यूपी में विधानसभा से लोकसभा चुनाव तक में दलित वोटर्स काफी अहम जगह रखते हैं। प्रदेश में दलित वोटर्स का प्रतिशत तकरीबन 21 फीसदी है, जिसमें बड़ा हिस्सा बसपा की ओर जाता था। हालांकि, अब वोटर्स छिटके हैं।
साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस में सियासी हलचल तेज हो गई है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया के बीच अब उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी नियुक्ति कर दी गई है। इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद प्रदेश में कांग्रेस के अध्यक्ष का पद खाली था। जालौन के रहने वाले और एक समय में बसपा सुप्रीमो मायावती के करीबी रहे बृजलाल खाबरी को यूपी कांग्रेस का प्रमुख बनाया गया है। राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि यूपी में दलित नेता को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस की नजर मायावती के वोटबैंक पर है। दरअसल, पिछले कुछ चुनाव में बीएसपी से दलित वोटबैंक छिटका है, जिसपर अब कांग्रेस ने नजरें गड़ा ली हैं। वहीं, सिर्फ प्रदेश में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस दलित वोटर्स को मल्लिकार्जुन खड़गे के जरिए साधने जा रही है। मालूम हो कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए खड़गे और शशि थरूर के बीच में सीधी लड़ाई है, लेकिन खड़गे की जीत तय मानी जा रही है।
यूपी में कितने फीसदी हैं दलित?
यूपी में विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव तक में दलित वोटर्स काफी अहम जगह रखते हैं। प्रदेश में दलित वोटर्स का प्रतिशत तकरीबन 21 फीसदी है, जिसमें बड़ा हिस्सा बसपा की ओर जाता था। दलित में जाटव और गैर-जाटव की बात करें तो 50-55 फीसदी आबादी जाटव की है, जिससे खुद बसपा सुप्रीमो मायावती भी आती हैं। ऐसे में जाटव वोटर्स पर बसपा की पकड़ काफी मजबूत रही है। वहीं, अन्य में पासी, कनौजिया, खटीक, वाल्मिकी जैसे सब-कास्ट्स का प्रतिशत है।
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के अनुसार, साल 2017 में बीएसपी को 65 फीसदी जाटव ने वोट किया था, जबकि साल 2022 के चुनाव में यह प्रतिशत कम होकर 65 फीसदी पर आ गया। यह साफ दर्शाता है कि अन्य पार्टियां दलित वोटबैंक में लगातार सेंधमारी कर रही हैं। इसी के मद्देनजर कांग्रेस ने भी दलित वोट हासिल करने के लिए प्रदेश की कमान बृजलाल खाबरी को दी है।
भले ही कांग्रेस लंबे समय से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर रही हो, लेकिन कई दशकों पहले पार्टी प्रदेश में सबसे बड़े दल के रूप में जानी जाती थी। इसमें एक बड़ा वोटबैंक दलितों का भी रहा। लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे यह वोटबैंक बसपा की ओर जाता रहा। अब एक बार फिर से पार्टी खुद को मजबूत करने के लिए दलित वोटर्स की तरफ देख रही है।
कौन हैं एक समय में मायावती के करीबी रहे खाबरी?
बृजलाल खाबरी यूपी के जालौन के रहने वाले हैं। वह बसपा सुप्रीमो मायावती के काफी करीबी नेताओं में गिने जाते थे, लेकिन बाद में बसपा से इस्तीफा देकर साल 2016 में कांग्रेस में शामिल हो गए। हालांकि, कांग्रेस से वह अब तक दो बार चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन 2017 और 2022 के दोनों ही विधानसभा चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पिछला चुनाव उन्होंने ललितपुर जिले की महरौनी (सुरक्षित) सीट से लड़ा था, जहां बीजेपी उम्मीदवार ने पराजित कर दिया था।
पंजाब में काम नहीं कर पाई कांग्रेस की रणनीति
इसी साल हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दलित कार्ड बुरी तरह फेल हो गया था। लंबे समय से प्रदेश में आपसी नेताओं के बीच मनमुटाव का सामना कर रही पार्टी ने दलित नेता चरणजीत चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर दलित वोट साधने की कोशिश की थी, लेकिन चंद महीनों बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह हार मिली थी। खुद चन्नी भी दोनों सीटों से पराजित हुए। पिछले साल के अंत में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया था, तब गांधी परिवार ने चन्नी को सीएम बनाकर मास्टरस्ट्रोक खेला था। एक्सपर्ट्स मान रहे थे कि पंजाब में दलित वोटर्स जिनका प्रतिशत तकरीबन 31 फीसदी है, इसके चलते कांग्रेस सिर्फ पंजाब ही नहीं, बल्कि उस समय यूपी समेत अन्य राज्यों में हुए चुनावों में भी लाभ उठा सकेगी। हालांकि, ऐसा नहीं हो सका और पार्टी को पंजाब व यूपी में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। अब जब यूपी में कांग्रेस ने दलित नेता को कमान सौंपी है, तो देखना होगा कि पार्टी को इससे कितना लाभ मिलता है।