- “सुधारों पर बहस लक्ष्यहीन हो गई है. हालांकि, इस बीच वास्तविक दुनिया नाटकीय रूप से बदल गई है. हम इसे आर्थिक समृद्धि, प्रौद्योगिकी क्षमताओं, राजनीतिक प्रभाव और विकासात्मक प्रगति के संदर्भ में देख सकते हैं.”
- “कोविड महामारी के दौरान, कई कमजोर देशों ने अपने पारंपरिक स्रोतों से हटकर टीके प्राप्त किए. वास्तव में, वैश्विक उत्पादन का विविधीकरण अपने आप में बताता है कि पुरानी व्यवस्था कितनी बदल गई है.”
- “संघर्ष की स्थितियों ने भी अधिक व्यापक-आधारित वैश्विक शासन की आवश्यकता को रेखांकित किया है. खाद्य, उर्वरक और ईंधन सुरक्षा पर हाल की चिंताओं को निर्णय लेने वाली उच्चतम परिषदों में पर्याप्त रूप से व्यक्त नहीं किया गया. इसलिए दुनिया का अधिकांश हिस्सा यह मानने लगा है कि उनके हित कोई मायने नहीं रखते.”
- “जलवायु के मुद्दे पर भी काम और न्याय की स्थिति भी बेहतर नहीं है. संबंधित मुद्दों को उचित मंच पर संबोधित करने की बजाय, हमने ध्यान भटकाने के प्रयास देखे हैं. आतंकवाद की चुनौती पर, दुनिया के तमाम देशों के एक साथ आने के बाद भी आतंकवादियों को सही ठहराने और उनकी रक्षा करने के लिए बहुपक्षीय मंचों का दुरुपयोग किया जा रहा है.”
- “हमें न केवल हितधारकों को बढ़ाने की जरूरत है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर में और वैश्विक जनमत की नजर में बहुपक्षवाद की प्रभावशीलता और विश्वसनीयता को भी बढ़ाना है. अगर ऐसा करना है, तो लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों का सुरक्षा परिषद में विश्वसनीय और निरंतर प्रतिनिधित्व होना चाहिए. उनके भविष्य के बारे में निर्णय अब उनकी भागीदारी के बिना नहीं लिए जा सकते.”