जम्मू-कश्मीर में परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को फैसला सुनाएगा SC

सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में जारी की गई अधिसूचना को अब चुनौती देने के लिए याचिकाकर्ता से पूछा था कि आप दो साल से अब तक कहां सो रहे थे?  हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन और निर्वाचन आयोग से छह हफ्ते में जवाब तलब किया था.

नई दिल्ली: 

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को (कल) फैसला सुनाएगा. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि परिसीमन और विधानसभा सीटों के बदलाव की प्रक्रिया सही है या नहीं. एक दिसंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन और विधानसभा सीटों के बदलाव के खिलाफ  दाखिल याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था. वहीं केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने परिसीमन के खिलाफ याचिका का विरोध किया है. केंद्र सरकार ने कहा है कि परिसीमन खत्म हो चुका है और गजट में नोटिफाई भी हो चुका है. दो साल बाद इस तरह याचिका दाखिल नहीं की जा सकती. ऐसे में अब अदालत कोई आदेश जारी न करे और याचिका को खारिज करे.

केंद्र सरकार ने यह दी थी दलील
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि याचिकाकर्ता ने कानून के प्रावधानों को चुनौती नहीं दी है. याचिकाकर्ता ने संवैधानिक चुनौती भी नहीं दी है. पहले भी संवैधानिक रूप से तय विधानसभा सीटों की संख्या को पुनर्गठन अधिनियमों के तहत पुनर्गठित किया गया था. 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया. जम्मू-कश्मीर में 2019 से पहले परिसीमन अधिनियम लागू नहीं था. याचिका में सवाल उठाया गया था कि केवल जम्मू-कश्मीर में ही क्यों लागू किया गया और उत्तर पूर्वी राज्यों को क्यों छोड़ दिया गया है. इसका जवाब यह है कि 2019 में नॉर्थ ईस्ट इलाके में भी परिसीमन शुरू किया गया था, लेकिन उस समय उत्तर पूर्वी राज्यों में आंतरिक अशांति की वजह से परिसीमन नहीं हो सका. 2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. इसके बाद बार-बार आपत्ति मांगी गई, लेकिन ये याचिका 2022 में दाखिल की गई. अब परिसीमन खत्म हो चुका है और गजट मे नोटिफाई  भी हो चुका है.

चुनाव आयोग और याचिकाकर्ता का तर्क
मामले पर चुनाव आयोग ने कहा था कि कानून के अनुसार, केंद्र सरकार के पास परिसीमन आयोग के गठन की शक्ति है.  जहां तक ​​सीटों की संख्या में वृद्धि का संबंध है, आपत्ति उठाने के लिए लोगों को पर्याप्त अवसर दिया गया था. धारा 10 (2) के अनुसार परिसीमन आदेश अब कानून बन चुका है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि लोकसभा में जब पूछा गया कि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत सीटें कब बढ़ाई जाएंगी तो केन्द्र सरकार के मंत्री ने जवाब दिया था कि 2026 तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह इस मामले कुछ और दस्तावेज दाखिल करना चाहती है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की इजाजत दी थी. 30 अगस्त 2022 को जम्मू-कश्मीर के चुनाव क्षेत्रों के प्रस्तावित परिसीमन प्रक्रिया पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में जारी की गई अधिसूचना को अब चुनौती देने के लिए याचिकाकर्ता से पूछा था कि आप दो साल से अब तक कहां सो रहे थे?  हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन और निर्वाचन आयोग से छह हफ्ते में जवाब तलब किया था.

इन्होंने दायर की है याचिका
श्रीनगर के रहने वाले हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू की याचिकाओं में कहा गया है कि परिसीमन में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. परिसीमन में विधानसभा क्षेत्रों की सीमा बदली गई है. उसमें नए इलाकों को शामिल किया गया है. सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी गई है, जिसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की भी 24 सीटें शामिल हैं. यह जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 63 के मुताबिक नहीं है.

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