मत होता तो…?

एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे विवाद पर सुनवाई के दौरान शिंदे कैंप की तरफ से वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से सब कुछ नही सुलझ सकता.

नई दिल्‍ली: 

महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई जारी है. सुनवाई के दौरान शिंदे कैंप की तरफ से वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से सब कुछ नही सुलझ सकता. अदालत इस्तीफा देने वाले मुख्यमंत्री को वापस आने के लिए निर्देश नहीं दे सकती. जब भी कोई  ऐसा सवाल हो, राज्यपाल को विश्वास मत के लिए बुलाना चाहिए, इसमें कुछ भी गलत नहीं है. लोकतंत्र को सदन के पटल पर चलने दें. एसआर बोम्मई मामले में यही स्थिति रखी गई है. फ्लोर टेस्ट बुलाकर राज्यपाल ने कुछ भी गलत नहीं किया. जहां तक ​​नबाम रेबिया की बात है, तो इस पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है.

वकील हरीश साल्वे ने कहा, “अगर वास्तव में विश्वास मत होता तो क्या होता? इस अदालत ने कभी भी यह निष्कर्ष नहीं निकाला है कि सदन में बने रहने वाले किसी व्यक्ति के लिए अयोग्यता की चुनौती का लंबित होना उस व्यक्ति को कानूनी रूप से अयोग्य घोषित नहीं करता है जब तक कि उसे अंतिम तौर पर अयोग्य घोषित नहीं किया जाता है. जब तक अयोग्यता तय नहीं हो जाती, तब तक सदन की कार्रवाई में भाग लेने और मतदान करने का अधिकार है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सिस्टम और कोर्ट शक्तिहीन हैं. यदि यह पाया जाता है कि अयोग्य ठहराए गए लोगों की एक बड़ी संख्या द्वारा विश्वास मत को प्रभावित किया जाता है, तो कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप किया जाना चाहिए. राज्यपाल ने क्या गलत किया है? मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया इसलिए, स्वीकार करना होगा.”

अब शिंदे गुट की ओर से वकील नीरज किशन कौल ने कहा 
कौल ने कहा, “इस मामले में सबसे बड़ा कानूनी तर्क ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान में दिए गए विधानसभा स्पीकर की शक्तियों को दरकिनार करके विधायकों की अयोग्यता पर फैसला दे सकती है? राजनीतिक पार्टी और विधायक दल दोनों आपस में जुड़े भी हैं और स्वतंत्र भी हैं, लेकिन दोनों को अलग भी नहीं किया जा सकता है. असहमति लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन ये तर्क देना भ्रामक है कि शिंदे गुट के विधायक सिर्फ विधायक दल का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं न कि शिवसेना पार्टी का. उद्धव गुट चाहता है कि चुनाव आयोग, राज्यपाल, विधानसभा स्पीकर जैसे  संवैधानिक संस्थाओं की क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण करे, ये सही नहीं है. राज्यपाल सिर्फ अपने सामने सबूत देखेंगे.उन्हें चुनाव आयोग जैसी सख्ती के साथ जांच करने के लिए नहीं कहा जा सकता. जब बड़ी संख्या में विधायक समर्थन वापस ले लेते हैं, तो वह क्या करें. एसआर बोम्मई मामले में इस अदालत ने कहा है कि एक मुख्यमंत्री फ्लोर टेस्ट से भाग नहीं सकता है, जो कि उनके और उनकी सरकार के भरोसे का संकेत है. यही कारण है कि फ्लोर टेस्ट बुलाना गलत नहीं था.

शिंदे गुट की तरफ से जेठमलानी 
जब से महाविकास अघाडी सरकार बनी, तबसे ही शिवसेना के अंदर ही इसका विरोध शुरू  हो गया था. यह असंतोष 21 जून को गठबंधन के सहयोगियों (कांग्रेस और एनसीपी) के साथ लंबे समय से चले आ रहे वैचारिक मतभेद विभाजन के स्तर पर चला गया.

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